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बुधवार, 8 जून 2011

सुर्ख उस ने गुलाब भेजा है

कुमार शिव
नवरत पर आप ने कुमार शिव की कुछ रचनाएँ पढ़ी हैं। उन के गीतों, ग़ज़लों और कविताओं में रूमानियत का रंग सदैव दिखाई देता है। सही बात तो यह है कि बिना रूमानियत के कोई नया काम संभव ही नहीं। यहाँ तक कि रूमानियत से भरी रचनाओं को अनेक अर्थों के साथ समझा जा सकता है। भक्ति काल का सारा काव्य रूमानियत से भरा पड़ा है। निर्गुणपंथी कबीर की रचनाओं में  हमेशा रूमानियत देखी जा सकती है। यह रूमानियत ही है जो उन्हें परिवर्तनकामी बनाती है। कुमार शिव की ऐसी ही एक ग़ज़ल यहाँ प्रस्तुत है ...


सुर्ख उस ने गुलाब भेजा है

  •  कुमार शिव

आँसुओं का हिसाब भेजा है
उस ने ख़त का जवाब भेजा है

जिस को मैं जागते हुए देखूँ

उस ने कैसा ये ख़्वाब भेजा है

 
तीरगी दिल की हो गई रोशन
ख़त नहीं आफ़ताब भेजा है

खुशबुओं के सफेद कागज पर

हुस्न को बेनक़ाब भेजा है

होठ चस्पा किए हैं हर्फों पर

सुर्ख उस ने गुलाब भेजा है।












11 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन....आज भी आनन्द आया.

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  2. वाह! बहुत ही खूबसूरत गज़ल... कुमार शिव जी ने लफ़्ज़ों को बहुत ही करीने से सजाया है...

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  3. तीरगी दिल की हो गई रोशन
    ख़त नहीं आफ़ताब भेजा है...वाह

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  4. खुशबुओं के सफेद कागज पर
    हुस्न को बेनक़ाब भेजा है
    वाह लाजवाब गज़ल पढवाई। आभार।

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  5. फिर निराला जी की याद आ गयी

    अबे, सुन बे गुलाब
    भूल मत जो पाई खुशबू, रंगोआब,

    खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट,
    डाल पर इतरा रहा है कैपिटलिस्ट;

    (~निराला)

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