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सोमवार, 7 जून 2010

आखिर किस से मापें? तेरा माप

आखिर किस  से मापें
तेरा माप
सारे पैमाने देख लिए
माप कर

भोपाल दुखांतिका के
अपराधियों को दंड
आज वह भी देख लिया
सरकारी आँकड़ों में
सिर्फ साढ़े तीन हजार
बचाव करने वालों के मुताबिक
पच्चीस हजार जानें लील लेने
हजारों और को
सदा के लिये बीमार
कर देने वालों को
दो वर्ष की कैद, 
जुर्माना सिर्फ एक-
एक लाख रुपया,
अपील करने का हक,
उस के फैसले तक के लिए
फौरन जमानत
अपील में लोगे
और कितना वक्त?
क्या कम थे?
तेईस बरस
क्या किया था?
सुखिया ने

खाली कटोरदान
ही तो उठा कर फेंका था
तीन दिन की
भूख से बिलखते
बेटे के सिर पर
कमबख्त!
अपनी माँ का प्यार और 
जमाने पर गुस्सा
नहीं झेल पाया
मर गया

सुखिया ने मान लिया
खुद ही, अपराध अपना
कोई काम शेष न था
जजों के पास
उसे सजा देने के पहले का

अब जेल में बंद है
पिछले पाँच बरस से, कि
कब खत्म हो
मुकदमे की सुनवाई?

वह तो मान चुकी है
इसे ही अपनी सजा

बाहर होती?
तो कब की मर जाती
छूट चुकी होती
जमाने के नर्क से

आखिर किस  से मापें
तेरा माप
सारे पैमाने देख लिए
माप कर
  • दिनेशराय द्विवेदी

14 टिप्‍पणियां:

  1. सचमुच बेहंद क्षोभजनक और अफसोसनाक -वही बहुउद्धृत वाक्य बार बार याद आता है कि जस्टिस डीलेड इज जस्टिस डिनायिड

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  2. ऎई तेरी श्शाबास .. भई वाह पँडित दिनेश जी भी कवि हुई गये ! और आते न आते दिहिन दे धड़ाका धाँसू कविता !
    क्या करोगे मित्रवर.. ,

    इक मौत का माहौल था दहशत की हवा थी
    वह ख़ौफ़ का आलम था गफ़लत की हवा थी
    इतना तो पक्का है कि हाँ ज़ुल्म तो हुआ है
    लो, ज़ालिम का पता है न गवाहों का पता है
    अनजान बन बेरहम पूछते यह किसने किया है
    फ़ितरत है चालाकी दिल तो पत्थर का बना है

    लेयो हमारौ आशु-ठेल बाँचौ ! हिसाब बरोबर

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  3. पता नहीं ये इन्साफ है या इन्साफ का
    अभी हाईकोर्ट बाकी है
    और सुप्रीमकोर्ट भी है..
    द्विवेदी साहब, आप खुद इन्साफ के मंदिर में बैठते हैं आप स्वयं जानते होंगे, मैं क्या बताऊं...
    मेरे एक मित्र हैं वकील, जैसा जैसा वर्णन करते हैं मुझे तमाम कानून, संविधान, गरिमा, जैसी चीजें सिर्फ अलमारी में सजाकर रखने की चीजें ही दिखाई देने लगती हैं...

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  4. ये न्यायपालिका और इंसानियत दोनों को शर्मसार करने वाला फैसला है,ऐसा फैसला देने वाले जज के खिलाप तुरंत भ्रष्टाचार के जाँच की जनहित याचिका लगनी चाहिए |

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  5. बेहद अफसोसजनक .. भावनाओं को अच्‍छी अभिव्‍यक्ति दी है आपने !!

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  6. मन के किसी आंगन में...अभी किसी उम्मीद का कोना छूटता है...कहीं कुछ टूटता है...

    और सुबकुहाट को शायद कविता कह देते हैं...

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  7. वाह जी आप भी कवि... ओर एक वकील के कलम से इतनी सुंदर कविता.... न्याय ओर अन्याय पर बहुत अच्छी लगी, धन्यवाद

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  8. आधुनिक युग में आधुनिक कविता जल्दी सन्देश दे जाती है....आक्रोश का भाव मन को छू जाता है.

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  9. अफसोसजनक...रचना जाहिर कर रही है संपूर्ण भाव!

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  10. तकलीफदेह, बढ़िया अभिव्यक्ति है भाई जी !

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  11. न्याय का मजाक है भोपाल काण्ड का न्याय

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  12. पता था कि यही होगा। फिर भी, 'यही' हो जाने से क्षुब्‍ध हूँ।

    शब्‍द आपके, भावनाऍं मेरी।

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