बहुत दुःखी हूँ। मेरे गृह जिले बाराँ के एक नगर छबड़ा में दुकान के सामने वाहन खड़ा करने के विवाद ने अचानक हिंसक रूप ले लिया। किसी की जान जाने की कोई खबर नहीं है लेकिन नगर में समुदायों के बीच दरार स्पष्ट हो कर सामने आ गई है। जिस क्षेत्र में जो समुदाय बहुसंख्यक था उस क्षेत्र में दूसरे समुदाय की दुकानें जला दी गयीं। इस काम में कोई समुदाय पीछे नहीं रहा। किसी भी सभ्य समाज में इस तरह की सामुदायिक/ साम्प्रदायिक हिंसा का कोई स्थान नहीं हो सकता। यदि इस तरह की घटनाओं को हम पैमाना मान लें तो हमें यह स्वीकार करना होगा कि हम अभी सभ्यता की सीढ़ी के बहुत निचले पायदान पर खड़े हैं।
इस घटना का जो विवरण सामने आ रहा है उससे प्रतीत होता है कि नगर के दोनों समुदायों में एक दूसरे के प्रति घृणा और अविश्वास का बारूद लगातार बोया जा रहा था। इसका मुख्य कारण साम्प्रदायिक राजनीति है। यूँ तो इस राजनीति के बीज एक सदी पहले से बोए जा रहे हैं। इसी राजनीति ने देश को दो टुकड़े कराए, इसी ने हमारे राष्ट्र-पिता बापू गांधी के प्राण हर लिए। बापू की इस हत्या को इस राजनीति ने गांधी-वध कहा। सीधे-सीधे गांधी को भारतीय पौराणिक खलनायक राक्षसों के नेताओं के समकक्ष रख दिया गया। इस राजनीति के लिए वे तमाम लोग जो साम्प्रदायिक नहीं हैं वे राक्षस हैं।
जब किसी देश का बहुसंख्यक वर्ग साम्प्रदायिक हो उठता है तो उसकी मार देर सबेर उस देश के तमाम अल्पसंख्यक समुदायों को सहनी पड़ती है और अल्पसंख्यकों को मध्य भी वही साम्प्रदायिकता घर करने लगती है। सभी सम्प्रदायों के मध्य अन्य सम्प्रदायों के विरुद्ध घृणा के बीज बोए जाते हैं। अपने सम्प्रदाय को श्रेष्ठ और अन्य सम्प्रदायों को हीन प्रदर्शित किया जाता है। जब साम्प्रदायिकता राज्य पर काबिज होने की सफलता का सूत्र बन जाए तो यह और भी आसान हो जाता है। इस तरह के राजनेता समाज में लगातार साम्प्रदायिकता का बारूद बिछाते हैं। यह साम्प्रदायिकता बहुसंख्यकों को कहीं का नहीं छोड़ती, अपितु सर्वाधिक हानि वह बहुसंख्यकों ही पहुँचाती है।
छबड़ा की घटना का कारण दुकान के सामने वाहन खड़ा करने का झगड़ा नहीं है। वह तो केवल चिनगारी था। असल कारण तो समुदायों के मध्य बिछा दिया गया घृणा और साम्प्रदायिकता का वह बारूद है जो लगातार बिछाया जाता है। हमें इस से निपटना है तो हमें इस बारूद का बिछाया जाना रोकना होगा और जो बारूद बिछा दिया गया है उसे भी साफ करना होगा। इसके लिए समुदायों के मध्य समन्वय के समर्थक लोगों को एकजुट हो कर काम करना होगा। इस काम के लिए पहला कदम तो एकजुटता प्रदर्शित करते हुए साम्प्रदायिकता के विरुद्ध डट कर खड़ा होना है। लगातार लोगों को इस अभियान के साथ जोड़ना है। बाकी काम तो लोगों को लगातार समन्वय की भावना के बीज बो कर करना होगा।
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