खबर है कि सरकार तीनों कृषि कानूनों के अमल पर डेढ़ साल के लिए रोक लगाने का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देने को तैयार है। इसके बाद जरूरत पड़ने पर अमल पर रोक आगे भी बढ़ाई जा सकती है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट से इतर एक नई कमेटी बनेगी जिसमें किसान संगठनों के प्रतिनिधियों, कृषि विशेषज्ञों और सरकार के प्रतिनिधि होंगे। यही कमेटी तीनों कृषि कानूनों के पहलुओं के साथ-साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर चर्चा करेगी। इसी के हिसाब से आगे कृषि कानूनों में संशोधन किए जाएंगे। आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज सभी मामले वापस लिए जाएंगे। एनआईए समन ठंडे बस्ते में डाल निर्दोषों पर कार्रवाई नहीं होगी।
सरकार को बहुत जल्दी थी कानून बनाने की। उसने संसद में जाने के बजाए अध्यादेश जारी कर दिए। क्या उसके पहले इन अध्यादेशों से प्रभावित होने वाले पक्षों से विचार विमर्श नहीं किया जा सकता था? पर क्यों किया जाए? सरकार नहीं है यह, भगवान है। जिसकी बात जनता को स्वीकार करनी होगी। वरना देवता निपट लेंगे। यही सोचा गया था न। फिर आपने पेंडेमिक के हल्ले के बीच बिना बहस के तीनों को कानून बना दिया। बना सकते हैं भाई संसद में आपका पूर्ण बहुमत है। यह बहुमत अभी 2024 तक रहने वाला है। यदि ये कानून निरस्त कर दिए जाएँ तो सभी पक्षों से विचार विमर्श के बाद, सहमति बनने के बाद इन्हें नए सिरे से दुबारा बनाया जा सकता है। तो सरकार क्यों नहीं चाहती कि इन्हें निरस्त कर दिया जाए? अब जो प्रक्रिया सरकार ने सुझायी है उसे कानून के लिए विधेयक आने के पहले पूरी करना चाहिए था। कपड़े खरीदने के पहले दर्जी से पूछ लेना चाहिए था कि पोशाक में कपड़ा कितना लगेगा? अब कपड़ा कम ले आए हैं, पोशाकें बहुत तंग सिल गयी हैं तो डेढ़ साल तक क्या इस बात का इन्तजार करेंगे कि देश इन पोशाको को पहनने लायक दुबला हो जाए?
सरकार के मुखिया जी रोज तीन पोशाकें एक दम नयी पहनते हैं। सम्भवतः एक पोशाकें दुबारा नहीं पहनते। डरते हैं कहीं उन पर भी नेहरू की तरह पेरिस में कपड़े धुलवाने का मिथ्या आरोप नहीं लगा दे। तीन कथित कृषि कानूनों की इन पोशाकों को जो इस देश को रास नहीं आ रही हैं, जिन्हें पहनने से उसके हाथ-पैरों ने मना कर दिया है। उन्हें आप डेढ़ बरस तक होल्ड पर रख कर उसका आल्टरेशन (संशोधन) क्यूँ कराना चाहते हैं? क्या आपके मुखिया जी अब भी आल्टर की हुई पोशाकें पहनते हैं? क्या आपको लगता है कि डेढ़ बरस में आपकी ये सरकार बहुमत खो देगी?
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