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शुक्रवार, 6 मई 2011

अग्रवाल जी की भाव विह्वलता और साढू़ भाई का प्रेम

भाव विह्वल
डॉ.गिरिजाशरण अग्रवाल 
पॉवर पाइंट प्रस्तुति के बाद जैसे ही सब अतिथि मंचासीन हुए, सब से पहले हिन्दी साहित्य निकेतन के सचिव डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल बोलने खड़े हुए। आयोजन के मुख्य यजमान होने के कारण यह उन का अधिकार था कि वे अतिथियों का स्वागत कर उन का आभार प्रकट करें। लेकिन बेटी द्वारा प्रस्तुत पॉवर पाइंट प्रस्तुति ने उन्हें अत्यन्त भावविह्वल कर दिया था। वे उसी से आरंभ हुए, उन के स्वर से लग रहा था कि आत्मजा ने उन्हें जो  सम्मान दिया था उस के स्नेह से उत्पन्न आह्लाद उन्हें रुला देगा, जिसे वे जबरन रोके हुए थे। उन्हों ने बताया कि इस प्रस्तुति के विनिर्माण को दोनों बेटियों ने उन से छुपाया और उन के सो जाने के बाद रात-रात भर जाग कर उसे तैयार किया। निस्संदेह यह प्रस्तुति उन के जीवन की अद्भुत घटना थी जिसे वे शायद जीवन भर विस्मृत न कर सकेंगे। अपनी भावविह्वलता को नियंत्रित कर लेने के उपरांत उन्हों ने सभी अतिथियों का स्वागत किया और हिंदी साहित्य निकेतन की स्थापना से ले कर आज तक किए गए स्वयं के अथक प्रयत्नों के साथ मित्रों के सहयोग का स्मरण भी किया। उन्होंने कार्यक्रम के अध्यक्ष अशोक चक्रधर को अपना छोटा भाई बताते हुए उन के योगदान की चर्चा की। उन्हों ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री 'निशंक' की उपस्थिति में यह भी कहा कि निकेतन का विकास बिना किसी सरकारी सहायता के वे कर पाए हैं। उन के स्वर में सहायता न मिल पाने का दर्द अधिक था।

गिरिराज शरण जी के इस वक्तव्य के उपरांत धड़ाधड़ एक के बाद एक पुस्तकों और पत्रिकाओं के विमोचन हुए। बंडलों का खोला जाना, फिर सभी अतिथियों के पास एक-एक प्रति का पहुँचना और फिर सभी के द्वारा एक-एक प्रति को दर्शकाभिमुख कर प्रदर्शित कर चित्र खिंचवाना, आज कल विमोचन की सामान्य प्रक्रिया हो चली है, जो निभाई गई। मौके की नोईयत को देखते हुए यह काम इतनी त्वरित गति से हुआ कि कभी-कभी कोई अतिथि विमोचित पुस्तक/पत्रिका का अंतिम कवर पृष्ठ भी दर्शकाभिमुख कर देता और पड़ौसी अतिथि उसे ठोसा देकर उस का ध्यान आकर्षित करता और उस की आमुख दर्शकाभिमुख करवाता। इस समूह विमोचन में मुख्यमंत्री निशंक ने एक अपनी ही पुस्तक का विमोचन भी किया। जिस के बारे में गिरिराज जी ने बताया कि मंच से उस के विमोचन की घोषणा होने तक भी उन्हें यह पता नहीं लगने दिया गया था कि वे अपनी ही पुस्तक का विमोचन करने जा रहे हैं।
ब्लागिरी पर पुस्तक का विमोचन
स के उपरांत 64 ब्लागरों का सम्मान आरंभ हो गया। अब मंच संचालन का दायित्व एक बार पुनः रविन्द्र प्रभात ने अपने हाथों में ले लिया था। ऐसा दृष्य था जैसे किसी स्कूली प्रतियोगिता का समापन समारोह हो और प्रतियोगी बालक-बालिकाओं को पुरस्कार वितरित किए जा रहे हों। ब्लागरों में भी पुरस्कार प्राप्त करने का उत्साह बालकों जैसा ही था, वे भी पूरी तरह आह्लादित थे। रविन्द्र जी एक नाम पुकारते, फिर वह दर्शकों में से निकल कर मंच तक पहुँचता, अपना पुरस्कार लेता, तब तक अगले ब्लागर का नाम लिया जा रहा होता। कुछ ही देर बाद दर्शक यह पता करने में असमर्थ हो गए कि जो ब्लागर सम्मान ग्रहण कर रहा है, वह कौन है। दर्शकों की चौथाई संख्या तो पुरस्कृत व्यक्तियों की ही थी। इस बीच दर्शकों के बीच हलचल बढ़ गई और शोर भी। हर पुरस्कार पर कम या अधिक करतल ध्वनि गूंज उठती। समय सात से ऊपर हो चुका था। पुरस्कार वितरण, ग्रहण, दर्शन और व्यवस्था में सब इतने मशगूल थे कि आमंत्रण पत्र में वर्णित दूसरा सत्र और उस के अतिथि सभी से विस्मृत हो गए।

मुझे मंच पर एक लंबा सा दाढ़ी वाला नौजवान दिखा जो एक कैमरा स्टेंड पर अपना कैमरा टिकाए चित्र ले रहा था। । मैं पहली बार उसे देख रहा था, फिर भी तुरंत ही पहचान गया।  मैं ने पास बैठे शाहनवाज को उसे दिखा कर पूछा -इसे पहचान रहे हो? वे कुछ देर विस्मय से उस नौजवान को देखते रहे, फिर कहा -कहीं यह सिरफिरा तो नहीं? मैं ने बताया वही है, यह भी कहा कि इस से समारोह के बाद मिलेंगे। हम फिर पुरस्कार समारोह के दर्शन में व्यस्त हो गए। कुछ ही देर में मैं ने देखा कि शाहनवाज पास की सीट से गायब हैं। तभी मैं ने रतनसिंह शेखावत को हॉल से बाहर जाते देखा। वे फरीदाबाद में रहते हैं और मेरी सोच थी कि समारोह की समाप्ति के बाद मैं उन के वाहन पर लिफ्ट ले कर निकल लूंगा। शोभा वहीं बेटी के घर टिकी हुई थी। हमें अगले दिन वापस भी आना था। मैं भी तुरंत उन के पीछे बाहर की ओर लपका। बाहर निकल कर देखा तो बहुत लोग लॉबी में आपस में मिलने और विमोचित पुस्तकें खरीदने की जुगाड़ में थे। रतनसिंह जी उसी भीड़ में खो गए थे। कुछ ही देर में मैं ने उन्हें तलाश लिया। मैं उन से पहली बार प्रत्यक्ष हो रहा था।
रतनसिंह शेखावत
हले भी दो बार अवसर था जब हम मिल सकते थे। लेकिन जब मैं फरीदाबाद में होता तो वे व्यस्त होते। हम नहीं मिल सके। वे मेरे लिए एक महत्वपूर्ण ब्लागर हैं, इस मायने में कि वे अपने ब्लाग के माध्यम से राजस्थान के इतिहास की अनेक अलिखित कथाओं को सामने ले कर आए हैं। मेरी भी इस काम में रुचि रही है। हम मिले तो कुछ औपचारिक बातों के बाद वे एक कहानी बताने लगे कि कैसे शेखावतों का एक हिस्सा राजस्थान से गायब हो गया था और कैसे उन के वंशज अब उत्तर प्रदेश में मिल गए। मेरे पूछने पर उन्हों ने बताया कि वे बाइक से आए हैं। मैं ने उन्हें बताया कि मैं तो उन से लिफ्ट ले कर फरीदाबाद लौटने की सोचता रहा। उन्हों ने ही मुझे सुझाया कि मोहिन्द्र कुमार जी जाएँगे मैं उन के साथ निकल लूँ। उन से परिचय भी कराया। मैं ने मोहिन्द्र जी से कहा तो वे मुझे वापसी में फरीदाबाद सेक्टर 28 तक लिफ्ट देने को तैयार हो गए। मेरा रात्रि को ही फरीदाबाद लौटना तय हो गया था। यह अच्छा ही हुआ कि यह रमेश कुमार जैन सिरफिरा से मिलने के पहले ही तय हो गया। पहले उन से मिल लिया होता तो शायद वे मुझे अपने घर ले जा चुके होते। मैंने वहाँ आस पास निगाह दौड़ाई तो शाहनवाज दिखाई न दिए। पुस्तक काउंटर पर पुस्तकों को घेर कर लोग खड़े थे। मुझे वहाँ तक खुद के पहुँचने की संभावना क्षीण नजर आई तो मैं वापस हॉल में चला गया। पुरस्कार वितरण अंतिम  दौर में था। इस बीच मेरी मुलाकात निर्मला कपिला जी से हो गई। जैसा चित्र में वे दिखाई देती हैं उस से अधिक सुंदर और ममताशील थीं। मैं सोचता रहा कि यदि मेरी कोई बड़ी बहिन होती तो ऐसी ही होतीं। मैं उन की कहानियों का मुरीद हूँ। ऐसी सच्ची कहानियाँ मुझे कहीं नहीं मिलीं। वे पात्रों के चरित्र चित्रण में जरा कंजूस हैं और बीच की बहुत सी घटनाओं का अनुमान पाठकों पर छोड़ देती हैं। वे अपनी कहानी को सीधे मुख्य पात्रों के माध्यम से ही कहती हैं, यदि वे कंजूसी और पाठकों के अनुमान का सहारा न लें और कुछ सहायक पात्रों का उपयोग करने लगें तो उन की बहुत सी कहानियाँ हैं जो उपन्यास बनने को तैयार बैठी हैं। यह उन की किस्सागोई की विलक्षणता है कि वे एक उपन्यास की विषय वस्तु आप को एक कहानी में दे देती हैं। हो सकता है कि वे भविष्य का साहित्य रच रही हों। जब उपन्यास के लिए पाठक के पास वक्त ही नहीं होगा और वे एक छोटी सी कहानी में सारी विषय वस्तु को जानना चाहेंगे।
निर्मला कपिला जी, सम्मान ग्रहण करते हुए
पिला जी के साथ उन के पति भी थे। उन का स्वभाव लगा बहुत ही सरल प्रतीत हुआ। कहते हैं कि किसी पुरुष की सफलता में किसी स्त्री का हाथ अवश्य होता है। उन से मिल कर मुझे लगा कि कपिला जी के इतनी अच्छी कथाकार होने और एक नौजवान विद्यार्थी की तरह इस आयु में ग़ज़लों पर अभ्यास कर के उस में सफलता हासिल कर प्रसन्नता प्राप्त करने में निर्मला जी का बखूबी साथ दिया है। उन की सफलता के एक स्तंभ वे ही हैं। वे दोनों हॉल में मेरे समीप ही बैठ गए। हम बतियाने लगे। इस बीच सम्मान समारोह पूरा हो कर मंचासीन लोगों के वक्तव्य आरंभ हो चुके थे। किस ने क्या कहा इस का ब्यौरा उस दिन जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति, उस के आधार पर बने समाचारों और ब्लागरों व कुछ पत्रकारों द्वारा समाचार पत्रों और वेबसाइटों पर प्रस्तुत विवरणों में आप लोग पढ़ चुके होंगे। अतिरिक्त रूप से मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि मुख्यमंत्री ने अपने भाषण का सारा जोर इस बात में लगा दिया कि उन्हों ने उत्तराखंड को विकास दिया है, गंगा को साफ किया है और पर्यटकों को सुविधाएँ प्रदान की हैं। वे हर किसी को उत्तराखंड यात्रा पर बुलाने का न्यौता दे रहे थे। उन्हों ने अग्रवाल जी की बहुत प्रशंसा की कि उन्हों ने असुविधाओं के बीच प्रकाशन संस्थान स्थापित कर उत्तराखंड के लेखकों को एक मंच प्रदान कर हिन्दी के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान किया। उन्हों ने अग्रवाल जी को किसी तरह की सुविधा उपलब्ध कराने या सहायता प्रदान करने का कोई आश्वासन तक नहीं दिया। अभी अभी विवादों के घेरे में आये निशंक फिर से किसी नए विवाद को जन्म नहीं देना चाहते थे।  उधर चक्रधर जी ने अपनी लच्छेदार शैली में बोलते हुए कहा कि वे अग्रवाल जी के भाई नहीं हो कर साढू़ भाई हैं। शायद भाई से अधिक प्रेम साढ़ू भाई में होता है, वहाँ आपसी प्रेम के साथ-साथ पत्नियों का प्रेम भी तो जुड़ जाता है। 

20 टिप्‍पणियां:

  1. द्विवेदी जी अद्भुद रिपोर्ट... सच भी.. व्यंग्य भी... और पंक्तियों के बीच छुपे हैं अर्थ भी... काश उन्हें भी समझ पाते हम... निशंक जी तो आने वाले स्कूली छुट्टियों में उत्तराँचल के पर्यटन का प्रस्तुतीकरण दे रहे थे.. वास्तव में उन्हें नहीं पता था कि यह एक ब्लोगर सम्मलेन है... इसी से जाहिर होता है कितना गैप था आयोजक और प्रायोजक के बीच... अगले अंक की प्रतीक्षा में..

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  2. आपकी रिपोर्ट सहज प्रवाह में पढ़ते गए....ऐसा सजीव चित्रण कि लगा हम भी वहीं कहीं थे...

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  3. आपकी रिपोर्ट सहज प्रवाह में पढ़ते गए....ऐसा सजीव चित्रण कि लगा हम भी वहीं कहीं थे...

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  4. पँडित जी, आप बहुत कुछ बिटविन दॅ लाइन्स कह रहे हैं,
    अभी निंदिया रहा हूँ, इस वृताँत को एक बार दुबारा पढूँगा

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  5. आनन्द दायी विस्तृत रिपोर्ट पढ़कर हर्षित हो लिए..आभार आपका.

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  6. पॉवर प्‍वाइंट भी गुप्‍त और विमोचन की पुस्‍तक भी लेखक से गुप्‍त. रहस्‍य-रोमांच से भरपूर.

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  7. जो इसमें पढ़ा , वो अन्य किसी दूसरी रिपोर्ट में नहीं मिला ...जो लिखा है वह भी और नहीं लिखा मगर पढ़ा जा सकता है , वह भी !
    रोचक प्रस्तुति !

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  8. vaah bhuli bisri yaadon ki jivant riporting bdhaai ho .akhtar khan akela kota rajsthan

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  9. जबरदस्त रिपोर्ट -पढ़कर रोमांचित हुए बिना नहीं रहा जा सकता -कार्यक्रम नहीं लेखन शैली पर ...
    आल्हाद या आह्लाद ?

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  10. @Arvind Mishra
    अरविंद जी,
    आप्टे की संस्कृत शब्द कोष से जाँचने पर आह्लाद को ही सही पाया। एक शब्द की वर्तनी और उच्चारण सही करवाने के लिए आप का आभार!

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  11. बढ़िया रिपोर्ट लगी भाई जी !
    अरुण चन्द्र राय के बाद आपकी रिपोर्टिंग से कुछ नए तथ्य सामने आये हैं !
    अफ़सोस है कि इस प्रकार के आयोजनों में पारदर्शिता और मंतव्य अक्सर छिपे रहते हैं ! खैर, आप एक बेहतरीन रिपोर्टर है इसमें कोई संदेह नहीं ! हार्दिक शुभकामनायें !!

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  12. रिपोर्ट का हर अंक पढ़ लिया । सच्ची रिपोर्टिंग । और हाँ सतीश जी हर मीट का हिस्सा होते हैं पर जब हर मीट के बाद वो मासूमियत से कहते हैं की उनको छिपे हुए मंतव्य पता नहीं थे तो उनकी मासूमियत पर रश्क होता हैं । एक प्रायोजित पार्टी रही हैं सब मीट जो भी अब तक हुई हैं । किसी भी मीट का ब्लोगर से कोई लेना देना नहीं हैं । इस मीट की विस्तृत रिपोर्ट देख कर सोनिया गाँधी या लालू यादव की मीटिंग के लिये जहां पंडाल में वोटरों को लाया जाता हैं और खाना"पीना " दिया जाता हैं की याद आगयी । और सबसे बढ़िया बात जो मीटिंग करवाते हैं वो अपने कार्य सिध्ह करते हैं और बाकी ब्लोगर पर अहसान करते हैं की हिंदी ब्लोगिंग को वो ऊपर उठा रहे हैं । यही हाल रहा तो जल्दी ही "ऊपर उठ " जाएगी हिंदी ब्लोगिंग ।
    ऐसे लोगो का बहिष्कार करना चाहिये जो आम जनता से अभिव्यक्ति के वो माध्यम भी छीन कर अपना नाम उस पर लिखना चाहते हैं जो माध्यम गूगल ने फ्री दिया हैं

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  13. नमस्कार,
    आपने तो पूरा आँखों देखा हाल सुना दिया सम्मेलन का, अगली किश्त का इंतजार है अब तो।

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  14. साढ़ू भाईयों में पत्नी का प्रेम जुड़ जाता है कि बट जाता है।

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  15. आपका आंखों देखा हाल रोचक लगा।

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  16. गुरुवर:-हिन्दी साहित्य निकेतन के सचिव डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल ने कार्यक्रम के अध्यक्ष अशोक चक्रधर को अपना छोटा भाई बताते हुए उन के योगदान की चर्चा की। उन्हों ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री 'निशंक' की उपस्थिति में यह भी कहा कि निकेतन का विकास बिना किसी सरकारी सहायता के वे कर पाए हैं। उन के स्वर में सहायता न मिल पाने का दर्द अधिक था।

    सिरफिरा:-मैं तब ही पहुंचा था.

    गुरुवर:-अतिथि विमोचित पुस्तक/पत्रिका का अंतिम कवर पृष्ठ भी दर्शकाभिमुख कर देता और पड़ौसी अतिथि उसे ठोसा देकर उस का ध्यान आकर्षित करता.

    सिरफिरा:-यह उपरोक्त घटना हमारे कैमरे में कैद है

    गुरुवर:-रविन्द्र जी एक नाम पुकारते,फिर वह दर्शकों में से निकल कर मंच तक पहुँचता,अपना पुरस्कार लेता,तब तक अगले ब्लागर का नाम लिया जा रहा होता। कुछ ही देर बाद दर्शक यह पता करने में असमर्थ हो गए कि जो ब्लागर सम्मान ग्रहण कर रहा है,वह कौन है।

    सिरफिरा:-इस अफरा-तफरी में कार्टूनिस्ट श्री काजल कुमार का पुरस्कार आदरणीय श्रीमती निर्मला कपिला जी को दे दिया गया था. मैंने श्रीमती निर्मला कपिला जी को कहा भी था, मगर जल्दबाजी में मेरी बात शायद ठीक से सुन नहीं पाई थीं.फिर किसी सज्जन स्टेज से नीचे जाने पर उनको बताया था और जब दुबारा स्टेज पर आई थीं.तब मैंने बताया था कि-मैडम मैं "सिरफिरा" हूँ. जिसके ब्लॉग पर आप कभी-कभी टिप्पणी करती हैं.उपरोक्त घटना भी हमारे कैमरे में कैद है.

    गुरुवर:-मुझे मंच पर एक लंबा-सा दाढ़ी वाला नौजवान दिखा जो एक कैमरा स्टेंड पर अपना कैमरा टिकाए चित्र ले रहा था।मैं पहली बार उसे देख रहा था, फिर भी तुरंत ही पहचान गया। मैंने पास बैठे शाहनवाज को उसे दिखाकर पूछा-इसे पहचान रहे हो? वे कुछ देर विस्मय से उस नौजवान को देखते रहे,फिर कहा-कहीं यह "सिरफिरा" तो नहीं? मैंने बताया वही है,यह भी कहा कि-इससे समारोह के बाद मिलेंगे।

    सिरफिरा:-गुरुवर जी, ऐसा कैसे हो सकता था कि-आप अपने शिष्य को नहीं पहचानते?लेकिन मैंने कैमरा स्टेंड पर अपना कैमरा टिकाकर चित्र नहीं लिए थें. पहले स्टेज के नीचे से अच्छी लोकेशन के चित्र नहीं आने पर फिर स्टेज के ऊपर से लिए थें.हाँ,नाश्ता करने के बाद शुरू हुए कार्यक्रम की मैंने कैमरा स्टेंड पर अपना कैमरा टिकाकर रिकोटिंग(जो नाटक मंचित हुआ था उसको अपने ब्लॉग पर डालना चाहता हूँ,मगर यूटूब के माध्यम से डालनी नहीं आती हैं)व चित्र लिये थें.किसी प्रकार हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

    गुरुवर:-यह अच्छा ही हुआ कि यह रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" से मिलने के पहले ही तय हो गया। पहले उन से मिल लिया होता तो शायद वे मुझे अपने घर ले जा चुके होते।

    सिरफिरा:-काश!ऐसा नहीं हुआ होता तो मुझे आपकी सेवा का अवसर प्राप्त हो जाता.मगर अफ़सोस!शायद वो रात और अगला दिन हमारे द्वारा आपकी सेवा के लिए नहीं लिखा था.गरीब की झोपड़ी को आपका बेसब्री से इन्तजार रहेगा. अगले अंक की प्रतीक्षा में और दर्शनाभिलाषी-आपका नाचीज़ शिष्य.



    क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे.ऐसा मेरा विश्वास है.

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  17. बहुत सुंदर ओर रोचक लगा आंखॊ देखा विवरण, अच्छा रहा मै इस मे शामिल नही हुआ... धन्यवाद

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  18. कार्यक्रम में आपका सानिध्य बहुत अच्छा रहा |

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