कोटा राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम में चंबल नदी के पूर्वी किनारे बसा महत्वपूर्ण नगर है, और जिला व संभाग मुख्यालय यहाँ स्थित हैं। चंबल के पूर्व दिशा में इस से बाराँ और झालावाड़ जिले तथा चित्तौड़ जिले का रावतभाटा कस्बा जुड़ा हुआ है। शेष राजस्थान से संपर्क के लिए चंबल नदी को पार करना आवश्यक है। कोटा से ही हो कर राष्ट्रीय राजमार्ग सं. 12 गुजरता है जो जयपुर से भोपाल होता हुआ जबलपुर तक जाता है। कोई तीस वर्ष पहले इस नदी पर एक ही रियासत कालीन पुल था जिस से यह नगर राजस्थान से जुड़ता था। इस के अलावा एक पुल और है जो चंबल बैराज पर बना हुआ है। लेकिन इस पुल से केवल हल्का यातायात ही गुजर सकता है वह भी सीमित मात्रा में। कोई तीस बरस पहले एक ऊँचा पुल इस रियासत कालीन पुल के समांनांतर बनाई गई और यातायात उस पर से गुजरने लगा।
कोटा में चंबल पर पुराने रियासत कालीन पुल से गुजरता यातायात |
इस बीच कोटा नगर का विस्तार होना आरंभ हुआ तो यह चंबल के पश्चिमी किनारे पर भी फैल गया। अब नगर के का स्थानीय यातायात भी इसी पुल से गुजरने लगा। हालत यह हो गई कि पुल पर दिन में कई कई बार जाम लगने लगा। चंबल पुल के दोहरीकरण की जरूरत महसूस होने लगी। जो ऊँचा पुल बनाया गया था वह जिस तकनीक से बनाया गया उस में हर खंबे पर बेयरिंग्स लगे हैं जिन्हें समय-समय पर मरम्मत की जरूरत होती है और उस के लिए पुल पर यातायात रोका जाना आवश्यक है। इस कारण पुल का दोहरीकरण करने के लिए एक समानान्तर पुल बनाया जा रहा है और यह निर्माणाधीन है। इस बीच ऊँचे पुल की मरम्मत जरूरी हो गई और उसे बंद कर दिया गया है। अब समूचा यातायात निकालने के लिए वही पुरानी रियासत कालीन पुलिया ही एक मात्र मार्ग शेष रह गई थी। उसे अस्थाई तौर पर भारी यातायात गुजरने लायक बनाया गया। उसी पर से आजकल यातायात निकाला जा रहा है।
जितना यातायात है उस के मुकाबले रियासत कालीन पुल बहुत छोटा है। इस कारण से यातायात बहुत ही सावधानी से निकाला जा रहा है। यातायात नियंत्रित रखने के लिए यातायात पुलिस और अन्य विभागों के अनेक कर्मचारियों को वहाँ लगाया हुआ है। उस के बावजूद स्थिति यह है कि पुल पर से गुजरने में जहाँ दो मिनट लगते थे अब आधे घंटे से ले कर दो घंटे तक लग सकते हैं। वर्तमान में इसी ट्रेफिक को निकालने के लिए दो पुल निर्माणाधीन हैं और तीसरा वह है जिस की मरम्मत चल रही है। अब आप यातायात की हालत का अनुमान स्वयं कर सकते हैं।
तीन बड़े पुलों का काम एक पुरानी रियासत कालीन पुलिया से लिया जा रहा है। इधर अदालत में चर्चा यह है कि कोटा में ट्रेफिक की हालत अदालत में लंबित मुकदमों की तरह हो गई है जो पग-पग मुश्किल से सरकते हैं। इन दिनों उस बेचारी रियासत कालीन पुलिया की हालत हमारी अदालतों की तरह है। एक-एक अदालत पाँच-पाँच अदालतों का काम ढो रही है। वैसे ही जैसे वह पुरानी जर्जर छोटी पुलिया अस्थाई मरम्मत के साथ तीन बड़े पुलों का यातायात ढो रही है। ट्रेफिक का आलम ये है कि इस पर से गुजरने वाली साइकिल, बाइक या पैदल व्यक्ति की तो खैर ही नहीं है।
हुक्मरान पुल तो बना देते हैं कि इससे भाई-बंधुओं में बंदरबांट का अवसर मिलता है, काश अदालतों का बजट ३० प्रतिशत बढा के बंदरबांट कर लें लेकिन अदालतें तो बनाये।
जवाब देंहटाएंभारत की जनता ने जहाँ इतना सहा है, न्याय के नाम पर ३० प्रतिशत भी झेल लेंगे लेकिन हाकिम के कान तक फ़रियाद पंहुचे तो भी कैसे ?
इस पुल की कई यादें हैं हमारे पास और अवशेष शायद नदी के पेट में:)
जवाब देंहटाएंबल्कि आम आदमी की उम्मीदों के लिये नियत यह बाधा दौड दिन ब दिन और भी कडी होती जा रही है ! एक सुविचरित आलेख !
जवाब देंहटाएंवर्तमान दशा में अदालतीय पैदलों न साइकिल सवारों के लिये भी खतरा है ।
जवाब देंहटाएंअद्भुत अन्तर्सम्बन्ध प्रस्तुत किया आपने।
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