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सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

"बेहतर कैसे लिखा जाए?"

ल मैं ने कहा कि साहित्य पुस्तकों में सीमित नहीं रह सकता, उसे इंटरनेट पर आना होगा।  वास्तविकता यह है कि जब से मनुष्य ने लिपि का आविष्कार किया और वह उस का प्रयोग करते हुए अपनी अभिव्यक्ति को दूसरों तक पहुँचाने लगा, तब से ही वह उस माध्यम को तलाशने लगा जहाँ लिपि को उकेरा जा सके और दूसरों तक पहुँचाया जा सके।  मिट्टी की मोहरें, पौधों के पत्ते, पेड़ों की छालें, कपड़ा, कागज, प्लास्टिक और न जाने किस किस का उस ने इस्तेमाल कर डाला। कागज पर आ कर उस की यह तलाश कुछ ठहरी और उस का तो इस कदर इस्तेमाल किया गया है कि जंगल के जंगल साफ हुए हैं। लेकिन इस सफर में बहुत सी चीजें ऐसी थीं जिन्हें कागज पर नहीं उकेरा जा सकता था, जैसे ध्वन्यांकन, और चल-चित्र। इन के लिए उसने दूसरे साधन तलाश किये। प्लास्टिक फिल्म से ले कर कंप्यूटर की हार्ड डिस्क तक का उपयोग किया गया। इस काम के लिए उपयोग की गई डिस्क ने एक मार्ग और खोज लिया। उस पर लिपि को बहुत ही कम स्थान पर अंकित किया जा सकता था। अब लिपि भी उस में अंकित होने लगी। लेकिन लिपि, ध्वन्यांकन, चल-दृश्यांकन आदि को अंकित ही थोड़े ही होना था, उन्हें तो पढ़ने वाले के पास पहुँचना था। इस के लिए इंटरनेट का आविष्कार हुआ। आज कंप्यूटर और इंटरनेट ने मिल कर एक ऐसा साधन विकसित किया है जिस पर आप कुछ भी अंकित कर देते हैं तो वह न केवल दीर्घावधि के लिए सुरक्षित हो जाता है, अपितु दुनिया भर में किसी के लिए भी उसे पढ़ना, देखना, सुनना संभव है, वह भी कभी भी, किसी भी समय। 
तो जान लीजिए कंप्यूटर और इंटरनेट कागज से बहुत अधिक तेज, क्षमतावान माध्यम है। यह कागज की जरूरत को धीरे-धीरे कम करता जा रहा है। वह मौजूदा पीढ़ी का माध्यम है, विज्ञान यहीं नहीं रुक रहा है। हो सकता है इस से अगली पीढ़ी का माध्यम भी अनेक वैज्ञानिकों के मस्तिष्क में जन्म ले चुका हो, हो सकता है कि वह कहीँ लैब में भौतिक रूप भी ले चुका हो और यह भी हो सकता है कि उस का परीक्षण चल रहा हो। जीवन और उस की प्रगति दोनों ही नहीं रुकते। पर हमें आज इसे स्वीकार कर लेना चाहिए कि कागज हमारा हमेशा साथ नहीं देगा। इस के लिए नए माध्यमों की ओर हमें जाना ही होगा। जो यदि न जाएंगे और कागज के भरोसे बैठे रहेंगे तो उनकी कुछ ही बरसों में वैसी ही स्थिति होगी जैसी कि आज कल घर में दो बाइकों और कार के साथ कोने में खड़े बजाज स्कूटर की हो चुकी है। जिसे उस का मालिक रोज कबाड़ी को देने की सोचता है, लेकिन केवल इसीलिए रुका रहता कि शायद कोई इस का उपयोग करने की इच्छा रखने वाला कुछ अधिक कीमत दे जाए। 

लेकिन हम लोग जो इस नवीनतम माध्यम पर आ गए हैं। केवल इसी लिए अजर-अमर नहीं हो गए हैं कि हम कुछ जल्दी यहाँ आ गए हैं। हम केवल इसीलिए साहित्य सर्जक नहीं हो जाते कि हम इस नवीनतम माध्यम का उपयोग कर रहे हैं। हमें निश्चित रूप से जैसा सृजन कर रहे हैं, उस से बेहतर सृजन करना होगा। अपनी अपनी कलाओं में निष्णात होना होगा। हमें बेहतर से बेहतर पैदा करना होगा। जो लोग कागज को बेहतर मानते हैं वे चाहे यह स्वीकार करें न करें कि कभी इंटरनेट बेहतर हो सकता है। लेकिन हम जो इधर आ चुके हैं, जानते हैं कि वे सभी एक दिन इधर आएंगे। इसलिए हमें उन तमाम लोगों से बेहतर सृजन करना होगा। इसलिए हम सभी लोगों का जो इंटरनेट का प्रयोग कर रहे हैं,  सब से बड़ा प्रश्न होना चाहिए कि "बेहतर कैसे लिखा जाए?"

25 टिप्‍पणियां:

  1. ` बजाज स्कूटर की हो चुकी है। जिसे उस का मालिक रोज कबाड़ी को देने की सोचता है, लेकिन केवल इसीलिए रुका रहता कि शायद कोई इस का उपयोग करें।’

    हमारे पास लैम्ब्रेटा है सर:)

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  2. ओह! अभी तक?
    मुझे पता होता कि अभी तक जीवित है, तो यह सम्मान निश्चित रूप से लेम्ब्रेटा को प्रदान करता ... नहीं क्या पता किसी के पास इस से भी पुराना हो तो ...

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  3. मुझे बेहतर लिखने के बारे में बताने वाले लेख का इंतजार रहेगा,

    अपने लिखने के अनुभवों से कुछ साझा करें तो बहुत बेहतर रहेगा

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  4. बेहद दिलचस्प। निश्चित ही जंगलों का विनाश उपभोग सामग्री के लिए ही हुआ है मगर सिर्फ काग़ज़ ही उसकी वजह नहीं। अधिकांश तो ईंधन और इमारती कार्यों के लिए कुर्बान हुए हैं वन। काग़ज़ के लिए तो विशिष्ट वनस्पतियों से भी काम चल जाता है। निश्चित ही एक बड़ा तबका अब इलेक्ट्रानिक माध्यमों से पठन-पाठन की भूख शान्त करने लगेगा, पर काग़ज़ तो रहेगा ही। नए माध्यम भी तलाशे जा रहे हैं इसके लिए।

    बढ़िया आलेख।

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  5. बढ़िया लिखने वालों की नकल कर
    मेरा तो आजमाया हुआ है, छटी क्लास से :))

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  6. लेकिन हम जो इधर आ चुके हैं, जानते हैं कि वे सभी एक दिन इधर आएंगे।
    .
    सही सोंचते हैं आप

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  7. मैं इस आलेख का इस्तेमाल अपने अनुसंधान के लिए करने जा रहा हूं।

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  8. बजाज ? लैम्ब्रेटा मैने आज तक दोनो ही नही चलाये जी :)
    आप के लेख से सहमत हे

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  9. सत्य है..माध्यम से इतर प्रमुखता इस बात की है कि "बेहतर कैसे लिखा जाए?"

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  10. हां सर , सबसे जरूरी बात तो यही है कि बेहतर कैसे लिखा जाए और जो बेहतर होगा वही शाश्वत होगा ,बांकी तो सब रद्दी की तरह ही इस्तेमाल होगा यहा भी । आपने कल की संभावनाओं पर एक पोस्ट लिखने का विषय दे दिया मुझे । धन्यवाद । दिल्ली में पेपर लेस कोर्ट की शुरूआत हो चुकी है आने वाले समय में जाने क्या क्या पेपरलेस हो जाए । बहुत ही बढिया आलेख

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  11. बेहतर लेखन वैसा ही है
    जैसा
    मानो तो भगवान ना मानो तो ....

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  12. बिलकुल सही कहा माध्यन का सदुपयोग तभी होगा यदि बेहतर लेखन के लिये सब प्रयासरत रहेंगे। असल मे जो ब्लागिन्ग मे साहित्य को नही पहचानते वो इतने विस्तरित अन्तरजाल तक पहुँचने की क्षमता नही रखते वो केवल इतना देखते हैं कि मेरा लिखा किसी ने पढा बल्कि ये नही देखते कि हम ने क्या पढा। निश्चित ही ब्लागैन्ग एक सशक्त माध्यम बनेगा साहित्य की दुनिया मे बस बेहतर के लिये प्रयासरत रहने की जरूरत है। धन्यवाद।

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  13. "बेहतर कैसे लिखा जाए?"
    तो बताना भी था न सर ?

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  14. अरविन्दजी की बात का जबाब अगली पोस्ट में दीजियेगा !

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  15. meri apni ye tippani ajay bhaijee ke post se

    क्या आप साहित्य/साहित्यकार की अवधारणा लेकर ब्लोगिंग में आये हैं ….. अगर हाँ….तो आप सिरे से गलत हैं …… जो आप पहले से हैं …… उसमे बनने वाली बात कहाँ से आये ……. हाँ, अभ्यास के द्वारा उसमे धार ला रहे हैं ……

    मी लोर्ड…..यहाँ साधन को साध्य मान लेने की गलती हुए जा रही है…….आदरणीय द्विवेदी दद्दा ने सही कहा है ‘ एक के बाद एक सारे साहित्यकार ब्लोगिंग माध्यम से ही अपनी साहित्य सृजन करेंगे’ ……. और स्थितियां तब विद्रूप होगी……जब ब्लॉग-साहित्यकार…..गैर ब्लोगिये-साहित्यकार को….सूत पुत्र या एकलव्य के तरह घूरेंगे……वक़्त शुरु हो चूका है……एक दशक की तो बात है …… तब तक हम सब यहीं हैं ……… एक गवाह के रूप में ……
    प्रणाम.

    @arvind bhaijee....apni karya d.d dadda ke upar..... dadda to apna salah-mashvara dete hi rahte hain waqt-vewaqt....mange-vinmange

    ACHHA KAISE LIKHEN......IS PAR APKA EK POST BACHHON KE LIYE EK JAROORAT
    HAI.......

    PRANAM.

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  16. अपने लेखन को बेहतर करने के कुछ टिप्स भी दे देंगे तो मेहरबानी होगी।
    शुभकामनाये

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  17. हम सब तो अपने ख्‍याल बेहतर ही लिख रहे हैं, आप इसके आगे की कुछ कहें तो बात बने.

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  18. बहुत विचारणीय मुद्दा है. पेपरलैस के अन्य फ़ायदे तो बहुत ज्यादा है. और बेहतर लेखन को किसी परिभाषा के अंतर्गत लाना मुझे तो मुश्किल ही दिखता है. जो एक के लिये बेहतर है वो दूसरे के लिये शायद ना हो? सबकी अपनी पानी पसंद.

    रामराम.

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  19. पहली बात कि कागज़ अभी कई दशकों तक लिखने के न्माध्यम के रूप में टिका रहेगा ।
    दूसरी बात यह कि पाठक की मनःस्थिति के अनुसार बेहतर लेखन के अलग अलग मापदँड हैं.. सो बेहतर लेखन का सर्वमान्य मानक तय होना अभी तक तो शेष माना जाता रहा है ।

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  20. बेहतर लेखन के गुर जानने की जिज्ञासा आपने पैदा कर दी। प्रतीक्षा रहेगी।

    मुझे नहीं लगता कि कागज हमारा साथ छोड देगा। यह बना रहेगा। भले ही इसका उपयोग अत्‍यल्‍प हो। परम्‍परावादी समाज में आपकी कल्‍पना अतिशयोक्ति लगती है।

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  21. @अजित वडनेरकर,डा० अमर कुमार,विष्णु बैरागी
    आदरणीय वृंद!
    मैं नहीं कहता कि पुस्तकें और कागज समाप्त हो जाएंगे। लेकिन जिस तरह बड़ी संख्या में लोगों तक पहुँच इंटरनेट बनाता जा रहा है और जिस तरह इस पर थोड़े खर्च में विपुल पाठ्य सामग्री प्राप्य है। लेखकों को इस माध्यम को अपनाना पड़ेगा।

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  22. बढ़िया विषय है.लेखन के नए माध्यम तो आएँगे ही.किन्तु विमानों के साथ साथ हमारा बजाज /लैम्ब्रेटा भी बने रहेंगे बहुत समय तक.
    घुघूती बासूती

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  23. रहेंगे तो कागज अभी बहुत दिनों तक…हाँ अन्तर्जाल का प्रयोग बढ़ेगा…तेजी से…लेकिन आपके शीर्षक में सवाल था और वह अनुत्तरित्त ही रह गया…

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