एक महिला के साथ छेड़छाड़ हो जाए, यह केवल सारे समाज के लिए शर्म की बात ही नहीं है, अपितु भारतीय दंड संहिता में अपराध है, जिस के लिए अपराधी को दंडित कराने की जिम्मेदारी सरकार की है। सरकार ने यह जिम्मेदारी अपनी पुलिस को सौंपी हुई है। पुलिस इस तरह के मामलों में किस तरह का बर्ताव करती है, यह सर्वविदित है। पुलिस को इस तरह के छोटे-मोटे मामलों पर शर्म नहीं आती। आए भी क्यों जब पुलिस महानिदेशक ऐसा करे तो साधारण पुलिस वाले तो उस का अनुकरण कर ही सकते हैं।
चलो छेड़छाड़ की बात छोड़ दी जाए। किसी महिला के साथ बलात्कार हो, वह भी एक के साथ नहीं, एकाधिक महिलाओं के साथ और एक बार नहीं, पूरे सप्ताह भर तक; फिर यह सब करें पुलिस वाले, वह भी पुलिस थाने में और पुलिस थाने से महिला की आँखों पर पट्टी बांध कर कहीं और ले जा कर। पुलिस को इस पर भी शर्म आने से रही। शायद वे ऐसा न करें तो उन की मर्दानगी पर लोग सन्देह जो करने लगेंगे। फिर जब वे महिलाएँ पुलिस के उच्चाधिकारियों के पास जा कर अपनी रिपोर्ट दर्ज करने की कहें और उच्चाधिकारी सुन लें यह कदापि नहीं हो सकता। वे ऐसा कैसे कर सकते हैं? पुलिस महकमे की इज्जत जो दाँव पर लगी होती है। आखिर पुलिस महकमे की इज्जत किसी महिला की इज्जत थोड़े ही है जिस से जब चाहे खेल लिया जाए।
अब महिलाएँ क्या करें? कहाँ जाएँ? महिलाओं ने हिम्मत की और उच्चन्यायालय को शिकायत लिखी। उच्च न्यायालय ने पुलिस से जब जवाब तलबी की तब जा कर पुलिस ने महिलाओं के बयान दर्ज किए। पुलिस को अब भी विश्वास नहीं है कि उन के सिपाही ऐसा कर सकते हैं, यह करतब कर दिखाने वाली अंबाला पुलिस का कहना है कि यह राजस्थान के बावरिया गिरोह की सदस्य महिलाएँ हैं और खुद पर लगे आरोपों से बचने के लिए उलटे पुलिस पर ऐसे आरोप लगा रही हैं। महिलाओं के आरोप हैं कि पुलिस वालों ने न केवल बलात्कार किया, उन्हें बिजली का करंट भी लगाया जिस से एक महिला का गर्भ गिर गया और यह भी कि एक महिला इस बलात्कार के परिणाम स्वरूप गर्भवती हो गयी।
खैर, पुलिस आखिर अपने सिपाहियों और अफसरों का बचाव न करेगी तो जनता उस के चरित्र पर संदेह करने लगेगी। लेकिन अब जनता क्या समझे? ये कि अब किसी महिला के साथ बलात्कार हो तो उसे पुलिस में रिपोर्ट करने नहीं जाना चाहिए, बल्कि सीधे उच्च न्यायालय में रिपोर्ट दर्ज करानी चाहिए। यानी अब पुलिस थाने का काम उच्च न्यायालय किया करेंगे?
पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज न करने का किस्सा आम है। एक आम आदमी, जब भी उसे पुलिस में किसी अपराध की रिपोर्ट दर्ज करानी हो तो किसी रसूख वाले को क्यों ढूंढता है? यह किसी एक राज्य का किस्सा नहीं है, कुछ अपवादों को छोड़ दें तो पूरे भारत में पुलिस का यह चरित्र आम है। तो फिर क्यों नहीं पुलिस के चरित्र को बदलने के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा जाता। लगता है सरकारों, राजनेताओं और उन के आका थैलीशाहों को ऐसी ही पुलिस की जरूरत है।
मुझे बचपन में पढ़े गए मुल्ला नसीरूद्दीन की कहानी याद आ रही है जिसमें एक सिरे से नवाब, काजिम और सिपाही, सभी करप्ट थे और आपस में मिले हुए भी.. और जनता त्रस्त थी..
जवाब देंहटाएंपूरे देश में व्यवस्था की हालत गड़बड़ा रही है..
जवाब देंहटाएं@पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज न करने का किस्सा आम है। एक आम आदमी, जब भी उसे पुलिस में किसी अपराध की रिपोर्ट दर्ज करानी हो तो किसी रसूख वाले को क्यों ढूंढता है? यह किसी एक राज्य का किस्सा नहीं है, कुछ अपवादों को छोड़ दें तो पूरे भारत में पुलिस का यह चरित्र आम है। तो फिर क्यों नहीं पुलिस के चरित्र को बदलने के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा जाता। लगता है सरकारों, राजनेताओं और उन के आका थैलीशाहों को ऐसी ही पुलिस की जरूरत है...........
जवाब देंहटाएंएकदम सही कह रहे हैं आप,अब न्यायालय ही ऐसे मामलों को संज्ञान में ले तो ही अच्छा हो.
हर ओर न्याय हो और वह तीव्र हो तो समाज में विश्वास पैठता है।
जवाब देंहटाएं‘महिला की आँखों पर पट्टी बांध कर ....’
जवाब देंहटाएंकानून की आँखों पर भी पट्टी जो है:(
ऐसे कितने मंथन और । कब रोशनी आएगी ?
जवाब देंहटाएं@amit-nivedita
जवाब देंहटाएंसंगठित जनता ही उस रोशनी को पैदा कर सकती है।
@प्रवीण पाण्डेय
जवाब देंहटाएंआप की आकांक्षा जैसी ही मेरी भी है। लेकिन उस ओर बढ़ना पड़ेगा।
वकील और प्रबुद्ध जनों के मत हो गए अब किसी जिम्मेदार पुलिस ब्लॉगर की भी टिप्पणी अ जाय तो विषय की चर्चा समग्रता हासिल कर ले ! फेस बुक से हिन्दी ब्लागरी तक पुलिस भी अपना चेहरा दिखा ही चुकी है -उनकी राय का स्वागत है !
जवाब देंहटाएं@पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज न करने का किस्सा आम है। एक आम आदमी, जब भी उसे पुलिस में किसी अपराध की रिपोर्ट दर्ज करानी हो तो किसी रसूख वाले को क्यों ढूंढता है? यह किसी एक राज्य का किस्सा नहीं है, कुछ अपवादों को छोड़ दें तो पूरे भारत में पुलिस का यह चरित्र आम है। तो फिर क्यों नहीं पुलिस के चरित्र को बदलने के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा जाता। लगता है सरकारों, राजनेताओं और उन के आका थैलीशाहों को ऐसी ही पुलिस की जरूरत है...........
जवाब देंहटाएंएकदम सही कह रहे हैं आप, अब उच्चन्यायालय ही सभी मामलों को संज्ञान में ले तो ही अच्छा हो और साथ में कम से कम 50 हजार का जुर्माना करने के अतिरिक्त 6 महीने की सजा मामला दर्ज न करने वाले अधिकारीयों को देने हेतु कठोर कदम अब उच्चन्यायालय को उठाने चाहिए.
मै हेरान हुं एक तरफ़ हम अपने आप को विकासशिल कहते हे, तो दुसरी ओर हमारी पुलिस आज भी सॊ साल पहले वाली हरकते करती हे, शायद इस मै पुलिस की कम ओर इन नेताओ की ज्यादा चलती हो, लेकिन सब मिला कर यह गलत हे
जवाब देंहटाएंसच तो यह है कि पुलिस के काया पलट की आवश्यकता है। अंग्रेजों के जमाने की आचरण संहिता को कचरे के ढेर पर फौरन ही फेंक दी जानी चाहिए। पुलिस आज भी अंग्रेजों की ही है।
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