कल पहली बार अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस मनाया गया। इस दिन अनेक पुराने ब्लागरों ने पोस्टें लिखीं। एक जमाना था जब हम लगभग रोज कम से कम एक पोस्ट लिखा करते थे। कभी कभी दो या अधिक भी हो जाती थीं। तीसरा खंबा पर यह सिलसिला जारी है। अनवरत पर लगभग सन्नाटा है। अब ब्लॉग दिवस के बहाने यह सन्नाटा टूटा है तो यह भी कोशिश है कि रोज ब्लाग पर कुछ न कुछ लिखा जाए। चलो कुछ लिखते हैं ....
मेरे पास तीसरा खंबा पर औसतन 300-400 समस्याएँ प्रतिमाह प्राप्त होती हैं। कभी कभी लोग केवल अपनी गाथा लिखते हैं लेकिन वे कोई समाधान नहीं चाहते। या तो वे जानते हैं कि इस का कोई ऐसा समाधान नहीं है जो कानून उन्हें दे सकता हो। उन की समस्याएँ समाज, कानून और न्यायव्यवस्था में बड़ा बदलाव चाहती हैं। वह बदलाव तो तब होगा जब होगा। अभी तो उस बदलाव के लिए पर्याप्त आवाज तक नहीं उठती है। खैर!
पिछले सप्ताह मेरेे पास एक सज्जन ने सिवान, बिहार से अपनी गाथा लिख भेजी है। उन का मकसद था कि उन की गाथा और लोग भी जानें। तो मैं उन की गाथा तनिक भाषा. व्याकरण और विराम चिन्हों के सुधार के बाद एक शीर्षक अपनी ओर से देते हुए यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ...
और तुम घंटा बजाओ
मेरी
शादी 10.12.2009 को हिन्दू रीति से 5 रुपया दहेज़ में सम्पन्न
हुई। मैं दहेज़ के खिलाफ रहता हूँ, शादी के 2 दिन
बाद बहुभोज के दिन पत्नी का जीजा और उसकी बुवा का लड़का और एक उसकी बहन आई। मेरे
सामने ही उसका बहनोई उसके स्तनों पे हाथ रख के बात करने लगा और मुझे देखते ही उसने
हाथ हटा लिया। मैंने पत्नी से पूछा तो बोली मज़ाक कर रहे थे तो मैंने डांट दिया
है। मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
मुंह दिखाई मैंने उसको 20000 रुपया
दिया कि जरुरत के अनुसार खर्च करना। फिर बीच में उसका अपना भाई आया और मिल कर चला
गया। करीब 2 महीने
बाद मुझे कुछ पैसों की जरुरत पड़ी तो माँगा, उस ने 10000 रुपया दिया। पूछा और क्या किया? तो
बोली हिसाब नहीं पूछा जाता है पत्नी से। इस बात पर मैंने काफी डांट डपट की तो बोली
भाई को दी हूँ, उस से
क्या हो गया। मैंने कहा वही मुझे बोल कर भी तो दे सकती थी।
बहुभोज के दूसरे दिन रात को उसके जीजा का फोन आया रात को 8:30 पे। मोबाइल में कॉल
रिकॉर्डिंग रखता हूँ मैं, उसका
जीजा उसको बोला जल्दी सेक्स मत करने देना और अगर जबरदस्ती करे तो चिल्लाने लगना।
उसको शक नहीं होगा, वरना
पकड़ी जाओगी। मुझे रिकॉर्डिंग सुनकर बड़ा दुःख हुवा, अपना दर्द किसको कहता, शर्म के मारे बात को दबा
लिया। शादी के 4 महीनों
बाद उसको घुमाने उसके घर ले गया। मैं उसके यहाँ रखा फोटो एल्बम देखने लगा। उस में
मेरी पत्नी का उसके जीजा के साथ लवर-पोज़ में फोटो था। उसके बुवा के लड़के के साथ
फोटो था। मुझे अब बर्दास्त नहीं हुआ तो पत्नी को पूछा। तो उसकी माँ ने सुन लिया और
मुझे बोली उस से क्या हो गया? कोई घटने वाला सामान थोड़े है जो आप चिल्ला रहे हैँ।
उस से क्या हो गया जीजा से मिल ली तो आप ज्यादा मत चिल्लाइये वरना जेल में डलवा
देंगे। मैं काफी परेशान हो गया, फिर
भी पत्नी को घर ले के आ गया 2 दिन
में ही। उसके 5 महीने
बाद मेरे ससुर आये बोले बिदाई कीजिये। मैंने मना किया, लेकिन मेरे घरवालों ने मुझे
समझा कर उसको भेज दिया। फिर मैं 15 दिन
बाद गया ससुराल बिदाई कराने तो मेरा ससुर बोला 6 महीना यहीं रहेगी। आप यहीं
पे खर्चा दे दीजिये। इस बात पर मेरी ससुर से कहा सुनी हुई काफी दिक्कतों के बाद
मेरी पत्नी मेरे साथ आने को तैयार हुई।
आने के 4 महीने
बाद बिलकुल यही घटना फिर हुई फिर काफी बातचीत के बाद आई मेरे साथ। उसके बाद 2011 में मुझे एक बेटा हुआ,
ऑपरेशन से। बेटे के जन्म के 3 महीने
बाद ही वो लोग फिर आ गए बिदाई कराने। तब मुझसे उनका बहुत झगड़ा हुआ कि एक तो आपकी
बेटी अपना दूध नहीं पिला रही लड़के को, दूध सुखाने की दवा चला ली और आप इसको डांटने के बजाय ले जाने को तैयार हैं।
तो ससुर बोले कि घर पे ले जाकर समझायेंगे। मैंने मना किया तो मेरी पत्नी तैयार हो
कर बोली अपना लड़का रखो मैं जा रही हूँ, और वो चली गई।
फिर 2 महीने
की मसक्कत के बाद आई। फिर 4 महीने
बाद वही घटना, लड़का
छोड़ के चली गई। वहाँ 20 दिन
रही और मेरे पास कॉल की कि मैं प्रेग्नेंट हूँ, पैसा भेजिए अबोर्शन कराना है। तो
मैने 5000 रुपया भेजा। तो पैसा खर्च
करके बोली डॉक्टर ने मना किया है गिराने से तो रहने दीजिये। मैंने कहा ठीक है। महीने रह के आई और 15 दिन के बाद से ही मेरे
पूरे परिवार में कलह पैदा कर दी। ऐसा हालात बना दी की कोई किसी की मदद न करे।
डिलिवरी से 10 दिन
पहले ससुर आये बोले भेज दीजिये वही पे करा देंगे, आप खर्च दे दीजिये। मेरा
मन नहीं था भेजने का फिर भी 10000 रुपया
देकर भेज दिया।
इस वक्त भी लड़का छोड़ कर गई। 2 दिन बाद कॉल आया कि आइये ऑपरेशन के समय आपको रहना पड़ेगा तो मैं गया मेरे
पहुँचते ही ससुर अपने घर चला गया, वहाँ
मुझे और मेरी सास को और गाँव की 3 औरतों
को छोड़कर। मैं वही बैठा था ओटी के सामने रात के 8 बज रहे थे। मेरे सामने से
ही नर्स ट्रे में एक बच्चा ले के गई ट्रे को कपडे से ढँक कर। पर बच्चे की ऊँगली
ट्रे के बाहर निकली हुई थी तो मैंने सोचा किसी का होगा। तब तक मेरी सास आई और बोली
अब नसबंदी भी हो जाए, चलिए साइन कीजिये। मैंने मना किया तो पता नहीं कहा से 4, 5 औरतें 2 मर्द आ गए और मुझसे झगड़ा
करने लगे। बोले साइन करो नहीं तो इधर ही काट कर फेंक देंगे तुमको। काफी हुज्जत के
बाद भी मुझे साइन करना पड़ा। साइन करने के 20 मिनट बाद नर्स आई, वो
ही trey लेके जो लेके गई थी और
बोली आपका बच्चा नहीं बचेगा। इसको दिखाइये किसी डॉक्टर को। मैं ये सुनकर वही बेहोश
हो गया था, करीब
1 घंटे बाद मुझे होश आया। तभी
नर्स ने मेरी सास को बुलाया मेरी सास आते ही बोली आपके लड़के को सरकारी हॉस्पिटल
के आईसीयू में रखवाया है जाकर देखिये। मैं रोते हुवे सरकारी हॉस्पिटल गया तो देखा
लड़का लावारिस की तरह आईसीयू में पड़ा है। नर्स से पूछा तो वो बोली कि लड़का नहीं
बचेगा। उस वक्त मेरे पास 10 रुपया
भी नहीं था कि उसको प्राइवेट में दिखाऊं। बस हॉस्पिटल के बाहर बैठ कर उसको मरते
हुवे देख रहा था। इसी में सुबह हो गई तब तक नर्स आई बोली लाश ले जाइए, सफाई करना है। वहीं अपनी
चांदी की अंगूठी चाय वाले को देकर उससे 400 रुपया क़र्ज़ लिया, लड़के
के अंतिम संस्कार के लिए।
जब अंतिम संस्कार करके आया तो देखा हॉस्पिटल में उसका जीजा आया हुवा है और
मेरी सास मेरी पत्नी को काजू खिला रही है। मैंने जब पत्नी को बोला कि लड़का मर गया,
तो वो बोली ये सब मत सुनाओ भाग्य में नहीं था और लेटे लेटे फिर काजू खाने लगी। इस
पर मुझे गुस्सा आया तो मैं उन लोगो को भला बुरा कहने लगा। तब तक मेरा ससुर आया और
मुझे धक्का दे कर बोला जाओ तुम्हारे साथ नहीं जायेगी मेरी बेटी और तुमसे खर्च कैसे
लेना है मै जानता हूँ। मैं अपने घर आ गया। फिर 10 दिन बाद गया तो वो लोग
हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो रहे हैं तो उनके साथ पत्नी को उसके घर छोड़कर अपने घर आ
गया।
बीच बीच में जाकर मिलता रहा फिर काफी मसक्कत के बाद 3 महीने पर वो बिदा करने को
राज़ी हुए। पर शर्त थी की 20000 दो
पत्नी को ले जाओ। हमारा खर्च हुवा है हॉस्पिटल में। तो इस बात पर कुछ लोगो के
समझाने के बाद बोला हमको चाहिए बाद में ही देना और चलो एक सादा स्टाम्प पेपर लाये
बोले साइन करो। मैंने मना कर दिया साइन करने से। तो मुझे लेकर मुखिया के पास गए और
मुखिया के सामने पेपर पर साइन करने को बोले। पेपर में लिखा था मैं दहेज़ नहीं
मांगूंगा अपनी पत्नी से, फिर
मारपीट नहीं करूँगा। तो मैंने बोला मैंने कब आपसे 1 रुपया माँगा। तो वो दहेज़
वाली लाइन कटवा दिए। उसके 2 दिन
बाद पत्नी को अपने घर ले के आया।
उसके 3 महीने
बाद ही मेरा ससुर वो पेपर लेके एसपी के पास आवेदन दे दिया तो महिला थाना मेरे घर
पे आई और मुझे मेरी पत्नी को मेरी माँ को पापा को थाने लेके गई। वहां पे जब मैंने
सारी बात बताई तो महिला पुलिस मेरे सास ससुर को 4 डंडे लगाईं बोली कैसे माँ
बाप हो अपनी बेटी का घर उजाड़ रहे हो। मेरी पत्नी से पूछी तुमने सिंदूर क्यों नहीं
लगाया। तो वो बोली याद नहीं आया। जबकि सच ये है कि वो मेरे यहाँ कभी सिंदूर नहीं
लगाती है। थाने में बांड भर के हम अपने अपने घर चले आये।
उसके बाद हमेशा घर में जेवर पैसा ग़ुम होने लगा। मैं जान कर चुप हो जाता।
पर एक बार बोली कि उसका मंगलसूत्र ग़ुम हो गया है तो इस बात पे मेरा मेरी पत्नी से
झगड़ा हुआ। उसने फोन करके अपने बाप को बुला लिया और रोड पे अर्धनग्न बाल बिखेर के
निकल गई, उसके
माँ और बाप चिल्लाने लगे। अभी मैं कुछ बोलूं उससे पहले ही रिक्शा से चले गए। मैं
ढूंढने निकला तब तक भूकम्प आ गया 25 अप्रैल 2015 वाला।
तो मैं वापस अपने लड़के के पास चला आया। वो अपने मैके जाके 498ए, 3/4 और 125 का केस कर दी।
जब मैं बाजार के कुछ सभ्य लोगो को लेकर उसके यहाँ गया तो उसका बाप बोला
पैसा दो तो ही कुछ बात होगा। मैंने हुज्जत किया तो उन लोगों के तरफ से कुछ आवारा
लड़के थे वहा जो मेरे भाई पे हाथ उठा दिए। मेरा ससुर मुझे अकेले में बुला के बोला
जिस तरह कहूँ उस तरह करो वरना ज़िंदा चिमनी में फिंकवा दूंगा। जाओ 50000 रुपया ले कर आओ, केस ख़त्म हो जाएगा।
बातचीत में ही 6 महीने
हो गए और अब तक मैं रोड पे आ चुका था। अपने सेठ से 50000 रुपया क़र्ज़ ले कर दिया
तो मेरी पत्नी मेरे साथ आई और उसके 6 महीने बाद उसने केस ख़त्म करवाया।
उसके बाद खुल कर मेरे सामने ही मोबाइल से पता नहीं कहाँ बात करती। मैं मना
करता तो धमकी देती कि ज्यादा चिल्लाओ मत वरना फिर भुगतोगे। मैं चुप हो जाता। इधर 2 महीने पहले 3 बजे सुबह वह बस स्टॉप चली
गई, मैके जाने के लिए, लड़के
को लेकर। 4 बजे
मेरी नीन्द खुली तो बाहर से ताला बंद मिला। मैं छत से 10 फीट कूद कर उसको ढूंढने
निकला तो वो बस स्टॉप पे मिली। मुझे देख कर भीड़ इकट्ठा करने की कोशिश करने लगी।
सब वहां पहचान के थे और सब जानते थे मेरी आप बीती। तो इसको मेरे साथ भेज दिए। आकर
बोली मैं अपने मैके में ही रहूंगी, मुझे वहीं खर्च देना। इसीलिए अब लड़के को लेकर जाउंगी जो कि अब 6 साल का है। इसका खर्च तो
तुम्हें देना ही होगा। फिर वो इधर दो महीने पहले घर में रखा 1.5 लाख रुपया गहना, कपडा, लड़का, साथ ले के दिन में 3 बजे के करीब किसी को
बुलाकर उसके बाइक पे बैठ के भाग गई है। मैं क्या करूँ? उसको गोली मार दूँ, या खुद
को गोली मार लूँ? भारतीय
कानून से किसी भी प्रकार की उम्मीद नहीं मुझे, इतना हुआ मेरे साथ। पर कोर्ट बोलेगा खर्च दो उसको, अपनी प्रॉपर्टी में हिस्सा
दो उसको, और तुम घंटा बजाओ। ये है हमारा संविधान।
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कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस?
जो भी हो, जरा यहाँ टिपिया दीजिए.....