18 अप्रेल, 2010
पंखा सुधारता मिस्त्री कोटा अदालत चौराहे की दोपहर
रोज सुबह आठ बजे अदालत निकल जाना और दोपहर बाद दो बजे तक वहाँ रहना इस भीषण गर्मी में नहीं अखरता।एक तो काम में न सर्दी का अहसास होता है और न गर्मी का। दूसरे कोटा में जहाँ अदालत है वहाँ आसपास वनस्पति अधिक होने से तापमान दो-चार डिग्री कम रहता है और नमी बनी रहती है। इस कारण गर्मी बरदाश्त हो लेती है। वापस लौट कर घर पर कूलर का सहारा मिल ही जाता है। गर्मियाँ कटती रहती हैं। लेकिन कल सुबह छह बजे ट्रेन कोटा से रवाना हुई और सूरज निकलने के साथ ही गर्मी बढती रही। मथुरा पहुँचते पहुँचते जनशताब्दी का दूसरे दर्जे का डब्बा बिलकुल तंदूर बन चुका था। जैसे तैसे 12 बजे बल्लभगढ़ उतरे तो वहाँ सूरज माथे पर तप रहा था। पूर्वा के आवास पर पहुँचे तो घऱ पूरा गर्म था। कुछ देर कूलर ने साथ दिया और फिर बिजली चली गई। आधी रात तक बिजली कम से कम छह बार जा चुकी थी। बिजली 15 से 30 मिनट रहती और फिर चली जाती। वह शहर में ही ब्याही नई दुल्हन की तरह हो रही थी जो ससुराल में कम और मायके अधिक रहती है।
पंछियों के लिए परिंडा
रात हो जाने पर हिन्दी ब्लाग जगत के शीर्ष चिट्ठाकार रह चुके अरूण अरोरा (पंगेबाज) जी के घर जाना हुआ। हमारा सौभाग्य था कि वे घर ही मिल गए। उन्हों ने कुछ मेहमान आमंत्रित किए हुए थे इसलिए वे शीघ्र घर लौट आए थे। वर्ना इन दिनों उन का अक्सर ही आधी रात तक लौटना हो पाता है और सुबह जल्दी घर छोड़ देते हैं। पिछले वर्ष जब सभी उद्योग मंदी झेल रहे थे तब उन्हों ने बहुत पूंजी अपने उद्योग में लगाई थी। मैं सदैव चिंतित रहा कि इस माहौल में उन्हों ने बहुत रिस्क ली है। लेकिन यह जान कर संतोष हुआ कि पूंजी लगाने का सकारात्मक प्रतिफल मिल रहा है। हम उन के घरपहुँचे तब बिजली नहीं थी और रोशनी व पंखा इन्वर्टर पर थे। हमें बात करते हुए दस ही मिनट हुए थे कि वह भी बोल गया। घर से अंधेरा दूर रखने के लिए मोमबत्ती का सहारा लेना पड़ा। कुछ देर में उन के आमंत्रित मेहमान भी आ गए और हम ने विदा ली। रात भर बिजली आती-जाती रही।
सूर्यास्त होने ही वाला है
हमारी समस्या हल हो चुकी थी। दोपहर पौने दो बजे कोटा के लिए जनशताब्दी थी। हम उस से वापल लौट लिए। फरीदाबाद हरियाणा सरकार का कमाऊ पूत है। समूचे हरियाणा का आधे से अधिक आयकर इसी शहर से आता है। निश्चित ही राज्य सरकार को भी यहाँ से इसी अनुपात में राजस्व मिलता है। इस शहर की हालत बिजली के मामले में ऐसी है तो यह अत्यंत चिंताजनक बात है। रात को चर्चा करते हुए पंगेबाज जी ने तो कह ही दिया था -और दो काँग्रेस को वोट, अब यही होगा। मैं ने पूछा क्या हरियाणा में इतनी कम बिजली पैदा होती है। तो वे कहने लगे -बिजली तो जरूरत जितनी पैदा होती है लेकिन कांग्रेस की सरकार है तो दिल्ली को बिजली देनी होती है। हम यहाँ भुगतते हैं। अब असलियत क्या है? यह तो कोई खोजी पत्रकार आंकडे़ जुटा कर ही बता सकता है।
लो सूरज विदा हुआ
वापसी यात्रा में जनशताब्दी का डब्बा फिर से तंदूर की तरह तप रहा था। जैसे-तैसे छह घंटों का सफर तय किया और कोटा पहुँचे। मैं शोभा से कह रहा था कि इस भीषण गर्मी में घर छोड़ कर बाहर निकलना मूर्खता से कम नहीं है। वह नाराज हो गई। इस में काहे की मूर्खता है, काम पड़ेगा तो जाना ही पड़ेगा, गर्मी हो या सर्दी। यहाँ आ कर अखबार देखा तो पता लगा कि कल के दिन कोटा का अधिकतम तापमान 45.7 डिग्री सैल्शियस था।
सही कहा गर्मी हो या सर्दी जो काम करने है उस के लिये तो हर समय निकलना पढता है,पिछले साल मै इन्ही दिनो भारत मै तीन बार आया था, ओर बहुत सख्त बिमार हो गया था यहां आते ही,
जवाब देंहटाएंबहुत गजब की गर्मी पड़ रही है, सर. हम तो सुन सुन कर ही न लू खा जाये यहाँ की ठंड में भी. :)
जवाब देंहटाएंसुंदर पोस्ट ......चित्रों ने जान डाल दी
जवाब देंहटाएं46.7 ??????
जवाब देंहटाएंham to yaha 43 hone pe hi tension me aa gaye the aur aaj to 44.2 raha.......vakai is sal to bhagwan hi malik hai.....
@ संजीत त्रिपाठी,
जवाब देंहटाएं17 अप्रेल का तापमान 45.7 डिग्री सैल्शियस ही था। गलती से 46.7 टाइप हो गया था। ठीक कर दिया है।
45.7? पुणे में हम ऐंवे ही परेशान है फिर तो :)
जवाब देंहटाएंमौसम-दर-मौसम
जवाब देंहटाएंबदलते रहते हैं...
मगर
नहीं बदलता
काम में
जुटे रहने का सिलसिला
रोज़ी-रोटी के लिए...
-फ़िरदौस ख़ान
सेहत का ध्यान रखें -काम काम काम -स्वास्थय से समझौता करके ?
जवाब देंहटाएंसही कहा मौसम कैसा भी हो काम तो करने जाना ही पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंवैसे भी इस बार गर्मी कुछ ज्यादा ही होने वाली है, सभी को सुझाव है कि ध्यान रखें।
पानी, पुदीना इत्यादि पिये रहें ।
जवाब देंहटाएंसही है,लेकिन जरा मौसम को देखते हुए सावधानी से..
जवाब देंहटाएंसर्दी हो या गर्मी, काम तो करना ही पडेगा। बिलकुल सच है।
जवाब देंहटाएंजब तक जीवणा, तब तक सीवणा।
उम्मीद है, आप और शोभाजी पूर्ण स्वस्थ होंगे।
ऐसी भयंकर गर्मी में जब मजदूरो को काम करते देखते है तो लगता है सूर्य की आग से पेट की आग ज्यादा तेज है.
जवाब देंहटाएंजन शताब्दी तो एसी है जी, फिर काहे को कष्ट उठाया? वैसे भाभीजी सही कहती हैं कि काम पड़ेगा तो जाना ही पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंबात तो आपकी भी सही है कि काम पड़ेगा तो जाना तो पड़ेगा ही ये बात अलग है कि ग्लोबल वार्मिंग की धमकी देने वालों की आजकल चांदी कट रही है - "देखा! हम ठीक कह रहे थे न !"
जवाब देंहटाएंसही है।
जवाब देंहटाएंकाम है तो जाना ही पड़ेगा
सही कहा काम तो करना ही पड़ेगा. मैं तो सोच रही हूँ जून में क्या होगा मेरी suncity (jodhpur) का?
जवाब देंहटाएंइतनी गर्मी में यात्रा करना जीवट का काम है। मुझे तो अपने ट्रेन रनिंग स्टाफ की मुश्किलों की याद आती है। ऐसे में उपकरण भी बहुत फेल होते हैं और ट्रेने लेट होने लगती हैं।
जवाब देंहटाएं