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शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

पल्ला झाड़

खुलने लगें जब राज
न लगें लोग जब साथ
तब खिसियाहट होती है
बिल्ली खंबा नोचती है।


जब पता लगता है
कि एक निरा मूर्ख
नौ बरस तक
उन का भगवान स्वरूप
एक-छत्र नेता बना रहा 

तब यही बेहतर कि
भक्त-गण ऐसे भगवान से
पल्ला झाड़ लें
  • दिनेशराय द्विवेदी

11 टिप्‍पणियां:

  1. किसकी तरफ है इशारा
    किस के ऊपर ये तीर है मारा..

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  2. सही वचन ....लगता है कहीं किसी से चोट खायी है ..

    जवाब देंहटाएं
  3. मैं उलझन में पड गया हूँ।

    मुझे अच्‍छी तरह याद आ रहा है कि कल ही मैंने आपकी इस कविता पर टिप्‍पणी की थी किन्‍तु यहॉं टिप्‍पणियों में वह कहीं नजर नहीं आ रही।

    जवाब देंहटाएं
  4. कुछ गहरा राज़ है इस कविता मे। शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह द्विवेदी जी आपके भीतर का कवि जागने लगा है ..

    जवाब देंहटाएं

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