कल सुबह अखबार सामने थे, एक स्थानीय अखबार में यह खबर थी ........
हो सकता है आप ने भी मेरी तरह यह बात नोट की हो कि हर माह कम से कम दो बार ऐसी खबरें अखबारों के मुखपृष्ठ पर अपना स्थान बनाती हैं। मैं भी इसे खबर कह रहा हूँ, पर क्या वाकई यह एक खबर है। वस्तुतः इस में खबर जैसी कोई चीज नहीं है। केवल एक तथ्य है कि इस बार धनतेरस बुधवार को पड़ रही है और बुधवार को पड़ने वाली अगली धनतेरस चौदह वर्ष बाद 30 अक्टूबर 2024 आएगी। इस तथ्य का किसी के लिए कोई महत्व नहीं है। लेकिन हमारी बाजार व्यवस्था ने इस तथ्य को एक खबर बना कर अखबार और अन्य समाचार माध्यमों में प्रस्तुत किया है। इस का उद्देश्य पाठकों को खरीददारी के लिए प्रेरित करना है। यदि खरीददार बाजार में नहीं आएगा तो बाजार कैसे चलेगा। ये खबरें हर एक-दो सप्ताह के बाद आप समाचार पत्रों और अन्तर्जाल के समाचार परोसने वाले वेब पृष्टों पर देख सकते हैं।
मैं ने कल सुबह की खबर को पढ़ने के बाद ' खरीददारी के शुभ मुहूर्त' वाक्य को गूगल में खोजा और 0.13 सैकंड में 987 परिणाम प्राप्त किए। हालांकि गूगल खोज के लिए यह संख्या अधिक नहीं है। लेकिन यह इस बात को भी करता है कि इस तरह के समाचारों का चलन खास तौर पर एक-दो वर्ष में ही सामने आया और तेजी से बढ़ता चला गया। इसे बड़े कॉरपोरेट समाचार पत्रों ने आरंभ किया और उस की नकल स्थानीय समाचार पत्र भी करने लगे। यह मौजूदा मंदी से निपटने के लिए ईजाद किए गए तरीकों में से एक है। जो पाठकों को गैर जरूरी खरीददारी करने के लिए प्रेरित करता है। जिस चीज की उपभोक्ता को आवश्यकता होती है वह तो खरीदता ही है। इस तरह की खबरें गैर जरूरी खरीददारी को प्रेरित करती हैं। यह विक्रय के अमरीका द्वारा ईजाद किए गए उस तरीके का एक अंग है जो यह सिखाता है कि माल इस लिए नहीं बिकता कि उपभोक्ता को उस की आवश्यकता है। बल्कि उत्पादकों को चाहिए कि वे अपने विक्रय अभियानों के माध्यम से लोगों को महसूस कराएँ कि उन्हें उन के उत्पाद की आवश्यकता है।
मैं तो दीवाली के त्यौहार के पहले दिन आप से यही पूछना चाहता हूँ कि आप भी तो आज धनतेरस के शुभ मुहूर्त में कोई गैर जरूरी वस्तु खरीदने तो नहीं जा रहे हैं। मेरी मैं बता दूँ कि मैं तो जरूरी वस्तु की खरीद भी आज के दिन टालना चाहूँगा। बाजार में भीड़ बहुत है, दुकानदार को आप की सुनने की फुरसत नहीं और वह भीड़ का लाभ उठा कर आप को अधिक कीमत ले कर भी घटिया से घटिया माल टिकाने को बेताब है।
सार्थक, समसामयिक और सचेत करता हुआ आलेख.
जवाब देंहटाएंनिश्चय ही अपनी खरीददारी का निर्धारण सोच समझ कर करना होगा.
दीपावली के साथ खरीदारी वैसे भी कोई रोक नहीं सकता उसपर भविष्यवाणी ...... सच में ये एक ग्राहक लुट है .... मै वर्मा जी से सम्मत हू कि खरीददारी का निर्धारण सोच समझ कर करना होगा
जवाब देंहटाएंआपसे १००% सहमत
जवाब देंहटाएंइस खबरदारिया पोस्ट के लिए आभार
जवाब देंहटाएंव्यापारियों का किया धरा है सब कुछ..
जवाब देंहटाएंकोई 'बैरागी' ही ऐसे लालच से बच सकता है या कहिए कि ऐसे लालच से बचने के लिए 'बैरागी' बनना पडता है।
जवाब देंहटाएंएक भी अखबार मुझे और मेरी उत्तमार्ध्द को बाजार जाने के लिए नहीं ललचा पाया। अखबारों से उत्साहित होकर जो गए, लौट कर हमें समझदार बता रहे हैं।
हम भी बाजार नहीं जा रहे। दिवाली अमीरों का त्यौहार है और होली गरीबों का।
जवाब देंहटाएंकल मैं ने सुना कि धनतेरस के दिन सफ़ाई भी नहीं करनी चाहिए, इस बात में कोई तुक दिखता है क्या? मुझे तो लगा कि लक्ष्मी जी को वैसे ही कचरा पसंद नहीं तो जितना जब निकालो उतना ही अच्छा, आप क्या कहते हैं?
@ anitakumar
जवाब देंहटाएंऐसा कुछ नहीं है, ये सब निराधार धारणाएँ हैं। अब आज से दिवाली आरंभ हो चुकी है। कचरा तो अब तक निकाल देना चाहिए था। अब तो घर को सजाने का वक्त है। यही इस कथन का मंतव्य है। अंधविश्वासियों ने उस का दूसरा अर्थ लेना आरंभ कर दिया है। हाँ, मैं भी खरीददारी करने के लिए बेटे को बाजार भेज रहा हूँ, हमारे घरेलू होमियोपैथी दवाखाने में कम पड़ रही दवाएँ खरीदने।
बहुत अच्छी और सार्थक पोस्ट ... बधाई
जवाब देंहटाएंचेताने के लिये बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने ये धनतेरस या दिवाली कुछ भी नहीं होता है अगर आप सच्चे,परोपकारी और इमानदार इंसान हैं तो आपके लिए हरदिन धनतेरस और दिवाली है ....ये मुहूर्त वगैरह सब आजकल व्यवसायिक हथकंडा है ...और ठग किस्म के व्यापारी इन मुहूर्तों का सबसे ज्यादा फायदा उठाते हैं.....सही मायने में इस दिन खरीददारी को टालना ही सबसे अच्छी बात है ......शानदार ब्लोगिंग और जागरूक करती पोस्ट के लिए आभार .....
जवाब देंहटाएंअगली धनतेरस चौदह वर्ष बाद 30 अक्टूबर 1924 आएगी। सब से पहले तो आप गलती सुधार ले यह १९२४ नही बल्कि २०२४ होगी शायद
जवाब देंहटाएंआप की इस जागरुक करने वाली पोस्ट के लिये आप का धन्यवाद, लेकिन लोग एक दुसरे को देख कर अनाप शनाप खरीदारी करते हे ऎसी बकवास बातो को सुन ओर पढ कर,
जायज़ सवाल !
जवाब देंहटाएंएक सामयिक, सचेत करता मुद्दा
जवाब देंहटाएंवैसे धनतेरस तो क्या, किसी भी दिन गैरजरूरी खरीददारी नहीं करनी चाहिए :-)
ओह, काश मैंने इस पोस्ट को आज सुबह अपने घर की ‘लक्ष्मी’ को पढ़वा दिया होता। :)
जवाब देंहटाएंएकदम तब पढा सर जब श्रीमती जी के लाए नए ग्लास सेट के एक अदद ग्लास में गर्मागर्म दूध पी रहा हूं ...अब तो हो ली सर फ़िजूलखर्ची ...बांकी दूध से compensate करने की कोशिश करता हूं सर
जवाब देंहटाएंbhaayi jaan haappy divaali dhnteras pr kyaa khridaa btaayenge naa. akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंकहीं सोना भी गैरज़रूरू होता है !!!:) दीपावली की शुभकामनाएं॥
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने, हम तो खरीद दारी दीपावली के १५ दिन आगे पीछे तक स्थगित रखते हैं. आपको परिवार एवं इष्ट स्नेहीजनों सहित दीपावली की घणी रामराम.
जवाब देंहटाएंरामर
दिनेश जी प्रणाम,
जवाब देंहटाएंआपको और पूरे परिवार को मेरी ओर से बहुत बहुत शुभकामनायें इस पावन पर्व की !
धन्यवाद !
राम त्यागी
ग़ैरज़रूरी चीज़ , धनतेरस क्या हम किसी भी दिन नही खरीदते । लेकिन ग्राहक बाज़ार का यह षड़यंत्र कब समझेगा ?
जवाब देंहटाएंशुभ दीपावली.... दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.....
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट। आपको भी सपरिवार दिपोत्सव की शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंदीपावली के इस शुभ बेला में माता महालक्ष्मी आप पर कृपा करें और आपके सुख-समृद्धि-धन-धान्य-मान-सम्मान में वृद्धि प्रदान करें!
जवाब देंहटाएंएक typo error पर ध्यान दिला रहा हूँ.. १९२४ के बदले २०२४ कर लें.. :)
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