छह दिनों चलते रहने से पैरों में पड़े छाले लिए जब हजारों हजार किसान मुम्बई शहर पहुँचे तो वहाँ की जनता ने उन का स्वागत किया। किसी ने फूल बरसाए, किसी ने उन्हें पीने का पानी पहुँचाया, किसी ने खाना खिला कर इन किसानों से अपना रिश्ता बनाना चाहा।
आखिर क्या था उन किसानों के पास? वे तो अपने फटे पुराने वस्त्रों के साथ चल पड़े थे।कईयों के जूते चप्पलों ने भी रास्ते में साथ छोड़ दिया था। किसी ने उन्हें पहनाया तो उन्हों ने उसे पहन लिया, कोई उन्हें दवा पट्टी करने लगा। किसानों ने भी इस स्वागत का आल्हाद के साथ उत्तर दिया।
शहर के मेहनतकश गरीब जब गाँवों से आते किसानों में अपने रिश्ते तलाश रहे थे, नए रिश्ते बना रहे थे तब उन के जेहन में कहीं न कहीं वह गाँव भी था जहाँ उन के पूर्वज बरसों रहे। उन में से कई अब भी गाँव में हैं। वे एक दूसरे को पहचान रहे थे, जैसे ही आँखों में पहचान नजर आती वे गले मिलते थे।
ये पहचान वर्गों की पहचान थी। वे पहचान रहे थे कि शहर में आ जाने से खून पूरी तरह से शहरी नहीं हो जाता है उन में बहुत सा गाँव वाला खून भी बचा रहता है। गाँव वाले भी देख रहे थे कि इन शहरियों में तो अब भी आधे से कहीं ज्यादा खून गाँव का है। भले ही शहरों में आ कर वे नौकरी करने लगे हों लेकिन उन का मूल तो वही गाँव है। शहर वाले तो ग्रामीणों को बिलकुल अपने बच्चों जैसे लगे।
इन दृश्यों को देख कर जनता के खेतों में अपनी राजनीति की फसल उगाने में लगे लोग भी, तिरंगे, भगवे, पीले, नीले निशान लिए किसानों का स्वागत करने महानगर के प्रवेश द्वार से भी आगे तक आ गए थे। सब ने किसानों को कहा कि वे सरकार से लड़ाई में उन के साथ हैं। इतना देखने पर सरकार को भी शर्म आई। उसने अपना एक दूत भेजा और कहा कि वे किसानों की मांगों पर गंभीर हैं और उन से बात करेंगे।
बच्चों की पढ़ाई और आराम में खलल न हो, नगर का यातायात न रुके इस के लिए किसान बिना रुके चलते ही रहे और रात को ही मुम्बई पहुंँच गए। अगले दिन सरकार ने बातचीत की, किसानों की अधिकांश मांगें मानने की घोषणा कर दी गयी। यहाँ तक कि सरकार ने किसानों को घरों तक वापस पहुँचाने के लिए दो स्पेशल ट्रेन भी लगा दी। किसानों का महानगर में बने रहने को सरकार ने बड़े खतरे के रूप में देखा।
किसान सरकार की बात मान गए, पर न जाने क्यों फिर भी उन्हें विश्नास है कि सरकार अपनी बातों से मुकर जाएगी और कोई न कोई खेल दिखा देगी। वे बस सरकार की हरकत देखेंगे। खुद को और मजबूत बनाएंगे, अपने मित्र बढ़ाएंगे। वे जानते हैं कि उन्हें शहर में उन के खोए हुए बच्चे मिल गए हैं। वे भी शहर में रहने वाली इस सरकार पर निगाह रखेंगे। जैसे ही कुछ गड़बड़ दीखेगी उन्हें बताएंगे। ये शहरी बच्चे भी सोच रहे हैं कि वे भी अब किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाएंगे, वे भी एका बना कर मजबूत बनेंगे। वे सब जल्दी ही साथ साथ लड़ेगे।
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