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मंगलवार, 4 जनवरी 2011

मैं एक विस्फोट भी हूँ ......

ज उस का जन्मदिन है, और वह जेल में है। क्या था उस का कुसूर? बस यही न कि उस ने उस सरकारी कारखाने में काम करने वाले ठेकेदार मजदूरों के लिए एक अस्पताल विकसित किया था, जो अपने स्थाई कर्मचारियों के लिए बेहतर से बेहतर सुविधाएँ प्रदान करता है, लेकिन वही अस्पताल एक मरती हुई मजदूरिन को अपने यहाँ चिकित्सा सुविधा नहीं दे सकता। कि उस ने गाँव गाँव में चिकित्सा सुविधाएँ पहुँचाने के काम में अपने जीवन के बेहतरीन साल गुजारे। जिस ने सलवा जुडूम के कार्यकर्ताओं द्वारा बंदूकों की नोंक अपने गाँवों से हाँक कर सरकारी केम्पों में ले जाए गए आदिवासियों के स्वास्थ्य की दुर्दशा के विरुद्ध आवाज उठाई। यही आवाज न केवल सलवा जुडूम योजना पर अपितु सरकार की नीयत पर भी प्रश्न चिन्ह बन गई। बस उसे देशद्रोही करार दिया गया और जेल में बंद कर दिया जीवन भर के लिए। 
लेकिन क्या, उसे बंद करने से जंगलों, गाँवों, कस्बों, नगरों और महानगरों से न्याय के लिए उठ रही आवाजें रुक जाएँगी। निश्चय ही वे आवाजें ऐसे नहीं रुक सकतीं। रुकना होगा तो उन्हें जो इन आवाजों को रोकने में लगे हैं। वे नहीं रुकेंगे, तो खत्म हो जाएँगे, जनता की यह आवाज तो उठेगी, कोलाहल बन कर न सुनने वालों को बहरा कर देगी, कि वे सुनने के काबिल नहीं रहेंगे। 
डॉ. बिनायक सेन के 61 वें जन्मदिन पर मुझे अपने दिवंगत साथी शिवराम की यह कविता स्मरण हो आती है - - -

मैं एक विस्फोट भी हूँ

-शिवराम

कुचल दो मुझे
मैं उठा हुआ सिर हूँ
मैं तनी हुई भृकुटि हूँ
मैं उठा हुआ हाथ हूँ
मैं आग हूँ
बीज हूँ
आंधी हूँ
तूफान हूँ

और उन्हों ने 
सचमुच कुचल दिया मुझे

एक जोरदार धमाका हुआ
चिथड़े-चिथड़े हो गए वे

उन्हें नहीं मालूम था
मैं एक विस्फोट भी हूँ।

**********************

मेरे दोस्त !
जन्मदिन मुबारक हो, तुम्हें,

उन्हें पता है, 
तुम्हें अंदर कर के 
उन्हों ने कितनी बड़ी गलती की है

पर अब  करें तो क्या?
तीर तो कमान से निकल चुका
____________________________________________________________________________

16 टिप्‍पणियां:

  1. बिनायक सेन को हमारी हार्दिक शुभकामनाएं।

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  2. एक बेहतरीन कविता की सटीक प्रस्तुति...

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  3. हमदर्द उनको* अब भी पुकारे है 'मसीहा'
    कानून भेजता जिसे सूए सलीब है.


    *डाक्टर विनायक'

    m.hashmi
    http://aatm-manthan.com

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  4. मैं एक विस्फोट भी हूँ।

    सटीक

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  5. क्या कहूं ? आप खुल कर अभिव्यक्त हो पाते हैं अस्तु बधाई !

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  6. शिवराम जी की कविता सुंदर है।

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  7. बेहद गहन और उम्दा अभिव्यक्ति।

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  8. हमदर्द उनको अब भी पुकारे है 'मसीहा'
    कानून भेजता जिसे सूए सलीब है.

    वाह मंसूर भाई, दो लाइन में ही उन करोड़ो गरीबों का दर्द उकेर दिया है, जो हाथ उठाए हुए सेन को जुग-जुग जीने की दुआएं कर रहे हैं।

    द्विवेदी जी, वो विस्फोट तो हैं ही। अंग्रेजों ने गांधी को भी नहीं पहचाना था कि वे अंग्रेजी सत्ता के लिए बगैर हथियार के भी कितने खतरनाक हैं। इस देश की गरीब जनता को जगा देना, उन्हें उनके हक का एहसास दिला देना किसी विस्फोट से कम नहीं है। इसी से तो उन अंग्रेजों की सत्ता हिल गई थी, जिनके बारे में कहा जाता था कि उनके शासन में सूर्यास्त नहीं होता।

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  9. बहुत गहरी बात कह दी कवि ने इस कविता मे धन्यवाद

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  10. गज़ब की कविता ... आग लगा देने की लिए काफी है ..

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  11. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (6/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  12. यह कविता बहुत पसंद आई. आज के संदर्भ में बिलकुल सटीक बैठती है.
    घुघूती बासूती

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  13. कवि का नाम याद नहीं आ रहा, कविता याद आ रही है। इस प्रकार है -

    अपना क्‍या है,
    सारा जीवन अपना
    रहा उधार।

    सारा लोहा
    उन लागों का
    अपनी केवल धार।

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