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शनिवार, 4 सितंबर 2010

एक पड़ाव यह भी.......

ज उम्र का वही पड़ाव है जिस पर आ कर पिता जी सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हो गए थे। सेवानिवृत्ति के अगले दिन से ही सेवानिवृत्ति की आयु तीन वर्ष बढ़ा दी गई थी। पर उन्हें कोई अफसोस नहीं था। वे प्रसन्न  थे कि उन्हें नौकरी से छुटकारा मिल गया है। जितनी उन्हें पेंशन मिली थी और जितना उन्हें ग्रेच्यूटी और भविष्यनिधि से मिली राशि के उपयोग से वे आय कर सकते थे वह उन के वेतन से कुछ ही कम थी। इस में भी नौकरी के स्थान पर किराए के मकान और आने जाने आदि में जो खर्च होता था वह बच गया था। कुल मिला कर उन की आय उतनी ही थी और नौकरी से पीछा छूटा था। वे बहुत प्रसन्न थे। उन पर तीन बेटों को योग्य बनाने और उन के विवाह की जिम्मेदारियाँ शेष थी। वे घर लौटे, लेकिन तब तक मैं घर छो़ड़ चुका था। कोटा आ कर वकालत करने लगा था। उन को घर पर मेरी अनुपस्थिति अवश्य अखरी थी। घर लौट कर उन्हों ने अपने स्वभाव के अनुसार चर्या आरंभ कर दी। सुबह उठना अंधेरे ही स्नानादि से निवृत्त हो मंदिर जा कर छोटे भाई की मदद करना। लौट कर आते कुछ पढ़ने लगते। फिर दस बजे मंदिर जा कर कथा पढ़ना। फिर भोजन और विश्राम। शाम को घूमने निकलना और अपने मित्रों के साथ उठना बैठना शाम घर लौट कर बच्चों की पढ़ाई का ख्याल करना। नगर में अधिकांश वयस्क उन के शिष्य थे। उन्हें पता लगा कि गुरुजी सेवा निवृत्त हो कर घर आ गए हैं तो अपनी बेटियों को ट्यूशन पढ़ाने का आग्रह करने लगे। जल्दी ही सुबह की कथा के पहले और बाद दो कक्षाएँ लड़कियों की लगने लगीं। घर में बेटियों की रौनक होने लगी। शाम के समय उन के पास लोग सलाह के लिए आने लगे। वे यह सब जीवन पर्यंत करते रहे। जिस रात उन्हों ने विदा ली उस से अगली सुबह पढ़ने आई बेटियों को वहीं आ कर पता लगा कि वे विदा ले चुके हैं। 
मेरे पास अपने पेशे से निवृत्ति का अवसर नहीं है। कहते हैं वकील की जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है वह युवा होता जाता है। पचपन का हो कर मैं अपने को बचपन में लौटा महसूस कर रहा हूँ। जिस के सामने पहाड़ जैसी दुनिया खड़ी होती है, ढेर सारी चुनौतियाँ होती हैं। वह उन से जूझने की तैयारी कर रहा होता है। मेरे लिए अभी अपनी सभी पारिवारिक जिम्मेदारियों से जूझना शेष है। लगता है अभी जीवन आरंभ ही हुआ है। ठान बैठा हूँ कि जितनी क्षमता होगी काम करता रहूंगा बिना प्रतिफल की आशा के जैसा अब तक किया है। इस विश्वास के साथ कि ऐसे में कभी बचपना हो जाए तो इस पचपन पार को मित्रगण अवश्य क्षमा कर देंगे।
मित्रों के संदेश आरंभ हो चुके हैं। पाबला जी, उन के सुपुत्र गुरुप्रीत फुनिया चुके हैं, हाशमी साहब का बधाई ई-पत्र मिला है, और बहुत दिनों बाद अनिता जी के मेल में सिर्फ बधाई! लगता है कुछ नाराज हैं वे। अब दीदी से मैं तो नाराज हो नहीं सकता, और संदेश आ रहे हैं। मैं बहुत खुश हूँ, वैसा ही जैसा पचास बरस पहले कैमरे वाले चाचा चम्पाराम जी के इस अवसर पर आ कर एक फोटो अपने कैमरे में कैद कर लेने पर खुश होता था। सभी मित्रों को जो बधाई दे चुके हैं, धन्यवाद और उन्हें भी जो देने वाले हैं, अग्रिम धन्यवाद!!!

24 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत-बहुत शुभकामनाएं...
    आपका बचपन खुशहाल रहे :)

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  2. वाह जी, यही जज़्बा बना रहे.

    जन्म दिन की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  3. कुछ प्रोफेशन ऐसे होते हैं जहां जवानी इसी उम्र से गहराती है ! इस मामले में आप युवा होने को हैं शुभकामनायें !

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  4. मनुष्य अपने सोच ,चिंतन से युवा होता है अमर तक हो जाता है ..देह तो नश्वर है ..
    आपको जन्मदिन की बहुत शुभकामनाएं .....जीवेम शरदः शतम ...एट लीस्ट......

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  5. दिनेश राय जी
    जन्म दिन की बधाई .

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  6. साठा सो पाठा . ऎसी कहावत है हमारे यहा. एक दो साल कम पर भी यही लागू होगा . शब्दो के सफ़र मे आपका जीवन संघर्ष पढ ही चुके है .
    आपको जन्मदिन की ढेर सारी बधाई .

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  7. जीवनपर्यंत प्रसन्न रहें. ढेरों मंगलकामनाएं.

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  8. बहुत बहुत बधाई.

    बच्चों सा उत्साह बना रहे :)

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  9. बहुत अच्छा हुआ रिवर्स गियर लगाया है। जन्मदिवस की बहुत बहुत बधाईयाँ।

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  10. जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनायें

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  11. :) दिनेश जी जन्म दिन की ढेर सारी शुभकामनाएं। भगवान करे आप की उम्र की गाड़ी अब पीछे की तरफ़ मुड़ जाए और जब आप हों साठ साल के तो जज्बा हो सोलह साल का। मैं ने ठीक बारह बजते ही आप को मेल किया था उनींदी आखों से, इस लिए सिर्फ़ बधाई दी थी। बताइए तो सही सबसे पहला मेल मेरा था कि नहीं? …।:)

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  12. "पचपन में बचपन" फिर से प्राइमरी में जाना होगा. आपको जन्म दिवस पर ढेरों बधाईयाँ.

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  13. पचपन में बचपन मुबारक हो....

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  14. जन्म दिन की बहुत बहुत शुभकामनायें। आपकी4 कर्मनिष्ठा और स्वास्थ्य यूँ ही उत्साह से भरा रहे। आपका यही जज़्वा हमे भी प्रेरणा देता है इस लिये इसी तरह अपने बचपन के साथ जीयें। आपसे बडी हूँ मगर फिर भी बचपना नही गया। बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें

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  15. सेवानिवृत्ति की योजना बहुत पहले बना ली जाए,तो कुछ भी अचानक हुआ नहीं जान पड़ेगा और उसके बाद का जीवन भी सहज तथा उत्सुकता भरा रहेगा। प्रेरक आलेख।

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  16. दिनेशजी, आप तो 55 पर ही इतना सोच बैठे। मुझे तो 63वें की समाप्ति पर भी इतना और ऐसा सोचने का अवकाश नहीं मिल पा रहा। पारिवारिक जिम्‍मेदारियॉं तो हमें निभानी ही हैं, उनसे अलग हटकर हमें वे जिम्‍मेदारियॉं भी निभानी हैं जो हमें पारिवारिक विरासत में नहीं, पारम्‍परिक सामाजिक विरासत में मिली हैं। उन्‍हें निभाने में आपका 'युवा वकील' अधिक उपयोगी होगा। जो जितना अधिक विद्वान् वह उतना ही अधिक जिम्‍मेदार। आप जैसे तमाम लागों को तो यह 'राम काज' निभाना ही पडेगा। उसक बिना विश्राम कहॉं।

    जन्‍म दिन की ढेर सारी बधाइयॉं। आप पूर्ण स्‍वस्‍थ रहें और आपकी सक्रियता जवानों को प्रेणा दे।

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कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
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