श्रीमती शोभाराय द्विवेदी सोमवार से ही अत्यधिक व्यस्त थीं। उन के बाऊजी और जीजी जो आए हुए थे। बाऊजी को डाक्टर को दिखाने और दवा लेते रहने के बाद आराम था। उन का मन कर रहा था कि वे छोटी बेटी के यहाँ जयपुर भी मिल कर आएँ। लेकिन किसी के साथ के बिना यह यात्रा संभव नहीं थी। मैं ने ऑफर दिया था कि शुक्रवार की शाम चले चलेंगे मैं अपनी कार से उन्हें छोड़ कर रविवार को वापस लौट आऊंगा। लेकिन फिर लौटने की समस्या थी। अचानक यह तय हुआ कि वे वापस अपने घर लौटेंगे। श्रीमती द्विवेदी ने साथ देने का इरादा किया और वे शुक्रवार बाऊजी जीजी को छोड़ने चली गई। शनिवार को वापस लौटीं। अब मायके हो कर आई थीं तो कुछ तो वहाँ से ले कर आना ही था। दोपहर बाद पता लगा कि वे "आफू की पान्सी" लेकर आई हैं और शाम को वही पकना है।
"आफू की पान्सी" बोले तो अफीम के पत्तों को सुखा कर बनाई गई सब्जी जो गर्मी के दिनों में बड़ी ठंडक पहुँचाती है। वैसे जिन दिनों अफीम खेतों में हरी होती है तो उस के पत्ते निराई छंटाई के समय तोड़े जाते हैं तो हरे पत्तों की सब्जी भी बनाई जाती है। उन्ही दिनों कुछ पत्तों को तोड़ कर सुखा कर पान्सी बना ली जाती है जो गर्मी के मौसम में काम आती है। अफीम ऐसा पौधा है जिस का सब कुछ काम आता है। सब से मुख्य तो इस का फल है। जब .यह पौधे पर हरा रहता है तभी चाकू से इस में लम्बवत चीरे लगा दिए जाते हैं जिस से पौधे का दूध (लेटेक्स) निकलने लगता है और वहीं जम जाता है। इसी को इकट्ठा किया जाता है। यही अफीम है। यह नशा देती है। ऐसा मीठा नशा की जिस को लग जाता है छूटता नहीं। बहुत से दर्दों से एक साथ छुटकारा मिल जाता है। लेकिन कुछ दिन बाद उसी आनंद और आराम के लिए अधिक मात्रा की आवश्यकता होने लगती है। इसी से हेरोइन बनती है।
"आफू की पान्सी" बोले तो अफीम के पत्तों को सुखा कर बनाई गई सब्जी जो गर्मी के दिनों में बड़ी ठंडक पहुँचाती है। वैसे जिन दिनों अफीम खेतों में हरी होती है तो उस के पत्ते निराई छंटाई के समय तोड़े जाते हैं तो हरे पत्तों की सब्जी भी बनाई जाती है। उन्ही दिनों कुछ पत्तों को तोड़ कर सुखा कर पान्सी बना ली जाती है जो गर्मी के मौसम में काम आती है। अफीम ऐसा पौधा है जिस का सब कुछ काम आता है। सब से मुख्य तो इस का फल है। जब .यह पौधे पर हरा रहता है तभी चाकू से इस में लम्बवत चीरे लगा दिए जाते हैं जिस से पौधे का दूध (लेटेक्स) निकलने लगता है और वहीं जम जाता है। इसी को इकट्ठा किया जाता है। यही अफीम है। यह नशा देती है। ऐसा मीठा नशा की जिस को लग जाता है छूटता नहीं। बहुत से दर्दों से एक साथ छुटकारा मिल जाता है। लेकिन कुछ दिन बाद उसी आनंद और आराम के लिए अधिक मात्रा की आवश्यकता होने लगती है। इसी से हेरोइन बनती है।
जब सारी अफीम निकाल ली जाती है और फल पक जाता है तो उसे तोड़ लिया जाता है। इस फल के अंदर से निकलते हैं बीज जिन्हें हम पोस्ता दाना के नाम से जानते हैं। गर्मी में और साल भर इस का इस्तेमाल ठंडाई बनाने में होता है। इस दाने को पानी के साथ पीस कर फिर से दूध हासिल किया जा सकता है और इस की चावल के साथ खीर बनाई जा सकती है जो स्वादिष्ट तो होती ही है तासीर में ठंडी भी होती है। गर्मी के मौसम में दो चार बार यह खीर खाने को मिल जाए तो गर्मियों का आनंद आ जाता है। अब फल का खोल बचता है जिसे हम डोडा चूरा के नाम से जानते हैं। इस का उपयोग भी दवाओं के लिए होता है। सुना तो यह भी है कि कुछ बीड़ी उत्पादक डोडा चूरा को पानी में उबाल कर तंबाकू पर उस के पानी का छिड़काव कराते हैं। इस तम्बाकू से बनी बीड़ी का आनंद कुछ और ही है ऐसा कुछ बीड़ी उत्पादक बताते हैं।
अफीम के खेतों में जिन दिनों फूल खिलते हैं वहाँ की बहार देखने लायक होती है। जब भी सर्दी के दिनों में मुझे ननिहाल जाना पड़ा तब रास्ते में जिन खेतों में अफीम उगी होती थी वे ही सब से खूबसूरत दिखाई देते थे। अफीम में 12 प्रतिशत मॉर्फीन होता है जो अनेक दर्द निवारक दवाओँ का आवश्यक अंग है। इस के अलावा भी अफीम में अन्य रसायन होते हैं जो दवा निर्माण में काम आते हैं। दुनिया भर में ड्रग्स के धंधे में सर्वाधिक शेयर अफीम और उस के उत्पादकों का ही है। यही कारण है कि इस की स्वतंत्र खेती प्रतिबंधित है और सरकारी लायसेंस पर ही अफीम का उत्पादन किया जा सकता है और सारी अफीम सरकार को ही बेचनी होती है। फिर भी किसान लालच में अफीम बचा लेते हैं और उसे चोरी छिपे बेच कर धनी बनने का प्रयत्न करते हैं। अफीम उत्पादक क्षेत्रों मे किसान तो नहीं पर उन से चोरी छिपे अफीम खरीद कर बाहर तस्करों को भेजने वाले बहुत शीघ्र मालामाल होते दिखाई देते हैं। लेकिन जब वे ही पुलिस द्वारा धर लिए जाते हैं तो उन का माल खिसकने में भी देर नहीं लगती।
खैर, शनिवार शाम को श्रीमती द्विवेदी ने "आफू की पान्सी" की सब्जी बनाई। पान्सी याने सूखे पत्तों को पानी में भिगोया गया और उस की मिट्टी निकालने के लिए आठ दस बार धोया गया। फिर उस का पानी निचोड़ कर उसे सूखा ही छोंक दिया गया और उस में भीगे हुए चने की दाल के दाने भी डाले गये। सब्जी लाजवाब बनी थी। खाने का तो आनंद आया ही नींद भी जोरों की आई। कोई चिंता भी नहीं थी दूसरे दिन रविवार था। मैं तो सुबह उठ कर अपने कामों में मशरूफ हो गया। लेकिन श्रीमती द्विवेदी को रह रह कर आलस आते रहे। यह एक सप्ताह बाऊजी जीजी की सेवा करने का या पिछले दो दिनों की यात्रा की थकान का नतीजा था या फिर "आफू की पान्सी" का असर। वैसे पौधे के जिस लेटेक्स से अफीम बनती है वह तो पौधे के अंग अंग में समाया रहता ही है। हरी पत्तियों को सुखाने पर उन में भी सूख कर कुछ अल्प मात्रा में तो रहता ही होगा।
सरजी,
जवाब देंहटाएंआफू की याद दिला दी। ये हमारी प्रिय सब्जी है। हमारे घर में अक्सर होती है। अभी अभी श्रीमती जी को बोला है कि कल कुरावर से लौटते हुए आफू की भाजी ज़रूर लानी है। साथ ही काली बटला लाने के लिए भी कहा है।
वाह, क्या सुस्वादु पोस्ट है। शुक्रिया।
अफ़ीम, हेरोइन और पोस्तादाना भाई-भाई है ये तो मालूम था, लेकिन ये आफ़ू की पांसी....वाह क्या जानकारियां मिलीं हैं... अजित जी भी इससे परिचित निकले.. :( मुझे तो आज ही पता चला ये नाम और इसका उदगम स्थल. जानकारियों से लबरेज़ पोस्ट. आभार.
जवाब देंहटाएंभई...वाह...
जवाब देंहटाएंआफू की पान्सी....
शायद हम भी खा पाएं...कभी...
बहुत सुंदर जानकारी देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंपढ़ कर ही नींद हावी होने लगी "आफू की पान्सी" का ऐसा असर !
जवाब देंहटाएं… … … अरे , रात के साढ़े एक …म्म म्म्मेरा मतलब है डेढ़ बजने को है , शायद नींद ही आ रही हो … नशा न हो ! ऽऽऽअ आ ऊ… हां , नींद ही है !
अरे हम निशाचरों को मतलब ब्लॉगरों को नींद क्या आएगी !!
वैसे द्विवेदीजी , जिस पौधे से अफीम बनती है उस पौधे में मादक द्रव्य तो होगा ही होगा। सुखाने पर पत्तियों से नशीले तत्व उड़ थोड़े ही जाते होंगे । … ख़ैर , आपने भाभीजी के हाथ से नई सब्ज़ी का मज़ा उठाया , हमने नई जानकारी का । अपने अपने नए अनुभवों के सुख को सहेजते हुए अब शुभरात्रि कहना ही उचित रहेगा ।
मेरे ब्लॉग "शस्वरं" पर इंतज़ार करूंगा आपका , लिंक है -
http://shabdswarrang.blogspot.com
- राजेन्द्र स्वर्णकार
कुछ ब्लॉग़ ऐसे हैं जिन्हें पढ़कर हर बार दाँतों तले उँगली दबा लेते हैं...अनवरत निरंतर हमें नई नई जानकारी देता रहता है. आभार
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंअनभिज्ञ हूँ, तब तक..
जब तक आफू की पान्सी, कभी खिलायेंगे नहीं आप ?
आफू की पांसी पहली बार सुनी -देखिये कब चखने को मिलती है !
जवाब देंहटाएंकहीं इसके आनन्द में खो न जाईयेगा । आगे बढ़ने में खतरा है ।
जवाब देंहटाएंनीम का भाई अफीम!
जवाब देंहटाएंनीम तो अपने गुणों की वजह से जगतप्रसिद्ध हो गया, लेकिन
अफीम गुणों के होते हुए भी बदनाम ही रहा।
आज पहली बार पता चला अफीम के गुणों के बारे मे।
अपनी गाड़ी खस खस की मसालेदार सब्जी और हलवे पर ही अटकी हुई है...यहां अफीम की खेती होती नहीं इसलिए आफू की पान्सी के स्वाद और तासीर की परख बस एक सम्भावना ही है !
जवाब देंहटाएंनाम सुन कर ही नशा हो जाए
जवाब देंहटाएंहमने तो पहली बार इसका नाम सुना ।
जवाब देंहटाएंराम राम सा
जवाब देंहटाएंआफ़ू का साग अब लाना ही पड़ेगा,
दिमाग को ठंडा रखने की शर्तिया औषधि है।
आभार
अच्छा है नहीं खाई, मुझे बताया गया था कि सब्जी में नशा तत्व नहीं होता। :)
जवाब देंहटाएं@ ज्ञान जी
जवाब देंहटाएंजब खाई नहीं तो पता कैसे चला
डाक्टर ने कोई परहेज बताया है
नाम तो कॉपी राइट करवा लीजिए ""आफू की पान्सी"
जवाब देंहटाएंअगली बॉलीवुड फिल्म धमाकेदार नाम
अफीम ? हमें तो दर लगेगा खाने में भले ही इसमें कुछ ना होता हो. बहुत सी नयी जानकारी मिली इस पोस्ट से.
जवाब देंहटाएंगाँव में हमारी गली के बाहर एक जमनाभाई नाई थे.. बाल काटने के अलावा दिन भर अफीम के डोडों के छिलकों को कूट कर उबालकर उसके पानी की (चाय के काले पानी की तरह) महफिलें सजाते थे। उनके यहाँ नशेड़ियों का जमघट लगा ही रहता था।
जवाब देंहटाएंहम जब बच्चे थे तब एकाद बार फरमाईश कर दी तो हमें डाँट कर भगा दिया।
जमनाभाई के बारे में किवंदती आज भी प्रसिद्ध है कि उन्हें दो तीन बार साँप ने काट लिया था और साँप तड़प तड़प कर मर गया था। अब इस बात में कितनी सच्चाई है भगवान जाने।
इन डोडों में से खसखस निकालकर तो बहुत खाई है लेकिन आफू की पान्सी की सब्जी याद नहीं आ रही। आज माताजी से पूछना पड़ेगा।
बहुत अच्छी पोस्ट। ऐसी ही चीजें पढ़ने के लिए अब भी ब्लॉग खोलने का मन करता है।
जवाब देंहटाएंदिनेश जीमेरे नाना इस का ठेका लेते थे, अपने सारे इलाके का, इस लिये मां ने हमे इस के बारे बहुत कुछ बताया था, डोडो मै भी नशा होता है, लोग इसे ऊबाल कर खुब पीते है, ओर नशा करते है, लेकिन अफ़िम के हर पोधे मै नशा नही होता, सिर्फ़ मादा पोधा ही नशे का समान देता है, नर पोधा सिर्फ़ दिखता मादा की तरह से है लेकिन उस मै नशा नही होता, ओर ना ही अफ़ीम ही बनती है पंजाब मै इस से नशा करने बाले बहुत है, खास कर ट्रक डराईवर
जवाब देंहटाएंजी हाँ जरुर खाई है आफु की भाजी. आखिर अफीम के देश में काफी समय रहे है (नीमच मंदसौर जिला ) पर मेरी जानकारी के अनुसार अफीम का नशा केवल डोडो के बाहरी हिस्सों में रहता है. पत्तो की भाजी खाने पर कभी नशा नहीं हुआ. और डोडो मे से दाने निकाल कर खाने में भी बड़ा मज़ा आता था. कुछ लोग कच्चे डोडे की सब्जी बनाते थे पर वो नशे के लिए ही ये खाते थे. आपके लेख ने बचपन की यादे ताज़ा कर दी.
जवाब देंहटाएंबड़ी जानकारी दी आपने.
जवाब देंहटाएंहमने तो कभी खाई नहीं यह सब्जी. देखिये, शायद कभी खाने का इन्तजाम हो. हाँ पोस्ते दाने के दूध के साथ खीर जरुर खाई है.
आभार इस पोस्ट का.
सर नोट कर लिया है बराबर , जब भी आना होगा आपके पास ये लज़ीज़ व्यंजन जरूर ही चखेंगे ।
जवाब देंहटाएंअफीम की सूखी भाजी में नशा वास्तव में उतना नहीं होता जितना कि मान लिया जाता है। इसके नशे को लेकर भौतिक/रासायनिक प्रभाव कम और मानसिक प्रभाव अधिक होते हैं। अफीम की सूखी भाजी, गर्मी के मौसम में मालवा के देहाती इलाकों में घर-घर में बनाई जाती है। चने के सूखे डण्ठल के भाते से इसमें खटाई (आलणी) का भाता लगाया जाता है।
जवाब देंहटाएंअफीम के पौधों पर रंगीन फूल की बहार का अपना जमाना था। अब वह रंगीनी समाप्त हो गई है। विज्ञान ने यह रंगीनी छीन ली। अब तो पूरा खेत सफेद फूलों से ढका रहता है।
बहरहाल, आफू की आलणी भाजी के लिए जी ललचानेवाली इस मादक पोस्ट के लिए धन्यवाद।
घूमते हुए यहां पहुंचे तो इस नायाब डिश के बारे मे पता चला । अफीम के खेतों मे सुंदर फूल मैने भी ट्रेन से देखा है । जब छुट्टियों मे सुल्तानपुर जाना होता है तो लखनऊ से पहले बाराबंकी के आस पास बहुत सारे अफीम के खेत और उनमे उगे मनमोहक फूल दिखाई देते हैं । अफीम , हेरोइन और मार्फीन का जनक ये पोश्त का पौधा है यह तो पता था मगर ये सब्जी और खीर , ये तो बिल्कुल नयी बात पता चली ।
जवाब देंहटाएंहां एक बात और अफीम की खेती से ईस्ट इंडिया कम्पनी का व्यापार और जुल्मों की भी लम्बी दास्तान भी जुड़ी है ।
@विष्णु बैरागी जी
जवाब देंहटाएंअफ़ीम के रंग बिरंगे फूलों पर कुछ और प्रकाश डालें . यह कब और कैसे हुआ , किसने रंग चुराया .