पेज

बुधवार, 2 जून 2010

कामरेड! अब तो कर ही लो यक़ीन, कि तुम हार गए हो



कामरेड!
अब तो कर ही लो यक़ीन
कि तुम हार गए हो

अनेक बार चेताया था मैं ने तुम्हें
तब भी, जब मैं तुम्हारे साथ था
कदम से कदम मिला कर चलते हुए
और तब भी जब साथ छूट गया था
तुम्हारा और हमारा

याद करो!
क्या तय किया था तुमने?
छियालीस बरस पहले
जब यात्रा आरंभ की थी तुमने
कि तुम बनोगे हरावल
श्रमजीवियों के
तुम बने भी थे
शहादतें दी थीं बहुतों ने
इसीलिए
सोचा था बहुत मजबूत हो तुम

लेकिन, बहुत कमजोर निकले
आपातकाल की एक चुहिया सी
तानाशाही के सामने टूट गए
जोश भरा था जिस नारे ने किसानों में
'कि जमीन जोतने वालों की होगी'
तुम्हारे लिए रह गई
नारा एक प्रचार का
मैं ने कहा था उसी दिन
तुम हार गए हो
लेकिन तुम न माने थे

त्याग दिया मार्ग तुमने क्रांति का
चल पड़े तुम भी उसी मतपथ पर
चलता है जो जोर पर जो थैली का हो
या हो संगठन का
ज्यों ज्यों थैली मजबूत हुई
संगठन बिखरता चला गया
तुमने राह बदल ली
हो गए शामिल तुम भी
एकमात्र मतपथ के राहियों में
हो गए सेवक सत्ता के
भुला दिए श्रमजीवी और
झुलसाती धूप में जमीन हाँकते किसान
जिनका बनाना था एका
बाँट दिया उन्हें ही
याद रहा परमाणु समझौते का विरोध
और एक थैलीशाह के कार कारखाने
के लिए जमीन

अब मान भी लो
कि तुम हार गए हो
नहीं मानना चाहते
तो, मत मानो
बदल नहीं जाएगा, सच
तुम्हारे नहीं मानने से
देखो!
वह अब सर चढ़ कर बोल रहा है

नहीं मानते,
लगता है तुम हारे ही नहीं
थक भी गए हो
जानते हो!
जो थक जाते हैं
मंजिल उन्हें नहीं मिलती

जो नहीं थके
वे चल रहे हैं
वे थकेंगे भी नहीं
रास्ता होगा गलत भी
तो सही तलाश लेंगे
तुम रुको!
आराम करो
जरा, छांह में
मैं जाता हूँ
उन के साथ
जो नहीं थके
जो चल रहे हैं 
 

38 टिप्‍पणियां:

  1. sir rajneeti hai kab kiska padla bharri ho jaye kya pata...aur unke saamne janta hai...jo na bura sunti hai na dekhti hai...na bolti hai...uska kya bharosa...

    जवाब देंहटाएं
  2. शानदार....मैं लगभग पिछले कुछ साल से ऐसा ही महसूस कर रहा हूं...पुराना काडर रहा हूं...तो आज का हाल बहुत खलता है...पर चलना तो होगा ही अलग ही सही....नतीजा महत्वपूर्ण है....रास्ता नहीं....

    जवाब देंहटाएं
  3. हर बार जो हारे हैं वे कामरेड नहीं हैं.. खुद को कामरेड कहने वाले लोग हैं..
    कामरेड कभी हार नहीं सकते यह मेरा अथक विश्वास है..

    जवाब देंहटाएं
  4. एक ईमानदार प्रस्तुति, धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  5. आईये जाने .... प्रतिभाएं ही ईश्वर हैं !

    आचार्य जी

    जवाब देंहटाएं
  6. कामरेड ट्यूब लाइट हैं ... समझने में समय लेंगे.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर कविता
    चलते ही रहना है रुकना नहीं
    मंजिल तक पहुंचना ही है।

    राम राम सा

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुन्दर लिखा है ... और सच लिखा है !

    जवाब देंहटाएं
  9. खूब गद्य काव्य -इधर दीदी ओ दीदी ने भी जवाब दे दिया है !

    जवाब देंहटाएं
  10. कामरेड कभी नहीं हारते। बहुत हुआ तो बाद में ऐतिहासिक भूल कहकर दर्ज कर लेंगे। बस छुट्टी।

    जवाब देंहटाएं
  11. आप की बहुत बातों से सहमत हूँ लेकिन:
    याद रहा परमाणु समझौते का विरोध
    और एक थैलीशाह के कार कारखाने
    के लिए जमीन
    यह दो बातों को आप ने कैसे जोड़ दिया? कम से कम परमाणु समझौते का विरोध तो कामरेडों का एक बहुत दलेर और असूली कदम था जिस की उन्हों ने कीमत चुकाई. और फिर वो हारे भी एक अतिशय प्रतिकिर्यवादी पार्टी से हैं, कोई क्रांतीकारी पार्टी से नहीं, चुनावी राजनीती में ऐसा तो होता ही है.

    जवाब देंहटाएं
  12. @ Baljit Basi
    बलजीत जी,
    शुक्रिया इस प्रतिक्रिया के लिए,
    दूसरे विश्वयुद्ध के समय भी यही त्रुटि हुई थी। जब सोवियत सेना मित्र देशों के साथ लड़ी तो भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध अपनी जंग स्थगित कर दी। बाद में जब भारतीय कामरेड स्टॉलिन से मिलने गए तो उन्हों ने इस त्रुटि को रेखांकित किया कि तुम्हें तो अपनी आजादी की लड़ाई को जारी रखना था। उसे स्थगित रखने से इस युद्ध पर क्या फर्क पड़ता था। इसे ही आज ऐतिहासिक गलती कहा जाता है।
    परमाणु समझौते का विरोध तो ठीक था। लेकिन उस के लिए सरकार गिराने की कोशिश के स्थान पर जनविरोध विकसित करना था। लेकिन जनता से कटे लोग क्या कर सकते थे? सरकार तो फिर भी न गिरी। न ही टाटा का कारखाना बंगाल में लग पाया। जनता से दूर और हुए।

    जवाब देंहटाएं
  13. .
    .
    .
    हर मेहनतकश इस दुनिया से
    जब अपना हिस्सा माँगेगा

    दो गांव नहीं, दो खेत नहीं
    वो सारी दुनिया माँगेगा !


    आदरणीय द्विवेदी जी,

    प्रियदर्शी जी ने सही कहा है... और उनका अथक विश्वास भी सही है... कामरेड कौन है... हर वो शख्स जो मेहनतकश, शोषित, दलित और पिछड़े के साथ खड़ा है... वही न... आवाज भले ही धीमी हो... पर अनेकों कामरेड अपने अपने तरीके से लगे हैं... बिना थके.. बिना हारे... हार या जीत से बेफिकर... और मुझे भी पूरा यकीन है कि वे हारेंगे नहीं... यदि वे भी हार गये... तो दुनिया भी नहीं चल पायेगी... महाप्रलय होगा तब!

    जवाब देंहटाएं
  14. हार तो गये पर 'बंगाल' को 'कंगाल' बना के छोड़ा।

    जवाब देंहटाएं
  15. श्रमजीवी के संरक्षक आज रक्त पिपासु हो गये हैं । दर्पण देखें, कोई इन्हें क्या बताये ?

    जवाब देंहटाएं
  16. अनुनाद सिंह से सहमत…

    मेहनतकशों के नाम पर बनाई हुई "गैंग" हारी है… मेहनतकश तो पहले से ही हारा हुआ था…

    जवाब देंहटाएं
  17. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  18. क्या अटल सरकार के टलने पर कहा गया ' हिदुओं के नाम पर बनाई गैंग हारी है…हिन्दू तो पहले ही हार गये थे'

    जवाब देंहटाएं
  19. यह सच है कि बंगाल में सी पी एम की हार हुई है…यह एक तरह से संसदीय वाम की भी हार है। सीपीएम को मैं भी संशोधनवादी मैं भी मानता हूं।

    लेकिन एक सवाल है कि जो गैरवामपंथी लोग यहां आकर मर्सिया पढ़ रहे हैं … ऐसे कि जैसे चुनावी राजनीति में कभी किसी पार्टी की हार हुई ही नहीं उनके सीने तब क्यूं नहीं फटे जब इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी जैसे तुर्रम खां हार गये, जब मीडिया द्बारा बनाये गये महान नेता अटल बिहारी बाजपेयी धूल चाटने पर मज़बूर हुए,उत्तर प्रदेश में कल्याण और भाजपा अर्श से फर्श पर आ गयीं… चुनावी राजनीति में हार क्या इतना बड़ा मुद्दा है? आज सी पी एम से जो सवाल पूछे जा रहे हैं वे उनसे क्यों नहीं पूछे गये।

    साफ है कि यह बस अंधवामविरोधियों के विराट दुष्प्रचार का हिस्सा है जिसमें कई बार घोषित वामपंथी भी फंस जाते हैं। जहां और जगहों पर पांच सालों में एंटी इन्कमबेन्सी का राग अलापा जा सकता है तो वही लाजिक तीसेक सालों के वाम शासन पर क्यों नहीं?

    क्या यह मान लिया गया है कि वाम बंगाल में फिर शासन में नहीं लौटेगा? क्या उसके विकल्प मेम उभरी अवसरवादी-अराजक ममता बनर्जी से वाकई बड़ी उम्मीदें पाली जा सकतीं हैं? क्या अपने भ्रष्टतम रूप में भी वाम मोर्चा सरकारें भाजपा,बसपा,कांग्रेस या समाजवादी दलों से बेहतर नहीं रही हैं? क्या आंकड़ो की कसौटी पर कंगाल बनाने वाला तर्क सही उतरता है?

    यह एक चुनावी हार है। यह सीपीएम और उसके साथियों को अपनी रणनीति,कार्यनीति और साथ ही संसद्परस्त राजनीति पर पुनर्विचार का अवसर उपलब्ध कराती है। अगर वे ऐसा कर सके तो चुनावी हार के जीत में बदलते देर नहींं लगेगी। बंगाल का पतन बस्तील का पतन नहीं है…

    सी पी एम के क्रांतिकारी चरित्र पर पूर्ण अविश्वास के बावज़ूद मैं उसे एक सामाजिक जनवादी पार्टी मानता हूं और संसदीय लोकतंत्र में साप्रदायिकता विरोधी तथा पूंजीवाद विरोधी पक्ष के रूप उसकी उपस्थिति को भी ज़रूरी मानता हूं।

    हां मेरा मानना है कि कविता प्रतिक्रिया में बन नहीं पाती…

    जवाब देंहटाएं
  20. bahut sundar prastuti.........kuch kar gujarne ko prerit karti.

    जवाब देंहटाएं
  21. अशोक पाण्डेय जी,

    1) आपने सही कहा कि हिन्दू तो पहले ही हार चुके थे, क्योंकि जिन पर हिन्दुओं ने भरोसा करके जितवाया, वह "गैंग" भी हार गई।

    2) भाई, हम तो अपनी हार और गलती दोनों ही मानते हैं कि हम भाजपा में सही व्यक्ति का चुनाव नहीं कर पाये और पीठ में छुरा खा लिया, लेकिन आप ही नहीं मानते, कि अब "लाल-गैंग" हारी है, मेहनतकश तो पहले ही हार चुका था।

    3) हमें तो खुशी इस बात की हो रही है कि कांग्रेस को गोद में और सिर पर बैठाकर "साम्प्रदायिकता" के नाम पर गले फ़ाड़ने वाले, आज खुद कांग्रेस का शिकार हो गये हैं।

    4) भाजपा को वोट देना, सिर्फ़ हमारी तात्कालिक मजबूरी है, क्योंकि कोई अन्य विकल्प ही नहीं है। कांग्रेस को एक बार वोट दिया था, भाजपा द्वारा की गई "कंधार" की गलती की सजा के तौर पर।

    जवाब देंहटाएं
  22. अशोक पाण्डेय जी,
    आप तो कई बार "हिन्दुत्ववादी शक्तियों" की हार पर जश्न और पार्टी मना चुके हैं…। अब कम से कम एक बार तो हमें भी "लाल आतंक" के हारने की मना लेने दीजिये… :)

    जवाब देंहटाएं
  23. suresh ji jashn aap kis baat ka kashn manaoge??aapka kya yogdaan hai harane me?kya bjp ne haraya hai cpm ko?k

    जवाब देंहटाएं
  24. इस बारे हमे ज्यादा नही पता. धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  25. क्या यह मान लिया जाए कि फ़साना ख़त्म हुआ ?
    "मैं जाता हूँ
    उन के साथ
    जो नहीं थके
    जो चल रहे हैं "
    द्विवेदी जी आपकी कविता के ये अंश मुझे पसंद है...बाकी बहस लम्बी है !
    आज टिप्पणियां काफी आईं :)

    जवाब देंहटाएं
  26. क्या यह मान लिया गया है कि वाम बंगाल में फिर शासन में नहीं लौटेगा?
    लोकतंत्र-विरोधी विचारधारा का लोकतांत्रिक चुनाव में हाथ आजमाना ही पहली हार है. और चुनाव में हार जाना तो हार पे हार... तानाशाही, हिंसा, तोड़फोड़ और प्रचार से दिल नहीं जीते जा सकते उसके लिए रचनात्मक कार्य, और जन-उत्थान करना ज़रूरी है. साथ ही व्यक्तिगत विचारधारा की स्वतंत्रता का आदर मानवता की मूल ज़रूरतों में से एक है.
    सत्यमेव जयते नानृतम!

    जवाब देंहटाएं
  27. निखिल जी,
    भाजपा को भी हराने में आपने कौन से पहाड़ तोड़ लिये? भाजपा तो अपनी गलतियों से हारती है… लेकिन तब भी "सेकुलर्स" और "वामपंथी" लोग जश्न तो मनाते ही हैं, सो आज हम भी मना लेते हैं… :)

    जवाब देंहटाएं
  28. सामयिक कविता, सार्थक बहस

    जवाब देंहटाएं
  29. तानाशाही, हिंसा, तोड़फोड़ और प्रचार से दिल नहीं जीते जा सकते उसके लिए रचनात्मक कार्य, और जन-उत्थान करना ज़रूरी है. साथ ही व्यक्तिगत विचारधारा की स्वतंत्रता का आदर मानवता की मूल ज़रूरतों में से एक है.

    तो हिटलर और मोदी कैसे चुनाव जीतते हैं? और इसका इतना अर्थ तो है ही कि तीस सालों से जो हर चुनाव जीतते रहे वहां वह यह सब नहीं थे…और अगर आगे जीतेंगे ्तो आप उन्हें गालियां देना बम्द कर
    देंगे?

    चिपलूनकर जी ने भाजपा के हारने पर जनता को दोष दिया था…अब वही थियरी यहां क्यूं नहीं?

    और इस वाली कांग्रेस की गोद में बैठकर तो आपकी भाजपा बंगाल विजय के सवप्न देख रही थी…तब यह गोद वाला सिद्धांत नहीं याद आया आपको?

    जवाब देंहटाएं
  30. दिनेश जी,
    आपकी पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा। किंतु आपनए कहा कि
    "परमाणु समझौते का विरोध तो ठीक था। लेकिन उस के लिए सरकार गिराने की कोशिश के स्थान पर जनविरोध विकसित करना था। लेकिन जनता से कटे लोग क्या कर सकते थे? सरकार तो फिर भी न गिरी।"
    वाम ने जन विरोध बनाने का प्रयास किया था, उत्तर प्रदेश में अतुल कुमार अनजान ये कर रहे थे,दिल्ली और दूसरी जगहों के छात्र भी यह कर रहे थे। सरकार बची या गयी ये दूसरी बात है लेकिन आज भी अगर उस दिन की संसद की चर्चा देखे तो मालूम होता है कि वामपंथियों को छोड़ ज्यादतर लोग मनमोहन सिंह/ कांग्रेस/ गाँधी परिवार की स्तुति कर रहे थे या इसे साम्प्रदायिकता का पर्याय बनाये दे रहे थे। CPM ने गल्तियाँ की है और उन्हें हारना ही था, लेकिन तमाम कमजोरियों के बावजूद मुझे उनमें उम्मीद नज़र आती है ।
    इस सुन्दर रचना के लिये धन्यवाद! अच्छा लगा कि लोग ईमानदारी से कहते है,""कामरेड! अब तो कर ही लो यक़ीन, कि तुम हार गए हो"
    सुन रहे हो साथी ?

    जवाब देंहटाएं
  31. "मैं जाता हूँ
    उन के साथ
    जो नहीं थके
    जो चल रहे हैं "

    यह भाव पसंद आया।

    जवाब देंहटाएं
  32. व्‍यक्ति ही विचार का वाहक होता है। सो, व्‍यक्ति की पराजय को, विचार की पराजय मान लिया जाता है। यहाँ और भाजपा की हार पर भी यही बात लागू होती है।

    जब तक बंगाल के वामपंथी, पूँजीवादी विकास से दूर रहे, सत्‍ता में रहे। जब तक भाजपाई हिन्‍दुत्‍व को थामे रहे, सत्‍ता में रहे। जब ये दोनों अपने मूल से हटे तो लोगों ने दोनों को हटा दिया।
    अच्‍दा विचार जब खराब वाहक के जरिए सामने आता हे तो यही सब होता है।

    आपकी कविता तात्‍कालिक प्रतिक्रिया है जिसमें प्रत्‍येक को अपनी बात नजर आती है।

    जवाब देंहटाएं
  33. बहुत दिनो बाद यह कविता पढ़ी , अब उस समय पढ़ता तो बह्स मे भाग भी लेता । वैसे कविता मे इतने स्थूल रूप मे कहने के बाद अब बचता ही क्या है ।

    जवाब देंहटाएं

कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस?
जो भी हो, जरा यहाँ टिपिया दीजिए.....