पेज

रविवार, 15 मई 2011

पेट्रोल 100 रुपए लीटर न हुआ

कोई दो माह से हल्ला था कि तेल के दाम अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ रहे हैं, तेल कंपनियों को घाटा हो रहा है, भारत में कभी भी  दाम बढ़ाए जा सकते हैं। सांत्वना यह थी कि कम से कम चार राज्यों के चुनाव तक तो नहीं ही बढ़ेंगे। हम भी तसल्ली से बैठे हुए थे। जब चुनाव संपन्न हो गए तो चर्चा फिर गरम हो गई। हमें भी विश्वास हो गया कि अब तो दाम बढ़ने ही वाले हैं। हम अक्सर एक ही पेट्रोल पंप से पेट्रोल लेते हैं। हमें यह विश्वास है कि वहाँ पेट्रोल मे मिलावट न होगी और कम भी न दिया जाएगा। (कभी विश्वास टूट गया तो नया पेट्रोल पंप पकड़ेंगे)  11 मई को पेट्रोल पंप की और से निकले तो हजार रुपए का डलवा लिया और इंतजार करने लगे कि आधी रात को जरूर ही पेट्रोल के दाम बढ़ जाएंगे और सुबह हम अनुमान लगाएंगे कि ये हजार रुपए का पेट्रोल भराने पर कितने का फायदा हुआ। हमारी आदत है कि चाहे मुसीबत का पहाड़ टूटने वाला हो पर हम जरा से फायदे से इतने खुश हो जाते हैं कि मुसीबत भी रुई के बोरे सी आसान लगने लगती है।
स रात दाम न बढ़े। हम निश्चिंत हो गए। कल शाम जब हम काम से निकले तो पेट्रोल पंपों पर पेट्रोल वाहनों की लाइन लगी थी। कुछ पेट्रोल पंप पर कर्मचारी आराम कर रहे थे। उन्हों ने पेट्रोल खतम का बोर्ड चस्पा कर रखा था। हम समझ गए कि पेट्रोल के दाम बढ़ चुके हैं। हम चाहते तो थे कि हम भी सस्ते वाला पेट्रोल भरा लें। पर लाइन इतनी लंबी थी कि हो सकता था हमारा नंबर आते-आते 12 बज जाते और हमें लाइन का कोई लाभ न मिलता। कुछ पेट्रोल पंप ट्राई भी करते तो इतना पेट्रोल खप जाता कि लाभ बराबर हो जाता। 
ब आज सुबह अखबार से पता लगा कि पेट्रोल 62.08 रुपए से बढ़ कर 67.40 हो गया है, यानी अब हमें हर लीटर पर 5.32 पैसे अधिक देने पड़ेंगे। इसे कहते हैं दिन दहाड़े डाका पड़ना। पर इस डाके की रिपोर्ट कहीं नहीं हो सकती। डाका मुंसिफ डाले तो कौन उसे सजा दे? इतना सा दाम बढ़ा कर सरकार ने कोई अच्छा काम नहीं किया। सरकार को पेट्रोल का दाम पूरे 100 रुपए प्रति लीटर कर देना चाहिए था। उस के कई फायदे थे। पिछले पाँच-सात सालों से गृह मंत्रालय ने हमारे बाइक चलाने पर जो प्रतिबंध लगाया है वह हट जाता। हम कार घर में खड़ी कर देते और हमें बाइक चलाने को मिल जाती। दूसरे कार से लिफ्ट मांगने वालों को मैं यह कह कर मना कर सकता था कि मैं जरा बाइक में नया हूँ। यह तो थे मेरे व्यक्तिगत फायदे, पर सरकार को उस से क्या लेना-देना। पर सरकार को भी बहुत फायदे थे। जैसे मैं अदालत कार न ले जाता तो उस के पार्क करने के स्थान पर कम से कम तीन बाइक और पार्क हो जातीं। पार्किंग की समस्या का हल निकल जाता।
दाम सौ रुपये प्रति लीटर होने से ये भी फायदा होता कि फिर दाम जल्दी-जल्दी नहीं बढ़ाने पड़ते। तेल कंपनियाँ कम से कम साल-छह महीने यह नहीं कह सकती थी कि उन्हें घाटा हो रहा है। उन्हें होने वाले लाभ का हिसाब रखा जाता और घाटा आरंभ होने पर भी उसे पिछला लाभ बराबर न हो जाए तब तक वे बोलने लायक भी नहीं होतीं। यकायक दाम बढ़ने से बहुत सी बड़ी गाड़ियाँ सड़कों और पार्किंग में नजर आना बंद हो जातीं। सड़कों पर ट्रेफिक कुछ कम होता तो भिड़ने-भिड़ाने के अवसर भी कम होते और इंश्योरेंस कंपनियों को मोटर दुर्घटनाओं में देने वाले मुआवजे के कारण जो नुकसान हो रहा है वह खतम हो जाता वे भी लाभ में आ जातीं। पेट्रोल गाड़ियों की बिक्री कुछ कम होने से भी सड़कों को कुछ राहत मिलती। यदि दाम बढ़ाने का यह काम अगले तीन-चार साल तक टाला जा सकता तो फिर अगले चुनाव तक तो लोग भूल ही जाते कि पेट्रोल के दाम भी कभी बढ़े थे।
खैर, मैं ने हिसाब लगाया कि कल तक मेरी कार में बारह लीटर पेट्रोल मौजूद था। इस तरह मुझे कुल 63.84 रुपए का नकद फायदा हुआ। मैं कल कार में 16 लीटर पेट्रोल और भरवा सकता था। यदि यह भरवा लेता तो मुझे 85.12 रुपए का फायदा और होता। लेकिन मेरे  1080 रुपए कम से कम चार-पाँच दिन पहले ही खर्च हो जाते। पेट्रोल भरवाने के लिए कम से कम तीन घंटे तो पेट्रोल पंप पर लाइन में बिताने पड़ते। इस बीच हजार रुपए की कमाई कराने वाला मुवक्किल हाथ से निकल जाता। कुल मिला कर मैं ने पेट्रोल भराने के लिए लाइन में लग कर अच्छा ही किया। हाँ, दाम सौ रुपए प्रति लीटर हो जाता तो मैं जरूर लाइन में लग पड़ता। फिर चाहे दस हजार का मुवक्किल क्यों न छूट जाता।

22 टिप्‍पणियां:

  1. चिंता ना करें ...
    पेट्रोल १०० रुपये प्रति लीटर भी होगा एवं आपको और मुझे बाइक भी बापस मिलेगी ! अगले साल यह हालात आ जाने चाहिए !
    हार्दिक शुभकामनायें !!

    जवाब देंहटाएं
  2. बिजली वाली गाड़ी लिया जाये?

    जवाब देंहटाएं
  3. फिलहाल तो फायदा हुआ सो पार्टी कर ही डालिये..:)

    जवाब देंहटाएं
  4. 100 रूपये लीटर होने का एक फायदा यह भी होगा कि हिसाब किताब साफ और आसान हो जायेगा.
    मुबारक हो इस फायदे के लिये

    जवाब देंहटाएं
  5. पेट्रोल डेढ़ सौ रूपये लीटर होगा तब भी तेल कम्पनियों का घाटा कम ना होगा .... एक एक तेल कम्पनियां तकरीबन २००० करोड़ रुपया विज्ञापन पर सालाना खर्च करती हैं.... बढ़िया व्यंग्य

    जवाब देंहटाएं
  6. आपने यह गणना प्रस्तुत करके मुझे तो डरा ही दिया। छुट्टी पर घर जा रहा हूँ। कई शादियाँ हैं जिन्हें छोड़ नहीं सकता। सब जगह कार से ही सपरिवार जाना है। अब जोड़ता हूँ कि कितना अतिरोक्त खर्चना पड़ेगा।
    :(

    जवाब देंहटाएं
  7. देखा! सरकार ने आम आदमी के ३५ रूपए बचा दिए

    जवाब देंहटाएं
  8. प्यारे द्विवेदी अंकल, प्रणाम।
    मुझे मालुम है बुढ़ापे में बाइक का शौक गृह मंत्रालय के या पैट्रोल के दाम की वजह से नहीं है।
    आप जब बाइक पे चलोगे तो कोई न कोई तो आपसे भिड़ ही जायेगा और फिर उससे कम्पनसेशन वसूलोगे अंकलजी, आप बहुत नॉटी वकील हो आय नो दैट।
    है ना बोलो बोलो ? हा हा।

    जवाब देंहटाएं
  9. हज़ार रुपये का पेट्रोल डला कर कितेने दिन खुश होंगे साहब :)

    जवाब देंहटाएं
  10. गुरुवर जी, गुरु-चेले की बातचीत को पूर्ण विराम देकर आपने बहुत अच्छा किया. लोगों ने ब्लॉग पर आना छोड़ दिया था. अब लोगों का सच सुनने, पढने और देखने वाला दिल(मिलावट की चीजें खाकर) कमजोर हो चुका हैं. आपका पेशा(वकालत) और मेरा पेशा(पत्रकारिता) कुछ ऐसा इनसे कोई जल्दी से उलझना नहीं चाहता और बहस में जीत नहीं सकते हैं. इसलिए दूर-दूर से नमस्ते(पोस्ट पढ़कर लौट जाना) करना उचित समझाते हैं


    कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.?

    जवाब देंहटाएं
  11. यह तो होना ही था, अब समझ में यह नहीं आता की हाय हाय करें? या मन मसोस कर चुप बैठ जाएँ?

    जवाब देंहटाएं
  12. जी , आपकी आवाज़ सरकार तक पहुँच रही है । जल्दी ही अमल होगा ।

    जवाब देंहटाएं
  13. लगता है अल्‍लाह आपकी तमन्‍ना जल्‍द पूरी करेगा.

    जवाब देंहटाएं
  14. भारत मे हर चीज के दाम बढते हे, कभी घटते नही देखे? क्या कभी घटते भी हे?
    आप का लेख एक दम से सटीक लगा सहमत हे आप से, आप ट्योटा कार ले ले जो शहर मे बिना पेट्रोल के चलती, ८०,९० किलो मीटर की रफ़तार से, उस के बाद पेट्रोल से चलती हे

    जवाब देंहटाएं
  15. सहज और स्वाभाविक ही था यह पेट्रोल अर्थ-अनर्थ चिंतन

    जवाब देंहटाएं
  16. पेट्रोल के मामले में पठान फॉर्मूला अपनाना चाहिए...

    बनिया...ओ पठान साहब, मंहगाई कितना फाड़ू हो गया...पेट्रोल को देखो, आग़ लग गई है आग...62 से सीधे 67...

    पठान...ओ लाले की जान हमको 62-67 से कोई फ़र्क नहीं पड़ती...पहले भी 100 का डलवाती थी, अब भी 100 का डलवाती है...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  17. Dwevedi ji, ab car me ATF daaliye. wo ab petrol se sasta ho gaya hai.

    जवाब देंहटाएं
  18. इस किसम के सारे डर देर-सवेर सत्य होना ही है ।

    जवाब देंहटाएं
  19. आपकी पोस्ट एक नये किसिम के आशावाद को जन्म दे रही है ।
    यदि वाकई पेट्रोल 100 रु. प्रतिलीटर होता तो....
    यह नहीं होने से हमारे 33 रु. प्रतिलीटर बच रहे हैं, या नहीं ?

    जवाब देंहटाएं
  20. तेल की कम्पनियां सरकार की हैं, टेक्स भी सरकार की जेब में जाता है, पता नहीं घाटा किसे और कैसे होता है? इस घाटे का नाम लेकर सरकार जब चाहे जनता की जेब काट लेती है. देश का सबसे बड़ा जेबकतरा है वित्त मंत्री.

    जवाब देंहटाएं

कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस?
जो भी हो, जरा यहाँ टिपिया दीजिए.....