रामायण में एक कथा है ...
राम और लक्ष्मण की सहायता से विश्वामित्र का यज्ञ निर्विघ्न संपन्न हुआ। विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को साथ ले जनक के यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए मिथिला की और चले और शोणभद्र नदी के किनारे रात्रि विश्राम के लिए रुके। राम ने पूछा- महात्मन् यह सुन्दर समृद्ध वन से सुशोभित देश कौन सा है इस के बारे में जानना चाहता हूँ।
विश्वामित्र ने देश के बारे में बताना आरंभ किया। महातपस्वी राजा कुश साक्षात् ब्रह्मा के पुत्र थे। विदर्भ की राजकुमारी उन की पत्नी थी जिस से उन्हें चार पुत्र हुए। उन में एक पुत्र कुशनाभ था जिस ने महोदय नामक नगर बसाया। महाराजा कुशनाभ ने घ्रताची अप्सरा के गर्भ से सौ पुत्रियों को जन्म दिया जो सब की सब रूप-लावण्य से सुशोभित थीं। जैसे जैसे वे युवा होती गई उन का सौन्दर्य बढता गया। एक दिन वे सभी श्रंगारों से युक्त हो कर उद्यन में आमोद प्रमोद में मग्न थीं।
इन सुन्दर युवतियों को देख कर वायु देवता उन पर मुग्ध हो गए और उन से निवेदन किया कि मैं तुम सब को अपनी प्रेयसी के रूप में पाना चाहता हूँ। तुम सब मेरी भार्याएँ हो जाओ और मनुष्य भाव त्याग कर देवांगनाओं की तरह दीर्घ आयु प्राप्त करो और अमर हो जाओ।
इस पर वे सभी कन्याएँ हँस पड़ीं और बोलीं- आप तो वायु रूप में सब के मन में विचरते हैं इस कारण आप को तो पता होगा कि हमारे मन में आप के प्रति कोई आकर्षण नहीं है। फिर भी आप हमारा यह अपमान किस लिए कर रहे हैं। हम सभी कुशनाभ की पुत्रियाँ हैं देवता होने पर भी आप को शाप दे सकती हैं। किन्तु ऐसा नहीं करना चाहतीं क्यों कि और अपने तप को सुरक्षित रखना चाहती हैं। (इस शाप से हमें भी बदनामी झेलनी होगी और जो मान सम्मान हम ने अपने व्यवहार से कमाया है वह नष्ट हो जाएगा) दुर्मते! ऐसा समय कभी नहीं आएगा जब हम अपने पिता की अवहेलना कर के कामवश या अधर्मपूर्वक अपना वर स्वयं ही तलाश करने लगें। (युवतियों को जैसी शिक्षा और वातावरण मिला था उस में वे जानती थीं कि स्त्री का कोई अधिकार नहीं होता। वे पिता की संपत्ति हैं और वही उस की इच्छा के अनुसार उन का दान कर सकता है) हम पर हमारे पिता का प्रभुत्व है वे हमारे लिए सर्व श्रेष्ठ देवता हैं, वे हमें जिस के हाथ में दे देंगे वही हमारा पति होगा।
युवतियों की ऐसे वचन सुन कर वायुदेवता क्रोधित हो गए। जैसे आज कल के नौजवान ऐसी बात सुन कर युवतियों पर तेजाब डाल कर उन्हें बदसूरत बनाते हैं वैसे वायु देवता को इस के लिए तेजाब की व्यवस्था करने की जरूरत भी नहीं थी। वे उन सौ युवतियों के शरीर में घुस सकते थे। वे उन के शरीरों में घुस गए और उन के सारे अंगों को विकृत कर दिया जिस से वे कुरूप हो गयीं।
युवतियों ने जब यह घटना पिता को सुनाई तो उन्हों ने पुत्रियों को कहा कि तुमने शाप न देकर ठीक ही किया क्यों कि क्षमा करना बहुत बड़ी बात है और देवताओं के लिए भी दुष्कर है।
तब कुशनाभ ने गंधर्वकुमारी और ब्रह्मर्षि चूली के पुत्र ब्रह्मदत्त से अपनी सौ कन्याओं का विवाह कर दिया।
पुत्रियों का विवाह होने के उपरान्त ब्रह्मदत्त युवतियों का पति हो गया तो वायु देवता ने युवतियों का शरीर त्याग दिया और वे पूर्व की तरह सुन्दर हो गयीं। कुशनाभ के गाधि नामक पुत्र जन्मा, यही गाधि मेरे पिता थे। कुश के कुल में जन्म होने के कारण ही मुझे कौशिक भी कहते हैं। इस कारण यह मेरे पूर्वजों का ही देश है।
उपकथन-
विश्वामित्र को अपने देश का परिचय देने के लिए इन सौ कन्याओं की कहानी कहना बिलकुल अप्रासंगिक था। लेकिन फिर भी रामायण के लेखक ने इस कथा को यहाँ जोड़ा। इसका कारण केवल यही समझ में आता है कि उनका उद्देश्य था कि स्त्रियों को सिखाया जाए कि उन का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता। वे पहले पिता की संपत्ति होती हैं और विवाह के बाद में वे पति की संपत्ति हो जाती हैं।
महान रामायण यही सिखाती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस?
जो भी हो, जरा यहाँ टिपिया दीजिए.....