आज डॉ. सैम्युअल हैनिमेन का जन्म दिवस था जिसे दुनिया होमियोपैथी दिवस के रूप में मनाती है। निश्चित रूप से डॉ. हैनिमेन एक विलक्षण व्यक्तित्व थे जिन्हों ने एक नई चिकित्सा पद्धति को जन्म दिया। जो मेरे विचार में सब से सस्ती चिकित्सा पद्धति है। इसी पद्धति से करोड़ों गरीब लोग चिकित्सा प्राप्त कर रहे हैं। यही नहीं करोड़पति भी जब अन्य चिकित्सा पद्धतियों से निराश हो जाते हैं तो इस पद्धति में उन्हें शरण मिलती है।
वैसे मेरे परिवार में आयुर्वेद का चलन था। दादा जी कुछ दवाइयाँ खुद बना कर रखते थे। पिताजी अध्यापक थे ,लेकिन आयुर्वेदाचार्य भी और अच्छे वैद्य भी थे। अपने पास सदैव दवाइयों का किट रखते थे और निशुल्क चिकित्सा करते थे। वैद्य मामा जी तो इलाके के सब से विद्वान वैद्य थे। उन्हों ने अपना आयुर्वेद महाविद्यालय भी चलाया। अब मामा जी खुद महाविद्यालय के प्राचार्य हों तो हमें तो उस में भर्ती होना ही था। सुविधा यह थी कि हम जीव विज्ञान में बी.एससी. करते हुए भी उस महाविद्यालय के विद्यार्थी हो सकते थे। नतीजा यह हुआ कि बी.एससी. होने के साथ ही हम वैद्य विशारद भी हो गए। मामा जी के डंडे से भय लगता था इस कारण हर रविवार उन के चिकित्सालय में अभ्यास के लिए भी जाना होता था।
बी.एससी के उपरांत हम ने वकालत की पढ़ाई की और वकालत करने अपने गृह नगर को छोड़ कर कोटा चले आए। हमने पिताजी और मामाजी के अलावा किसी चिकित्सक की दवा अब तक नहीं ली थी। वैसे भी उस उम्र में बीमारी कम ही छेड़ती थी। लेकिन पहली बेटी हुई तो उस के लिए चिकित्सक की जरूरत पड़ने लगी। मेरे एक साथी के बड़े भाई होमियोपैथ थे। मैं उन्हीं के पास बेटी को ले जाने लगा। वे साबूदाने जैसी मीठी गोलियों को अल्कोहल के घोल में बनी दवाइयों से भिगोकर देते थे। कुछ ही दिनों में देखा कि वे शक्कर की गोलियाँ अदुभुत् असर करती हैं। मैं ने उसे जानने का निश्चय कर लिया। इस तरह होमियो पैथी की पहली किताब घर में आई।
हमने घर बदला तो डाक्टर साहब दूर पड़ गए। पडौस के एक दूसरे होमियोपैथ को दिखाने लगे। लेकिन उस की दवा अक्सर असर नहीं करती थी। तब तक मैं कुछ कुछ समझने लगा था। मुझे लगा कि डाक्टर दवा का चुनाव गलत कर रहा है। एक दिन परेशान हो कर मैं होमियो स्टोर से पच्चीस चुनिंदा दवाओं के डायल्यूशन और गोलियाँ खरीद लाया और किताब से पढ़ पढ़ कर खुद ही चिकित्सा करने लगा। अपनी चिकित्सा चलने लगी। जो भी दवा देते उस का असर होता। धीरे धीरे आत्मविश्वास बढ़ता गया और डाक्टरों से पीछा छूटा।
अब जब भी किसी नई दवा की जरूरत होती उस का डायल्यूशन घऱ में आ जाता। इस तरह घर में दो-तीन सौ तरह के डायल्यूशन इकट्ठे हो गए। मैं दिन में अदालत चला जाता। पीछे जरूरत पड़ती तो पत्नी किताब पढ़ कर दवा देती। वह एक ऐलोपैथ चिकित्सक की बेटी है। धीरे-धीरे उस ने मेरा चिकित्सा का काम संभाल लिया। अब वह तभी मुझ से राय करती है जब वह उलझन में पड़ जाती है। नतीजा यह हुआ कि बच्चे हमारी दवाओं के सहारे बड़े हो गए। अब वे बाहर रहते हैं. लेकिन उन के पास चालीस-पचास दवाइयों का एक-एक किट होता है। जब भी उन्हें जरूरत होती है वे टेलीफोन पर अपनी माँ से या मुझ से राय करते हैं और दवा लेते हैं। मेरी बेटी तो एम्स के एक ट्रेनिंग सेंटर से जुड़ी है। जहाँ चिकित्सा की सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। लेकिन जरूरत पड़ने पर हमेशा होमियोपैथी की दवा का प्रयोग करती है और वह भी अपनी माँ की राय से ही।
द्विवेदी जी, एक दुसरे ब्लौग पर आपकी टिपण्णी देखी थी, फिर यहाँ भी आ गया.
जवाब देंहटाएंइतना कुछ पढने में आया है अब तक होम्योपैथी के बारे में लेकिन दिल अभी भी इसे प्लेसबो से बेहतर नहीं मानता.
शायद होम्योपैथी जड़-संदेहियों के लिए बनी ही नहीं है.
निशांत जी, आप की शंकाओं का समाधान कर सकता था। लेकिन आज अवकाश होने पर भी दफ्तर में इतना काम रहा कि कुछ अधिक लिखने की स्थिति में नहीं था। पर चूंकि मैं ने आयुर्वेद पढ़ा है, जीव विज्ञान का स्नातक हूँ, पूर्णतः वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखता हूँ। इस लिए इतना आत्मविश्वास है कि मैं समझा सकता हूँ। यदि आप नजदीक कहीं होते तो खुद आप की किसी बीमारी को ट्रीट करके भी विश्वास दिला देता। ये ब्लाग दुनिया तो अपनी है। कुछ पोस्टें इसी विषय पर लिखूंगा तो शायद आप के संदेह दूर हो सकें।
जवाब देंहटाएंहोमियोपैथी के वैज्ञानिक आधार की ज्यादा जानकारी तो नहीं पर हाँ बहुत लोकप्रिय है ये तो देखा ही है... दवाइयां भी खूब खायी हैं.एक-दो बार तो पूरी डिबिया ही एक बार में खा गया. यह कहते हुए की इससे कुछ होना तो है नहीं :) शायद साइड इफेक्ट नहीं होते इसके.
जवाब देंहटाएंहोमियोपैथी जिंदाबाद .....
जवाब देंहटाएंसबसे ज़रूरी है आस्था....
निान्त मिश्र सही कह रहे हैं - सर्वोपरि है श्रद्धा।
जवाब देंहटाएंहीनमॉन की प्रयोग वृत्ति भाती है।
होम्योपैथी का किट तो हमारी पत्नी भी धरे रहती हैं और वक्त जरुरत पहली च्वाईस भी वही होती है ..फिर कोई और दवा!
जवाब देंहटाएंद्विवेदी जी
जवाब देंहटाएंडाक्टर नें पूछा आप डबल तकिया लगा कर सोते हैं मैं कहा हां...पढ़ता भी हूं उन्होंने कहा स्पांडेलाइट्स के चांसेस हैं...गर्दन में भयंकर दर्द ...गोलियां और पेनकिलर स्प्रे का कितना इस्तेमाल करता...इधर स्प्रे का असर ख़त्म होता उधर दर्द शुरू हो जाता...रात गुज़ारना मुहाल ...किसी मित्र नें कहा एलोपैथी से लाभ नहीं तो ज़रा होमियोपैथी भी आज़मा लीजिये...होमियोपैथ काफी यंग थे उन्होंने कहा पेन किलर चलने दीजिये और इस बीच में मुझे सात दिन का समय दीजिये ...एक एक्सरे गर्दन का...स्पांडेलाइट्स की सम्भावना के नाम पर जो निकला ही नहीं और ३-४ दिन के बाद मुझे पेनकिलर्स लेने की जरुरत ही नहीं पड़ी...बस तब से सपरिवार होमियोपैथी के मुरीद हो गये !
निशांत से सहमत
जवाब देंहटाएंआयुर्वेदिक पध्दति की तरह ही होम्योपेथी भी धैर्य की मॉंग करती है। यह एक मात्र 'पेथी' है जिसके प्रयोग पशुओं पर नहीं, मनुष्यों पर होते हैं। इन दिनों इनका सस्तापन कम हो रहा है। यह चिकित्सा पध्दति भी मँहगी होने लगी है।
जवाब देंहटाएंनिश्चित रूप से डॉ. हैनिमेन एक विलक्षण व्यक्तित्व थे जिन्हों ने एक नई चिकित्सा पद्धति को जन्म दिया। जो मेरे विचार में सब से सस्ती चिकित्सा पद्धति है। इसी पद्धति से करोड़ों गरीब लोग चिकित्सा प्राप्त कर रहे हैं। यही नहीं करोड़पति भी जब अन्य चिकित्सा पद्धतियों से निराश हो जाते हैं तो इस पद्धति में उन्हें शरण मिलती है....
जवाब देंहटाएंSAHEE KH RHE HAI.
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निशांत मिश्र - Nishant Mishra जी से सहमत,
एक cohort है placebo acceptors का, होम्योपैथी उन्हीं लोगों में काम करती है । काफी पढ़ा है इस बारे में, अधिकतर लेखकों द्वारा लिखी गई केस स्टडीज चमत्कारिक ईलाज होते दिखाती हैं परंतु उन केस स्टडीज को दोबारा से निश्चितता के साथ दोहराया नहीं जा सकता... मामला आस्था पर आकर खत्म हो जाता है... आज के दौर में Psychosomatic मरीजों, Terminally ill मरीजों, Vague ill defined symptoms वाले मरीजों, Self limiting illness के मरीजों का आसरा है यह पद्धति...
किसी भी वैज्ञानिक ट्रायल में यह पद्धति अपने आपको साबित नहीं कर पाई है।
किसी भी वैज्ञानिक ट्रायल में यह पद्धति अपने आपको साबित नहीं कर पाई है।
जवाब देंहटाएंआप के इस कथन की पुष्टि में कुछ उदाहरण दें तो मैं धन्य हो जाउंगा।
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आदरणीय द्विवेदी जी,
आभारी हूँ कि आपने पूछा इस बारे में...
यह रही ब्रिटिश संसद की विज्ञान-प्रौधोगिकी समिति की होम्योपैथीके बारे में जाँच 'Evidence Check 2: Homeopathy', HC 45, its Fourth Report of Session 2009-10, on Monday 22 February 2010. जिसके आधार पर संस्तुति दी गई है कि:-
In a report published today, the Science and Technology Committee concludes that the NHS should cease funding homeopathy. It also concludes that the Medicines and Healthcare products Regulatory Agency (MHRA) should not allow homeopathic product labels to make medical claims without evidence of efficacy. As they are not medicines, homeopathic products should no longer be licensed by the MHRA.
और पूरी रिपोर्ट:-House of Commons
Science and Technology
Committee
Evidence Check 2:
Homeopathy यहाँ क्लिक कर देखें
आभार!
http://www.parliament.uk/parliamentary_committees/science_technology/s_t_homeopathy_inquiry.cfm
http://www.publications.parliament.uk/pa/cm200910/cmselect/cmsctech/45/45.pdf
बचपन तो इन्हीं गोलियों पर गुज़रा…पर अब इन पर ज़्यादा भरोसा नहीं कर पाता
जवाब देंहटाएं@ प्रवीण शाह
जवाब देंहटाएंआप का आभार जो आपने इन रिपोर्टों तक पहुँचाया। मैं ने कुछ उन्हें देखा है पर रिपोर्टें लंबी हैं। उन्हें पढ़ना पड़ेगा। जिस तरह से होमियोपैथी के पक्ष के तर्कों को खारिज किया गया है वह ठीक नहीं है। फिर रिपोर्टों का उद्देशय होमियोपैथी की एक चिकित्सा पद्धति के रूप में जाँच करना नहीं रहा है। उसे जिन मानदंडों के आधार पर जाँचा गया है वे होमियोपैथी जैसी चिकित्सा पद्धति को जाँचने के लिए उपयुक्त नहीं लगे। मुझे नहीं लगा कि इस रिपोर्ट के आधार पर होमियोपैथी जैसी पद्धति को ठुकराया जा सकता है।
फिर भी फुरसत में इन रिपोर्टों को पढ़ूंगा।
मेरा स्वयं का पिछले तीस वर्षों का जो अनुभव रहा है उसे इन रिपोर्टों के आधार पर झुठला सकना संभव नहीं है। मैं अनवरत पर अपने अनुभवों को बताने का प्रयत्न करूंगा।
मुझे हैरानी हो रही है कि आपके घर में इतने विज्ञान पढ़े लोग होते ही भी आप होम्योपैथी में केवल विश्वास ही नहीं बल्कि प्रेक्टिस करते हैं. होम्योपैथी का कोई विज्ञानक आधार नहीं है और जितनी जल्दी लोग इस बात को समझ लें उतना ही अच्छा है. अगर इतनी सस्ती मीठी गोलियां गम्भीर रोगों का इलाज कर सकती तो एलोपेथी कभी की बंद हो जाती और बिलियन ट्रिलियन डालर इसकी रीसर्च पर जो खर्च हो रहा है, वो कब का बंद हो जाता. होम्योपैथी का पूरा आधार हास्यप्रध है.होम्योपैथी न केमिस्ट्री, न फिजिक्स और न ही बिओलोजी के किसी नियम पर खरी उतरती है और रहस्यवादी मैं नहीं हूँ. मैं अपने निजी अनुभव से भी बात कर रहा हूँ. लोग तो ओझों से भी इलाज करवा लेते हैं.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबच्चों के लिये कई बार की है होम्योपैथ । ऐलोपैथ बच्चों को हिलाकर रख देती है ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपके ब्लोग पर आकर टीप पढना पहली बार अजीब लगा. मुद्दे से हटकर टीप आये तो मन बहुत खराब हो जाता है. डा. हैनीमन ने जो किया वो चिकित्सा शास्त्र की एक युगान्तरकारी घटना थी. डा. हैनीमन कोई झोलाछप डाक्टर नही थे. नामी एलोपेथ थे और एलोपेथी इलाज की विसन्गतियो से दुखी होकर उन्होने अपने अनुभव और जानकारी से एक नयी पद्धति को जन्म दिया.
जवाब देंहटाएंजो लोग आयुर्वेद को भी परम्परागत इलाज मानते है वो भी भ्रम और नासमझी के शिकार है. आयुर्वेद पूरी तरह विग्यान ही है और दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणाली है. भारतीय आयुर्वेद और पश्चिम की एलोपेथी की दवाइयो मे बहुत फ़र्क नही है हा निदान के तरीके और मात्रा मे फ़र्क है. आयुर्वेद जहा शरीर की प्रणाली को ठीक करने पर जोर देती है वही एलोपेथी रोग के कारण पैदा हुए कष्ट के त्वरित समाधान के बारे मे ही काम करती है.
होम्योपेथी और सभी चिकित्सा प्रणालियो से हटकर रोग के कारण को जड से खतम करती है और इसका मूल वाक्य है - जहर का जहर से इलाज,
जो होम्योपेथी नही है उन सभी चिकित्सा प्रणालियो को एलोपेथी कहा गया लेकिन भारत मे एलोपेथी अन्ग्रेजी चिकित्सा प्रणाली का प्रचलित नाम हो गया.
होमियोपैथी जिन्दाबाद।
जवाब देंहटाएंजरुरत है सिर्फ आस्था और विश्वाश कि।
हम रिपोर्ट के बाद की बात जानना चाहेंगे। होमियोपैथी पर बताने का कष्ट करें कि कैसे यह सही है या असरदार है या वैज्ञानिक है?…प्रवीण जी इसके खिलाफ़ बोलते रहे हैं…मुझे उत्सुकता है…
जवाब देंहटाएंहालाँकि मस्सों को साफ खत्म होते या अन्य रोगों पर काम करते देखा है होमियोपैथी को लेकिन प्रवीण जी, निशान्त जी और अन्य की शंकाओं पर जानने की इच्छा है…
जवाब देंहटाएं