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शुक्रवार, 17 जून 2011

ख़ौफ तारी था उसका


'कविता'

ख़ौफ तारी था उसका 
  •  दिनेशराय द्विवेदी

उस के नाम से डरा कर, माताएँ
सुलाती थीं अपने बच्चों को

उस के शहर का रुख़ करने की खबर से
खड़े हो जाते थे रोंगटे
शहरवासियों के

उसे देखा जाता था
सिर्फ चित्रों, और वीडियो में
सुनी जा सकती थी उस की आवाज
सिर्फ रिकॉर्ड की हुई।

ख़ौफ तारी था उस का
सारे जहाँ में
जहाँ जहाँ बस्तियाँ थीं
जहाँ जहाँ इन्सान थे

कुछ भी कर सकता था वह
कोई भी हो सकता था
उस का निशाना, बस शर्त इतनी थी
कि इन्सानों पर ख़ौफ तारी रहे

तलाश जारी थी उस की
सारी जहाँ में
जंगलों में, वीरान पहाड़ियों में
हर उस जगह, जहाँ छुप सकता था
इन्सान की निगाहों से बचाकर खुद को

बरसों की तलाश के बाद मिला
इंसानों की एक बस्ती में
एक बंद घर में सुरक्षा की दीवारों के बीच
जवान बीबी के साथ

डरता हुआ अपने ही बुढ़ापे से
जवानी बरकरार रखने वाली
दवाइयों की खेप के बीच
अपनी ही तस्वीरें देखते हुए

मिनटों में हो गया तमाम
कहते हैं ... ठेला था जिन्होंने
उसे इस रास्ते पर
उन्होंने ही ठेल दिया उसे
समंदर की गहराइयों में

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14 टिप्‍पणियां:

  1. हर खौफ़ का अंत तो होता ही है

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  2. जहर जहर को मारता है यही अन्त होना था सांम्प ने साँप को डस लिया अच्छा किया। अच्छी रचना।

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  3. दवाब का निष्गमन दयनीय होता है।

    जवाब देंहटाएं
  4. मिनटों में हो गया तमाम
    कहते हैं ... ठेला था जिन्होंने
    उसे इस रास्ते पर
    उन्होंने ही ठेल दिया उसे
    समंदर की गहराइयों में
    अच्छी अभिव्यक्ति । आभाऱ ।



    एक नास्तिक हिंदू की उलझनें

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  5. भय और आतंक का भी अंत जरुर होता है ...

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  6. paapka ghadaa aek din jarur bharataa hai.laaden ke saath bhi yahi hua.aapne bahut hi achche tarike se yathart batati hui saarthak rachanaa.badhaai aapko.



    please visit my blog.thanks.

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  7. बहुत खूब .. अंत तो हर किसी का होता है ... और उस अंतिम अवस्था में दयनीय होता है ...

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