सुबह सुबह मैं अपने घर ऑफिस में बैठा काम कर रहा था कि आदेश हुआ -छत पर चलो¡ मैं ने पूछा- क्यों? तो उत्तमार्ध कहने लगी -बन्दर आ गए हैं, उन्हें भगाना है, मुझे आलू के चिप्स सुखाने हैं धूप में।
आज नींद जल्दी खुल गई थी। उत्तमार्ध रसोई में थी। मैं पानी पीने उधर गया तो रात को बनाए हुए चिप्स फिटकरी के पानी में उबाले जा रहे थे। उन्हें सुखाना तो निहायत जरूरी था। मैं ने कहा- बन्दर भागेंगे नहीं। वैसे ही चले जाएंगे। इधर उन की रुचि का कुछ नहीं है। बस वे रात के आसरे से आज की कर्मस्थली की और जाते हुए इधर से गुजर रहे होंगे। बस निरीक्षण करते जा रहे होंगे कि इधर कुछ उन की रुचि का तो नहीं है। तभी एक बन्दर नीचे आंगन में उतरा और पक्षियों के लिए रखा गए पानी के पाउण्डे से पानी पीने लगा। जैसा सोचा था। कुछ देर बाद श्रीमती जी छत पर चली गईं। उन के जाने के बाद मैं भी छत पर पहुँचा। दूर दूर तक बन्दर नहीं थे। फिर भी मैं ने पूछा -बन्दर चले गए?
-बन्दर तो तभी चले गए। वे आधी चटाई पर चिप्स फैला चुकी थी। कहने लगी – बाकी के चिप्स आप सुखा दीजिए। मैं तब तक नीचे से और ले आती हूँ। मुझे आश्चर्य हुआ –अभी और हैं? उन्हों ने कहा –हाँ। पर मुझ से तो नीचे बैठा नहीं जाएगा। डाक्टर ने उकडूँ बैठने से मना किया है। बैठ तो जाउंगा, पर उठने में परेशानी होगी। वे बोली –चलो रहने दो। मैं फैला दूंगी। आप ध्यान रखिएगा इतने मैं बाकी के ले आती हूँ। वे नीचे उतर गईं।
मैं फालतू कैसे वहाँ खड़ा रहता। छत पर कुर्सी या स्टूल भी न था जिस पर बैठ जाता। मैं चटाई के नजदीक नीचे ही बैठ गया। चिप्स फैलाने लगा। जब तक वे लौटी, मैं लगभग सारे चिप्स फैला चुका था। फिर भी चटाई पर कुछ स्थान शेष था। उन्हों ने कुछ चिप्स चटाई पर डाल दिए । मैं फैलाने लगा। वे दूसरी ओर एक पुरानी साड़ी पर चिप्स फैलाने लगी। मैं फालतू हो गया तो नीचे आ गया। कुछ देर बाद वे भी नीचे उतर आई। मैं शेव बनाने लगा तभी एक मुवक्किल दफ्तर में नमूदार हुआ। मैं दफ्तर जा कर बैठ गया। मुवक्क्लों से निपटते निपटते ग्यारह बज गए। उत्तमार्ध ने मुझे स्नान करने का आदेश दिया तो मैं उठ कर स्नानघर चला गया।
स्नान कर के निकला तो तले हुएचिप्स तैयार थे। मैं ने पूछा –इतनी जल्दी सूख भी गए और तल भी गए। वे बोली -ये तो कल बनाए जो हैं।
बचपन से ही चिप्स घर पर बनते देखे हैं। तब हम इन्हें चिप्स नहीं कापे कहा करते थे। चिप्स नाम तो बाद में महानगरीय लोगों से सुनने को मिला। अब कापा शब्द गायब ही हो गया है। घर के बने चिप्स खाने में जो स्वाद है वह बाजार के थैली पैक चिप्स और हलवाई की दुकान के चिप्स में कहाँ? सब का बनाने का तरीका भिन्न है। घरों पर भी तरीका बदल गया है। पहले आलू को हलका उबाल कर छिलका उतारा जाता था और फिर बना कर सुखाए जाते थे। अब उन्हें चाकू से छील कर सीधे पानी में चिप्स बना दिए जाते हैं। फिर फिटकरी के पानी में उन्हें उबाल कर धूप में सुखा कर संग्रह कर लिया जाता है। उन्हें कभी भी तल कर नमक-मिर्च और अन्य मसाले लगा कर खाया जाता है। हलवाई उन्हें सीधे फिटकरी के पानी में बना बिना उबाले और सुखाए तल देता है। ये फैक्ट्री वाले क्या करते हैं? ये तो वे ही जानें।
फैक्ट्री वाले उसमे स्वाद के लिए मछली ,सूअर और पता नहीं किस2 का छमका लगाते हैं .
जवाब देंहटाएंइनकी बात ही कुछ और है
जवाब देंहटाएंबचपन याद आ गया, माँ के साथ मिलकर बनाया करते थे ...हमलोग तो सुखाने उठाने का ही काम करते थे...पूरे महल्ले में किसी समारोह सा सब चिप्स बनाने की तैयारियों में लगे होते थे .
जवाब देंहटाएंAaloo ke Chips... Waaah..
जवाब देंहटाएंचित्र देखकर तो मुंह पानी से पूरा भर गया -ये अच्छे लग रहे हैं !
जवाब देंहटाएंचिप्स तो प्रतिवर्षानुसार देखी-भाली होने के कारण ठीक ही ठीक है किन्तु "उत्तमार्ध" जैसा नया शब्द ज्ञानार्जन में सहायक लगा । धन्यवाद सहित...
जवाब देंहटाएंपरसों तो एक थाली खा गया पूरे. कई वर्षों बाद घर के बने हुये मिले थे.
जवाब देंहटाएंपरसों तो एक थाली खा गया पूरे. कई वर्षों बाद घर के बने हुये मिले थे.
जवाब देंहटाएंअपने घर में बनी हर चीज का स्वाद ही कुछ और होता है. वैसे बंदर चिप्स नहीं खाते हैं आपकी पोस्ट से ही पता चला. फिर भी मैंने वैष्णो देवी आदि की यात्रा पर बच्चों से पैकेट छीनकर ले जाते बहुत देखें है.
जवाब देंहटाएंबचपन में होली के पकवान जैसे चिप्स, पापड आदि बनाने में मम्मी की मदद किया करता था। वे दिन याद आ गये। वैसे Better Half की जगह उत्तमार्ध का प्रयोग बडा रोचक लगा।
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