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शनिवार, 28 अगस्त 2010

सत्तू की परेशानी कम न हुई, उसे उपभोक्ता अदालत जाना पड़ा, जहाँ उसे राहत मिली लेकिन बहुत कम

आप ने अब तक पढ़ा......
27 सितंबर 2004 को अचानक सत्तू के मोबाइल फोन पर लगातार फोन आने लगे जो सब के सब सचिन तेंदुलकर के लिए थे। यह परेशानी उस के मोबाइल सेवा प्रदाता एयरटेल द्वारा जारी एक विज्ञापन के कारण था। जिस से लोग यह समझ बैठे थे कि विज्ञापन में दिया गया टेलीफोन नं. सचिन का है, जब कि वह सत्तू का है। सत्तू परेशान हो गया। वह किसी को फोन नहीं कर सकता था, जो उसे फोन करना चाहते थे उन्हें उस का फोन हमेशा एंगेज मिल रहा था। उस ने एयरटेल को शिकायत की लेकिन सुनवाई नहीं हुई। उस ने एक कानूनी नोटिस भी कंपनी को दिलाया। पढ़िए आगे क्या हुआ .......
त्तू की ओर से मैं ने जो नोटिस दिया था उस की कोई प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया कंपनी की ओर से नहीं हुई। सत्तू को कोई राहत दी जाती या उस से कोई बात की जाती उस के स्थान पर वही विज्ञापन दिसंबर में फिर से अखबारों में प्रकाशित कराया गया। उस के बहुत खूबसूरत बड़े पोस्टर जगह जगह लगाए गए बड़े-बड़े होर्डिंग्स पर यह विज्ञापन चस्पा किया गया। जिस का नतीजा फिर यह हुआ की सत्तू के पास फिर से सचिन तेंदुलकर को पूछने वाले फोन आने लगे। वह फिर उसी तरह की परेशानी में आ गया जैसी उसे 27 सितंबर के बाद लगभग एक माह तक रही थी।
स बीच सत्तू के प्री-पेड खाते में धन कम हो गया था और वैधता की अवधि समाप्त होने को थी। उस ने 9 अक्टूबर 2004 को कैश कार्ड का नवीनीकरण कराया।  मोबाइल फोन पर यह संदेश आ रहा था कि उस की वैधता की अवधि 8 अक्टूबर 2005 है। लेकिन 17 जनवरी 2005 को उस के मोबाइल पर फोन आना जाना बंद हो गए और 'सिम कार्ड कनेक्शन फेल्ड' संदेश आने लगा। सत्तू ने तुरन्त ही एयरटेल के स्थानीय सेवा केंद्र से संपर्क किया तो उसे बताया गया कि उस के सिम कार्ड की वैधता तो 8 नवम्बर 2004 को ही समाप्त हो चुकी थी, 17 जनवरी तक फोन कंपनी की गलती से चालू रहा। इस के बाद भी 60 दिनों तक रिचार्ज नहीं कराए जाने के कारण सिम कनेक्शन फेल्ड हुआ है। हालांकि सेवा केन्द्र से मिले इस उत्तर ने अनेक प्रश्न खड़े कर दिए थे कि 60 दिन भी 7 जनवरी को ही समाप्त हो चुके थे 17 जनवरी तक सिम कैसे चालू रहा? इस से पहले जब 8 नवम्बर 2004 को वैधता समाप्त हुई थी तब क्यों नहीं कनेक्शन एक तरफा नहीं किया गया? इन प्रश्नों का एक ही उत्तर था कि यह सब जानबूझ कर कंपनी द्वारा किया गया था। खैर! सत्तू ने अपने कैश कार्ड पर छपी शर्तों को पढ़ा तो पता लगा कि कैश कार्ड की वैधता की अवधि में उसे पुनः चार्ज कर के अवधि बढ़ाई जा सकती है। नहीं करा सकने पर उस की कुछ सेवाएँ हटा ली जाती हैं लेकिन उपभोक्ता वैधता समाप्ति के 60 दिनों में उसे रिचार्ज करवा कर वैधता को पुनर्स्थापित करवा सकता है। इस के बाद  सिम कार्ड कनेक्शन फेल हो जाने पर भी 30 दिन की अवधि में उपभोक्ता सिम कार्ड एक्टीवेशन शुल्क जमा करवा कर अपने नंबर को चालू करवा सकता है। 
कंपनी के अनुसार उस की वैधता 8 नवम्बर को समाप्त हुई थी तो वह 7 जनवरी तक वैधता को पुनर्स्थापित करवा सकता था। और 6 फरवरी तक वह रिएक्टीवेशन शुल्क जमा करवा कर अपने नंबर को फिर से चालू करवा सकता था। उस ने दिनांक 22 जनवरी 2005 को सिम एक्टीवेशन शुल्क रुपए 113/- जमा करवाया और रसीद प्राप्त कर ली। स्थानीय सेवा केंद्र उस के नंबर को नए सिम कार्ड पर स्थापित करने के लिए प्रयत्न करने लगा। लेकिन लाख प्रयत्नों के बाद भी वह सत्तू का नंबर चालू नहीं करा सका और सेवा केंद्र ने हाथ खड़े कर दिए। कहा कि उस का पुराना नंबर चालू नहीं किया जा सकता। कंपनी एवज में नया नंबर देने को तैयार है साथ ही उसे एक वर्ष तक सिम कार्ड की सारी सेवाएँ निशुल्क यानी मुफ्त प्रदान की जाएंगी। लेकिन सत्तू को पुराने नंबर की एवज में यह सब मंजूर नहीं था। उस ने मुझे आ कर कहा -अंकल जी, अब तो मुकदमा करना ही पड़ेगा। हम ने मुकदमा तैयार कर 4 फरवरी 2005 को जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच के समक्ष प्रस्तुत कर दिया जिस में  असुविधाओँ और व्यवसाय की हानि के लिए पाँच लाख रुपए, बिना अनुमति सत्तू का टेलीफोन नंबर विज्ञापन के लिए उपयोग करने हेतु दस लाख रुपए, शारीरिक व मानसिक संताप के लिए दो लाख रुपए तथा परिवाद का खर्चा रुपए पाँच हजार कुल रुपए 17 लाख 5 हजार की मांग की गई।

पभोक्ता मंच में मुकदमे में तमाम साक्ष्य प्रस्तुत कर देने के उपरांत 24 जनवरी 2006 को मुकदमा बहस के लिए निश्चित हो गया। लेकिन मंच में कभी अध्यक्ष और कभी सदस्य न होने के कारण और कभी अन्य कारणों से बहस न हो सकी। अंत में 11 अगस्त 2010 को बहस संपन्न हुई। जहाँ सत्तू की और से उक्त सभी तथ्य मंच के सामने रखे गए। जब कि कंपनी की तरफ से केवल यह कहा गया कि इन के सिम की वैधता की अवधि समाप्त हो जाने के कारण इन का कनेक्शन शर्तों के मुताबिक समाप्त किया गया है। इस एक पंक्ति के अलावा कंपनी के वकील ने कोई बहस नहीं की। फैसला क्या होना था यह उसी दिन तय हो गया। निर्णय के लिए 23 अगस्त की तारीख निश्चित कर दी गई। 
23 अगस्त 2010 को उपभोक्ता मंच द्वारा दिए गए अपने निर्णय में मंच ने कंपनी को सत्तू के नंबर का अवैध रूप से उपयोग करने का,  सत्तू के लिए परेशानियाँ खड़ी करने का और सेवा में त्रुटि करने का दोषी माना। राहत यह दी कि कंपनी सत्तू का पुराना नम्बर 9829137100 बहाल करे, इस नंबर को बहाल करने में बाधा हो तो कोई नया नंबर दे कर सभी सेवाएँ नियमित करे, और सत्तू को व्यवसाय की क्षति के लिए 10,000/- रुपए असुविधा के लिए 10,000/- रुपए और परिवाद खर्चा रुपए 2000/- कुल बाईस हजार रुपए अदा करे। सत्तू इस फैसले से प्रसन्न नहीं है। उस का कहना है कि उसे बहुत कम क्षतिपूर्ति दिलाई गई है। वह आगे राज्य उपभोक्ता प्रतितोष आयोग के समक्ष इस निर्णय के विरुद्ध अपील प्रस्तुत करना चाहता है।

7 टिप्‍पणियां:

  1. हमारी उपभोक्ता अदालतें पीड़ित को समुचित प्रतिसाद नहीं दे पातीं !

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  2. उपभोक्ता अदालत के कुछ निर्णय पढ़ व्यग्रता होने लगती।

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  3. तीसरा खंभा...
    काफ़ी दिनों बाद आना हुआ...

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  4. वैसे मुझे तो इतने की भी उम्मीद नहीं थी ! फ़ैसले के बाद रकम मिल गयी क्या?

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  5. vakai kam hai yeh to puri samasyaa ko dekhte hue. aage bataiye kya paise mile yaa fir sattu ne rajya upbhokta aayog me apna mamla pesh karwaya....

    dar-asal aise mamle ek najir saabit hote hain isliye mujhe jyada hi utsukta hai is mamle ki...

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  6. इतनी कम राशि यही सिद्ध करती है कि हमारे देश में व्यक्ति की सुविधा असुविधा को कितना मह्त्व दिया जाता है। इतनी बड़ी कम्पनी अपने ग्राहक को इस तरह से महत्वहीन मानकर व्यवहार करती है तो उसे सजा मिलनी चहिए ताकि वह भविष्य में किसी के साथ ऐसा व्यवहार न करे।
    घुघूती बासूती

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  7. सत्‍तू के पक्ष में यह निर्णय देना भी सम्‍बन्धित लोगों की विवशता रही होगी। सत्‍तू की क्‍या बिसात? वह पिद्दी तो क्‍या, पिद्दी को शोरबा भी नहीं। उसके मकाबले 'एयर टेल' तो अपेक्षा से कई गुगना अधिक और कल्‍पना से कोसों आगे जाकर उपकृत करता रह सकता है।

    सत्‍तू ने (और आपने भी), 'धन' को परास्‍त करने का अविश्‍वसनीय कारनामा कर दिखाया।

    तनिक साफ-साफ बताइएगा, मुकदमें के दौरान 'एयर टेल' ने आपको खरीदने की कोशिश की या नहीं?

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