महेन्द्र नेह ने पिछले दिनों कुछ पद लिखे हैं, उन में से एक यहाँ प्रस्तुत है।
उन के अन्य पद भी आप अनवरत पर पढ़ते रहेंगे।
'पद'
महेन्द्र 'नेह'
भाई ने भाई मारा रे
एक ही माँ की गोद पले दोउ नैनन के दो तारा रे।।
जोते खेत निराई कीनी बिगड़ा भाग संवारा रे।
दोनों का संग बहा पसीना घर में हुआ उजारा रे।।
अच्छी फसल हुई बोहरे का सारा कर्ज उतारा रे।
सूरत बदली, सीरत बदली किलक उठा घर सारा रे।।
कुछ दिन बाद स्वार्थ ने घर में अपना डेरा डाला रे।
खेत बॅंट गये, बँट गये रिश्ते, रुका नहीं बॅंटवारा रे।।
कोई नहीं पूछता किसने हरा भरा घर जारा रे।
रक्तिम हुई धरा, अम्बर में घुप्प हुआ अॅंधियारा रे।।
पारिवारिक झगडे हुबहू वर्णन --बहुत खूब सूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंlatest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
latest post,नेताजी कहीन है।
देख घर की दुर्दशा करेजा फट गया सारा रे
जवाब देंहटाएंमाँ बन गई बेचारी, और बाप हुआ बेचारा रे
बहुत सम-सामयिक पद हैं द्विवेदी जी, आपका आभार इसे साझा करने के लिए और 'नेह' जी को बधाई।
सूरत बदली, सीरत बदली किलक उठा घर सारा रे।।
जवाब देंहटाएंकुछ दिन बाद स्वार्थ ने घर में अपना डेरा डाला रे।
खेत बॅंट गये, बँट गये रिश्ते, रुका नहीं बॅंटवारा रे।।
कोई नहीं पूछता किसने हरा भरा घर जारा रे।
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रचना के माध्यम से पारिवारिक कलह का सटीक वर्णन
आभार
बहुत खूब ..
जवाब देंहटाएंसमय के साथ बदलते पारिवार के स्वरूप का यथार्थ
जवाब देंहटाएंवर्णन ।
स्वार्थ दृष्टिगत संबंधों में,
जवाब देंहटाएंजीवन बीता अनुबंधों में,
हकीकत से रूबरू कराती रचना
जवाब देंहटाएंकठिन समय है.
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