ओह ये तो शिष्ट्ता की पराकाष्ठा है सर ...जुर्माना भी जरूर ....जी ...और कृपया लगाकर ही किया जाने वाला होगा ..लगता है कृपया वाले ने पैसे एडवांस नहीं दिए होंगे तो ...पट्ठे ने कोषाधिकारी का और्डर उसी पर निपटा दिया होगा ...ये कह के एक शब्द.... कृपया ...मेरी तरफ़ से मुफ़्त है ... अजय कुमार झा
अजय जी को यह मानना भी अखर रहा है कि लिखने का आदेश देने वाला ग़लत लिख रहा है। इस अण्ड-बण्ड आदेश का एक इलाज हो सकता है आदेश के विशेषण के पूर्वार्ध को उनके पदनाम के उपसर्ग के रूप में लगा दिया जाए।
कृपया मै भी अपने घर के आगे कार या मोटर साइकिल खदी करने बालो से परेशान हू कृपया आइन्दा ऐसा ना करे नही तो मै परेशान होकर खडी गाडी की हवा कृपया निकाल दुन्गा.
हिन्दी के गलत इस्तेमाल का नतीजा हो या अन्य कारण लेकिन यह वास्तव में वर्तमान परिदृश्य को इंगित करता है। जहाँ जन-सेवक अपने आपको जनता के स्वामी मानने लगे है।
यह एक अधिकारी जिसे हिन्दी पढना और समझाना नहीं आता, का कथन है ! मगर आज अनवरत की यह पोस्ट देख मज़ा आ गया भाई जी ! लगता है आज बढ़िया मूड में हैं .... .....हा....हा......हा.........हा...........
द्विवेदी सर, अंग्रेज़ बेशक चले गए लेकिन नौकरशाहों में अफसरी का अपना कीड़ा ज़रूर छोड़ गया...इसलिए जहां तहां ये पढ़ने को मिल जाता है...आदेशानुसार या बाई द आर्डर ऑफ...जिलाधिकारी, एसएसपी, एसडीएम... एक बात और मुझे समझ नहीं आती कि ये जिलाधिकारियों को हर शहर में रहने के लिए महलों जैसे आलीशान मकान क्यों दिए जाते हैं...
पुलिस विभाग में शिष्टाचार सप्ताह चल रहा था। उस दौरान पकडे गए एक अपराधी से दरोगाजी ने कहा - 'श्रीमानृ आप अपना अपराध कबूल करेंगे या मैं आपकी माताजी से रिश्ता कायम करूँ।' कोटा के लजला कोषालय अधिकारी कार्यालय में भी ऐसा ही शिष्टाचार सप्ताह चल रहा दिखता है।
कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध? कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस? जो भी हो, जरा यहाँ टिपिया दीजिए.....
यह नोटिस पढ़ कर सच में ही यह पता नहीं चल रहा कि यह आदेश है कि निवेदन .....
जवाब देंहटाएंयह है तो एक धमकी या आदेश लेकिन मुन्ना भाई के स्टाईल मै जी, यानि गांधी गीरी, नही मानो तो दादा गीरी
जवाब देंहटाएंओह ये तो शिष्ट्ता की पराकाष्ठा है सर ...जुर्माना भी जरूर ....जी ...और कृपया लगाकर ही किया जाने वाला होगा ..लगता है कृपया वाले ने पैसे एडवांस नहीं दिए होंगे तो ...पट्ठे ने कोषाधिकारी का और्डर उसी पर निपटा दिया होगा ...ये कह के एक शब्द.... कृपया ...मेरी तरफ़ से मुफ़्त है ...
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
यह हिन्दी प्रदेशों में हिन्दी की दुर्दशा को दिखाता है और कुछ नहीं।
जवाब देंहटाएंअजय जी को यह मानना भी अखर रहा है कि लिखने का आदेश देने वाला ग़लत लिख रहा है। इस अण्ड-बण्ड आदेश का एक इलाज हो सकता है आदेश के विशेषण के पूर्वार्ध को उनके पदनाम के उपसर्ग के रूप में लगा दिया जाए।
जवाब देंहटाएंकृपया मै भी अपने घर के आगे कार या मोटर साइकिल खदी करने बालो से परेशान हू कृपया आइन्दा ऐसा ना करे नही तो मै परेशान होकर खडी गाडी की हवा कृपया निकाल दुन्गा.
जवाब देंहटाएंइस आदेश में "कृपया" शब्द एक पे एक फ़्री वाली स्कीम का है.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
हा हा हा ! हिंदी की ऐसी की तैसी कर दी ।
जवाब देंहटाएंFirm but polite
जवाब देंहटाएंक्या खूब अंदाज़ में आदेश निवेदित किया गया है...
जवाब देंहटाएंमज़ा आया...
हिन्दी के गलत इस्तेमाल का नतीजा हो या अन्य कारण लेकिन यह वास्तव में वर्तमान परिदृश्य को इंगित करता है। जहाँ जन-सेवक अपने आपको जनता के स्वामी मानने लगे है।
जवाब देंहटाएंऐसी कम तैसी.
जवाब देंहटाएंहिन्दी भाषा या भाषी - दोष किसका ?
जवाब देंहटाएंवाक्य अधूरा है वर्ना आपको जबाब ढूंढना नहीं पड़ता !
जवाब देंहटाएंद्विवेदी जी, इसी तरह कुछ बोर्ड में ऐसा लिखा रहता है:-
जवाब देंहटाएं"कृपया खुल्ले पैसे दे"
निवेदन के साथ मुफ्त में आदेश दिया गया है
जवाब देंहटाएंमतलब - एक बार कह रहे हैं माँन जाओ नहीं तो "ले डंडा दे डंडा ":)
Jab dhaak kam hone lage to aise aadeshon ka nikala swabhawik ho jaata hai..... Shayad yahi parlakshit hota hai noticenum aadesh se...
जवाब देंहटाएंकोई इसे आराम से मान ले तो उसके लिए निवेदन और जो ना माने उसके लिए सख्त आदेश , साथ में चेतावनी भी |
जवाब देंहटाएंयह एक अधिकारी जिसे हिन्दी पढना और समझाना नहीं आता, का कथन है ! मगर आज अनवरत की यह पोस्ट देख मज़ा आ गया भाई जी ! लगता है आज बढ़िया मूड में हैं ....
जवाब देंहटाएं.....हा....हा......हा.........हा...........
ये सरकारी हिन्दी है जिसे समझना बहुत मुश्किल है।
जवाब देंहटाएंद्विवेदी सर,
जवाब देंहटाएंअंग्रेज़ बेशक चले गए लेकिन नौकरशाहों में अफसरी का अपना कीड़ा ज़रूर छोड़ गया...इसलिए जहां तहां ये पढ़ने को मिल जाता है...आदेशानुसार या बाई द आर्डर ऑफ...जिलाधिकारी, एसएसपी, एसडीएम...
एक बात और मुझे समझ नहीं आती कि ये जिलाधिकारियों को हर शहर में रहने के लिए महलों जैसे आलीशान मकान क्यों दिए जाते हैं...
जय हिंद...
पुलिस विभाग में शिष्टाचार सप्ताह चल रहा था। उस दौरान पकडे गए एक अपराधी से दरोगाजी ने कहा - 'श्रीमानृ आप अपना अपराध कबूल करेंगे या मैं आपकी माताजी से रिश्ता कायम करूँ।'
जवाब देंहटाएंकोटा के लजला कोषालय अधिकारी कार्यालय में भी ऐसा ही शिष्टाचार सप्ताह चल रहा दिखता है।