रघुराज सिंह हाड़ा |
हर मकर-संक्रान्ति पर शकूर 'अनवर' के घर जा कर बहुत अच्छा लगता है। वहाँ हर साल विकल्प जन सास्कृतिक मंच सृजन सद्भावना समारोह का आयोजन करता है। आज नवाँ सद्भावना समारोह था। दिन के दो बजे से आरंभ होने वाले समारोह में मैं कुछ देरी से पहुँचा। वजह साफ थी। मैं एक किशोर को वहाँ ले जाना चाहता था। पत्नी की बहन का पुत्र योगेश, वह गाँव से दूर कोटा में अपनी बहिन के साथ अध्ययन की खातिर रहता है। पिछले सप्ताह उस से मिला तो उसे अपने घर आ कर पतंग उड़ाने का न्यौता दे दिया। घर आ कर डोर लपेटने वाली गरारियों की तलाश की तो वे नहीं मिलीं। शायद मैं घर बदलते समय उन्हें पडौस के किसी बच्चे को भेंट कर आया था। योगेश भी पढ़ाई के कारण नहीं आ सका। मैं ने उसे संक्रान्ति पर शकूर भाई के घर पतंग उड़ाने के लिए चलने को कहा, वह उस के लिए भी राजी था। दोनों बहन भाई एक बजे तक आने वाले थे, लेकिन दो बजे तक नहीं आए। फिर ढाई बजे उन का फोन मिला कि उन के पिता आ गए हैं। वे नहीं आ सकेंगे। मैं समारोह के लिए रवाना हो गया।
रघुराज सिंह हाड़ा को सृजन-सद्भावना सम्मान देते हुए अंबिका दत्त और कवि मयूख |
मैं पहुँचा तब तक श्वेत कपोत अपनी उड़ान भर चुके थे और अतिथियों ने सद्भावना संदेश लिखी पतंगें हस्ताक्षर कर उड़ाईं और फिर छोड़ दीं, ताकि लूटने वालों को भी सद्भावना का संदेश मिले। आज समारोह में हाडौती के वरिष्ठतम कवि, गीतकार, लेखक आदरणीय रधुराज सिंह जी हाड़ा का सम्मान होना था। वह आरंभ होने वाला था। उन की उम्र 78 वर्ष की है। मेरे पिता जी होते तो उन से सिर्फ 4 वर्ष बड़े होते। मैं जिस वर्ष में पैदा हुआ था उस साल वे अध्यापक हो चुके थे। जिस विद्यालय में उन का पहला पदस्थापन हुआ वहाँ मेरे पिताजी पहले से अध्यापक थे। कस्बे में यह मान्यता थी कि छात्र यदि ट्यूशन न पढ़ेगा तो अवश्य ही फेल होगा या निम्न दर्जा प्राप्त करेगा। दोनों को इस मान्यता ने बहुत कचोटा। दोनों ने तय किया कि वे इस मान्यता को बदल डालेंगे। दोनों ने विद्यालय में होने वाली प्रार्थना सभा में घोषणा करना आरंभ कर दिया कि किसी को ट्यूशन करने की कोई आवश्यकता नहीं है, कोई भी बालक उन के यहाँ कभी भी पढ़ने आ सकता है। रघुराज जी उसे हिन्दी और अंग्रेजी पढ़ाते और पिता जी गणित, भूगोल, सामाजिक विज्ञान और विज्ञान। यह भी घोषणा वे करते कि किसी भी विद्यार्थी को कोई भी परेशानी हो वह हमें रास्ते में रोक कर भी पूछ सकता है। पहले उस की समस्या हल होगी, बाद में और काम। आखिर ट्यूशन का वह मिथक टूट गया।
शकूर अनवर पुस्तकें भेंट करते हुए |
रघुराज जी का रचना कर्म विद्यार्थी जीवन में ही आरंभ हो चुका था। वे हाडौती और हिन्दी के मीठे गीतकार हैं। उन की रचनाओं को जहाँ हाड़ौती के जनमानस ने गाया है वहीं अगली पीढ़ी के रचनाकारों को मार्ग भी दिखाया। अभी तक उन की बीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं और उन की रचनाएँ विद्यालयी पुस्तकों में पढ़ाई जाती हैं। कुछ विद्यार्थी उन के रचनाकर्म पर शोध कर डिग्रियाँ हासिल कर चुके हैं। आज उन का सम्मान कर के वस्तुतः विकल्प परिवार ने स्वयं को सम्मानित महसूस किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि हिन्दी के प्रसिद्ध कवि बशीर अहमद मयूख थे। आज कवि मयूख का एक और नया रूप देखने को मिला जब उन्हों ने रघुराज जी के सम्मान में स्वयं बाँसुरी वादन कर सभी उपस्थित जनों को चकित कर दिया। समारोह में नगर के हिन्दी, उर्दू, हाडौती कवि उपस्थित थे। बाद में देर शाम तक काव्य गोष्ठी चलती रही।
यह अद्भुत समारोह कोटा नगर की अमूल्य थाती बन चुका है, जिस में उपस्थित होना नगर के साहित्यकार अपना गौरव समझते हैं। आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं कि ऊपर की छत से जहाँ अंधेरा घिर आने तक सद्भावना संदेश लिए पतंगें अनवरत उड़ाई जाती रहें, उसी छत के नीचे एक समारोह चलता रहे जिस में सृजनकारों के साथ शकूर के परिवार जन और मुहल्ले के लोग दर्शक-श्रोता बने आनंद लेते रहें। बीच-बीच में घर की महिलाएँ सब के लिए तिल के लड्डू और अन्य व्यंजनों के साथ चाय की व्यवस्था करें। यह समारोह एक अलग ही तरह का आनंदोत्सव हो जाता है।
काव्य गोष्ठी |
समारोह ने मुझे आज अपने पिता के एक आरंभिक साथी के साथ कुछ घंटे बिताने का अवसर दिया। समारोह के उपरांत रघुराज जी को अपने गृहनगर झालावाड़ जाना था। मैं ने उन्हें बस तक छोड़ने का अवसर तुरंत लपका। जिस से मैं अपने पिता के साथी के साथ कुछ समय और बिता सकूँ। आज के समारोह में मुझे कई रत्न मिले जिन्हें मैं समय-समय पर आप के साथ साझा करूँगा। इन में दिवंगत कवि-रंगकर्मी शिवराम पर लिखी एक कविता, रघुराज सिंह जी का एक काव्य संग्रह, शकूर अनवर की कुछ ग़ज़लें और समारोह में रघुराज सिंह जी के सम्मान में बशीर अहमद 'मयूख' द्वारा किया गया बाँसुरी वादन शामिल हैं।
बहुत आनंद आया जी। एक ऐसा आयोजन जिसमें हर कोई शिरकत करना चाहेगा, आपने हमें रूबरू करवाया। पतंगों पर संदेश लिखकर छोड़ने की बात बहुत सुखद मालूम हुई। काश वह सुन्दर बाँसुरी हम भी सुन पाते।
जवाब देंहटाएंरघुराज सिंह जी के सक्रिय सुदीर्घ जीवन की कामना.
जवाब देंहटाएंshi khaa bhai jana bhut khubsurt avismrniy kaarykrm rha he . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर परम्परा है, बनाये रखिये।
जवाब देंहटाएंयह रिपोर्ट तो जैसे आपसे अपेक्षित ही थी !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआप बडे भागय शाली हे जो ऎसे लोगो से मिले, जिन्हे बचपन से ही जानते हे, जो आप के पिता संग रह चुके हे, मुझे बहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंमयूख़ साहेब की बांसुरी की तान काश कानों में पड़ी होती...
जवाब देंहटाएंचूक गये...
बेहतर परंपरा...जो कायम है...
ऐसे सात्विक और वास्तविक आयोजन अब दुर्लभ होते जा रहे हैं। कोटा मं यह परम्परा बनी हुई जान कर अच्छा लगा। ईश्वर करे, यह बनी रहे।
जवाब देंहटाएंमयूखजी का नाम बरसों बाद सामने आया। आत्मीय प्रसन्नता हुई। उन्हें प्रणाम।