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रविवार, 28 मार्च 2010

दुष्यंत और शंकुन्तला के बीच कौन सा संबंध था?

हाभारत संस्कृत भाषा का महत्वपूर्ण महाकाव्य (धर्मग्रंथ नहीं)। हालांकि महत्वपूर्ण धर्म ग्रंथ का स्थान ग्रहण कर चुकी श्रीमद्भगवद्गीता इसी महाकाव्य का एक भाग है। महाभारत बहुत सी कथाओं से भरा पड़ा है। इन्हीं में एक कथा आप सभी को अवश्य स्मरण होगी। यदि नहीं तो आप यहाँ इसे पढ़ कर अपनी स्मृति को ताजा कर कर लें .....
"हस्तिनापुर नरेश दुष्यंत आखेट के लिए वन में गये। उसी वन में कण्व ऋषि का आश्रम था। ऋषि के दर्शन के लिये महाराज दुष्यंत उनके आश्रम पहुँचे। पुकार लगाने पर एक अति लावण्यमयी कन्या ने आश्रम से निकल कर कहा, “हे राजन्! महर्षि तो तीर्थ यात्रा पर गये हैं, किन्तु आपका इस आश्रम में स्वागत है।” उस कन्या को देख कर महाराज दुष्यंत ने पूछा, “बालिके! आप कौन हैं?” बालिका ने कहा, “मेरा नाम शकुन्तला है और मैं कण्व ऋषि की पुत्री हूँ।” उस कन्या की बात सुन कर महाराज दुष्यंत आश्चर्यचकित होकर बोले, “महर्षि तो आजन्म ब्रह्मचारी हैं फिर आप उनकी पुत्री कैसे हईं?” उनके इस प्रश्न के उत्तर में शकुन्तला ने कहा, “वास्तव में मैं मेनका और विश्वामित्र क पुत्री हूँ। मेरी माता ने मुझे जन्मते ही वन में छोड़ दिया था जहाँ शकुन्त  पक्षी ने मेरी रक्षा की। बाद में ऋषि की दृष्टि मुझ पर पड़ी तो वे मुझे अपने आश्रम में ले आये। उन्होंने ही मेरा भरण-पोषण किया। जन्म देने वाला, पोषण करने वाला तथा अन्न देने वाला – ये तीनों ही पिता कहे जाते हैं। इस प्रकार कण्व ऋषि मेरे पिता हुये।”
कुन्तला के वचनों को सुनकर महाराज दुष्यंत ने कहा, “शकुन्तले! तुम क्षत्रिय कन्या हो। तुम्हारे सौन्दर्य को देख कर मैं अपना हृदय तुम्हें अर्पित कर चुका हूँ। यदि तुम्हें किसी प्रकार की आपत्ति न हो तो मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूँ।” शकुन्तला भी महाराज दुष्यंत पर मोहित हो चुकी थी, अतः उसने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। दोनों नें गन्धर्व विवाह कर लिया। कुछ काल महाराज दुष्यंत ने शकुन्तला के साथ विहार करते हुये वन में ही व्यतीत किया। फिर एक दिन वे शकुन्तला से बोले, “प्रियतमे! मुझे अब अपना राजकार्य देखने के लिये हस्तिनापुर प्रस्थान करना होगा। महर्षि कण्व के तीर्थ यात्रा से लौट आने पर मैं तुम्हें यहाँ से विदा करा कर अपने राजभवन में ले जाउँगा।” इतना कहकर महाराज ने शकुन्तला को अपने प्रेम के प्रतीक के रूप में अपनी स्वर्ण मुद्रिका दी और हस्तिनापुर चले गये। 
क दिन उसके आश्रम में दुर्वासा ऋषि पधारे। महाराज दुष्यंत के विरह में लीन होने के कारण शकुन्तला को उनके आगमन का ज्ञान भी नहीं हुआ और उसने दुर्वासा ऋषि का यथोचित स्वागत सत्कार नहीं किया। दुर्वासा ऋषि ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोधित हो कर बोले, “बालिके! मैं तुझे शाप देता हूँ कि जिस किसी के ध्यान में लीन होकर तूने मेरा निरादर किया है, वह तुझे भूल जायेगा।” दुर्वासा ऋषि के शाप को सुन कर शकुन्तला का ध्यान टूटा और वह उनके चरणों में गिर कर क्षमा प्रार्थना करने लगी। शकुन्तला के क्षमा प्रार्थना से द्रवित हो कर दुर्वासा ऋषि ने कहा, “अच्छा यदि तेरे पास उसका कोई प्रेम चिन्ह होगा तो उस चिन्ह को देख उसे तेरी स्मृति हो आयेगी।”
दुष्यंत के सहवास से शकुन्तला गर्भवती हो गई थी। कुछ काल पश्चात् कण्व ऋषि तीर्थ यात्रा से लौटे तब शकुन्तला ने उन्हें महाराज दुष्यंत के साथ अपने गन्धर्व विवाह के विषय में बताया। इस पर महर्षि कण्व ने कहा, “पुत्री! विवाहित कन्या का पिता के घर में रहना उचित नहीं है। अब तेरे पति का घर ही तेरा घर है।” इतना कह कर महर्षि ने शकुन्तला को अपने शिष्यों के साथ हस्तिनापुर भिजवा दिया। मार्ग में एक सरोवर में आचमन करते समय महाराज दुष्यंत की दी हुई शकुन्तला की अँगूठी, जो कि प्रेम चिन्ह थी, सरोवर में ही गिर गई। उस अँगूठी को एक मछली निगल गई।
दुष्यंत के पास पहुँच कर कण्व ऋषि के शिष्यों ने शकुन्तला को उनके सामने खड़ी कर के कहा, “महाराज! शकुन्तला आपकी पत्नी है, आप इसे स्वीकार करें।” महाराज तो दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण शकुन्तला को विस्मृत कर चुके थे। अतः उन्होंने शकुन्तला को स्वीकार नहीं किया और उस पर कुलटा होने का लाँछन लगाने लगे। शकुन्तला का अपमान होते ही आकाश में जोरों की बिजली कड़क उठी और सब के सामने उसकी माता मेनका उसे उठा ले गई।
जिस मछली ने शकुन्तला की अँगूठी को निगल लिया था, एक दिन वह एक मछुआरे के जाल में आ फँसी। जब मछुआरे ने उसे काटा तो उसके पेट अँगूठी निकली। मछुआरे ने उस अँगूठी को महाराज दुष्यंत के पास भेंट के रूप में भेज दिया। अँगूठी को देखते ही महाराज को शकुन्तला का स्मरण हो आया और वे अपने कृत्य पर पश्चाताप करने लगे। महाराज ने शकुन्तला को बहुत ढुँढवाया किन्तु उसका पता नहीं चला।
कुछ दिनों के बाद देवराज इन्द्र के निमन्त्रण पाकर देवासुर संग्राम में उनकी सहायता करने के लिये महाराज दुष्यंत इन्द्र की नगरी अमरावती गये। संग्राम में विजय प्राप्त करने के पश्चात् जब वे आकाश मार्ग से हस्तिनापुर लौट रहे थे तो मार्ग में उन्हें कश्यप ऋषि का आश्रम दृष्टिगत हुआ। उनके दर्शनों के लिये वे वहाँ रुक गये। आश्रम में एक सुन्दर बालक एक भयंकर सिंह के साथ खेल रहा था। मेनका ने शकुन्तला को कश्यप ऋषि के पास लाकर छोड़ा था तथा वह बालक शकुन्तला का ही पुत्र था। उस बालक को देख कर महाराज के हृदय में प्रेम की भावना उमड़ पड़ी। वे उसे गोद में उठाने के लिये आगे बढ़े तो शकुन्तला की सखी चिल्ला उठी, “हे भद्र पुरुष! आप इस बालक को न छुयें अन्यथा उसकी भुजा में बँधा काला डोरा साँप बन कर आपको डस लेगा।” यह सुन कर भी दुष्यंत स्वयं को न रोक सके और बालक को अपने गोद में उठा लिया। अब सखी ने आश्चर्य से देखा कि बालक के भुजा में बँधा काला गंडा पृथ्वी पर गिर गया है। सखी को ज्ञात था कि बालक को जब कभी भी उसका पिता अपने गोद में लेगा वह काला डोरा पृथ्वी पर गिर जायेगा। सखी ने प्रसन्न हो कर समस्त वृतान्त शकुन्तला को सुनाया। शकुन्तला महाराज दुष्यंत के पास आई। महाराज ने शकुन्तला को पहचान लिया। उन्होंने अपने कृत्य के लिये शकुन्तला से क्षमा प्रार्थना की और कश्यप ऋषि की आज्ञा लेकर उसे अपने पुत्र सहित अपने साथ हस्तिनापुर ले आये।
हाराज दुष्यंत और शकुन्तला के इस पुत्र का नाम भरत था। बाद में वे भरत महान प्रतापी सम्राट बने और उन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम भारतवर्ष हुआ।
ति कथाः।  क्या यह गंधर्व विवाह "लिव-इन-रिलेशनशिप" नहीं है? यदि है, तो उसे कोसा क्यों जा रहा है? आखिर हमारे देश का नाम उसी संबंध से उत्पन्न व्यक्ति के नाम पर पड़ा है। कैसे कहा जा सकता है कि भारतीय संस्कृति को 'लिव-इन-रिलेशनशिप' से खतरा है?

20 टिप्‍पणियां:

  1. प्राचीन भारतीय स्मृतिकारों ने विवाह के जो आठ प्रकार मान्य किए थे, गंधर्व विवाह उनमें से एक रूप है। इस विवाह में अभिभावकों की अनुमति की आवश्यकता न थी। युवक युवती के परस्पर राजी होने पर किसी श्रोत्रिय के घर से लाई अग्नि में हवन कर तीन फेरे कर लेने मात्र से इस प्रकार का विवाह संपन्न हो जाता था। इसे आधुनिक प्रेम विवाह का प्राचीन रूप कह सकते हैं। इस प्रकार का विवाह करने के पश्चात् वर-वधु दोनों अपने अभिभावकों को अपने विवाह की रिस्संकोच सूचना दे सकते थे क्योंकि अग्नि को साक्षी देकर किया गया विवाह भंग नहीं किया जा सकता था। अभिभावक भी इस विवाह को स्वीकार कर लेते थे। किंतु इस प्रकार का विवाह लोकभावना के विरुद्ध समझा जाता था, लोग इस प्रकार किए गए विवाह को उतावली में किया गया विवाह मानते थे। लोगों की धारणा थी कि इस प्रकार के विवाह का परिणाम अच्छा नहीं होता। शकुंतला-दुश्यंत, पुरुरवा-उर्वशी, वासवदत्ता-उदयन के विवाह गंधर्व-विवाह के प्रख्यात उदाहरण हैं।


    सर विकिपीडिया ने उपरोक्त अर्थ बताया मुझे गंधर्व विवाह का , अब सवाल ये है कि कुछ तो रीति रिवाज इसमें भी माने ही गए ..दूसरा ये कि तब भी इसे समाज में एक सार्वभौमिक मान्यता तो नहीं ही मिली थी । शायद यही कारण रहा कि शंकुतला को खूब कोसा गया ....और एक बात और ये कि इस लिहाज़ से तो यदि उन दोनों का गंधर्व विवाह न होकर एक आम हिंदू विवाह होता तो ये समस्या ही न आती तब तो । यानि कुल मिलाकर ये मैं तो ये समझा कि यदि बेशक ये गैरकानूनी न हो .....मगर विवाह का विकल्प तो कतई न बन सके शायद ..आज मुझे भी लगता है इस विषय पर कुछ लिखना ही पडेगा
    अजय कुमार झा

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  2. @ अजय कुमार झा
    विकिपीडिया यह भी कहता है .....

    5. गंधर्व विवाह
    परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना 'गंधर्व विवाह' कहलाता है। दुष्यंत ने शकुन्तला से 'गंधर्व विवाह' किया था. उनके पुत्र भरत के नाम से ही हमारे देश का नाम "भारतवर्ष" बना।

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  3. जैसाकि श्री झा ने कहा गन्धर्व विवाह आधुनिक प्रेम विवाह का प्राचीन संस्करण कहा जा सकता है, लिव इन रिलेशनशिप नहीं.

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  4. "लिव-इन-रिलेशनशिप" हमें एक अस्थाई सम्बन्ध सा प्रतीत होता है.

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  5. क्या यह विषय का इसका कोई पक्ष न्यायालय में विचाराधीन है ? यदि हाँ तो बच गये टिप्पणी देने से । नहीं तो महाभारत तय था घर में ।

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  6. वृहत्तर समाज इसे नही स्वीकार करेगा द्विवेदी जी ,कितना ही ......जोर लगा के हैसा !
    और आप कब से अपीज्मेंट पर उतर आये ! कुछ लोगों को खुद अपना औचित्य सिद्ध करने दीजिये
    ha ha

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  7. ऐसे विवाह आज अधिक प्रासंगिक हो सकते हैं ...

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  8. Bade bhai, kya kah rahe hain aap. Prem Vivah. Liv in Relationship kaise ho sakta hai. Liv in Relation ship to use kahenge. jaise ki......


    Vivah ek jimedari hoti hai. aur Liv in Relationship aaj ki jarurat

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  9. "लिव-इन-रिलेशनशिप" का लाभ क्या है, इस से कितने लाभ होंगे ओर किसे होंगे???

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  10. लिव इन रिलेशनशिप का औचित्य समझ से परे है। अलबत्ता यहां सहमत हूं कि इसका किसी संस्कृति विशेष से नहीं बल्कि दुनियाभर के समाजों में कम-ज्यादा लिव इन रिलेशनशिप रही है। तथाकथित खुले समाजों में भी इसके आलोचक रहे हैं।
    यह शुरू से ही हाहाकारी विचार रहा है, समाज के लिए। सो बवाल तो मचेगा ही। अलबत्ता नैतिकता कायम रहे और स्त्री के साथ धोखा न हो तो इसमें कोई बुराई नहीं है। हां, सात फेरे लेने में जिसे शर्म आती हो, उसे विवाह बंधन में बंधने के लिए और भी विकल्प हैं।
    लिव इन रिलेशनशिप में यह अलिखित सी बात है कि दोनो पक्ष आपसी सहमति से अलग हो सकते हैं। फिर ऐसा क्यों होता है कि ऐसे संबंधों से अक्सर पुरुष जल्दी उकताता है और स्त्री हायतौबा मचाती है? नारीवादियों को मुद्दा मिलता है। बाद में इस लिव इन रिलेशनशिप को धोखा करार दिया जाता है। तो क्या इस संबंध की भी कानूनी अहमियत और नैतिकताएं हैं?
    कुछ अजीब लगता है ये सब।
    धोखेबाज कहलाने से तो तलाकशुदा कहलाना ज्यादा बेहतर। दोनों पक्षों के लिए। लिव इन रिलेशनशिप में परस्पर सहमति से अलहदगी के मामले दस फीसदी से भी कम होंगे। अधिकांश तो एकतरफा ही होंगे। ऐसा मैं सोचता हूं, ज्यादा वकील साब बता पाएंगे।
    हां, कोर्ट वाले मामले में मैं आपके साथ हूं। अदालत ने कुछ गलत नहीं कहा था। फिल्मी तारिका ने भी नहीं।

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  11. गन्धर्व विवाह में एक 'ceremony ' तो किया ही जाता है बेशक उसके कोई गवाह हों कि नहीं...फिर चाहे वो मंदिर में माला की अदली बदली हो या फिर अग्नि के चारों तरफ ३ फेरे...लेकिन लिव इन रिलेशन में ऐसा कुछ नहीं होता, बस युगल एक दिन फैसला कर लेते हैं कि हम साथ में रहेंगे और रहने लगते हैं....कनाडा में लिव इन रिलेशन में भी ३ साल से पहले किसी तरह का बंधन नहीं होता जब तक की ३ साल एक साथ नहीं बिता लेते हैं...उसके पहले जोड़े अलग हो सकते हैं और एक दूसरे की संपत्ति में एक दूसरे का कोई हक नहीं होता...लेकिन ३ साल के बाद परिस्थिति बदल जाती है...एक दूसरे की संपत्ति में अधिकार जताया जा सकता है.... ऐसे रिश्तों से बच्चे होते हैं तो उनकी जिम्मेदारी में भी माता-पिता दोनों को हाथ देना पड़ता है...अगर संतान हो गयी और फिर वो अलग हो गए तब भी संतान के प्रति अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकते...
    कहने का अर्थ ये है की लिव इन रिलेशन में शादी शुदा ज़िन्दगी की सारी की सारी समस्याएं तो हैं लेकिन फायदा कुछ नहीं है....इस लिए सोच समझ कर इस तरह के फैसले लेने चाहिए...
    इस तरह के रिश्ते में 'गैर जिम्मेदारी वाला माईंड सेट' होता है ..सिरिअसली जोड़े नहीं सोचते हैं...और समय बर्बाद होता है....जब तक होश में आते हैं...पता चलता है कोई दूसरा विकल्प रहा ही नहीं...और अब इसी के साथ रहना है जिसके साथ रह रहे थे...मुंह का स्वाद कड़वा होही जाएगा फिर....और फिर वही शादी शुदा वाली चिल्ल-पों ...

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  12. Sir isme vivah shabd juda hi hua hai to live-in-relation kaise ho gaya aur jabki ye pahle hee sahmati thi ki rishi ke aane par Shakuntala ko mahal me le jaya jayega. live-in-relationship me to aisa kuchh nahin hota.. jab tak marjee ho sath rahen jab chahe chhod den. dono me kafi fark hai.

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  13. शकुंतला तुम कोसी जाओगी
    क्योकि तुम नारी थी

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  14. वाह, लिव-इन की बहस पढ़ते वक्त सोच ही रहा था कि अब तक धार्मिक और पौराणिक आख्यान और उदाहरण कैसे नहीं आये। अब आ गये…
    नासमझ हूं ना, इसलिये फ़िर भी समझ नहीं पा रहा कि दुष्यन्त-शकुन्तला के किस्से से "लिव-इन" का सम्बन्ध कैसे साबित हो गया? क्या दोनों लम्बे समय साथ-साथ रहे थे? या दुष्यन्त जानबूझकर शकुन्तला को भूल गये थे?
    सुप्रीम कोर्ट ने राधा-कृष्ण का उदाहरण दे दिया और आपने दुष्यन्त शकुन्तला का… बढ़िया है…

    धीरे-धीरे सभी पौराणिक पात्रों की उस काल की मान्यताओं-परम्पराओं को आज के सन्दर्भ और समाज से जोड़कर प्रकारान्तर से दुष्यन्त, कृष्ण आदि को "छिछोरा" "रंगीला" साबित करें। फ़िर हिन्दुओं में बहु-विवाह को भी कानूनी मान्यता प्रदान की जाये (क्योंकि दशरथ ने 4 शादियां की), फ़िर सौ बच्चों को भी मान्य किया जाये (क्योंकि धृतराष्ट्र ने भी 100 पैदा किये थे), ऐसे ही उदाहरण दे-देकर हम आगे बढ़ते रहें… कभी न कभी तो महाशक्ति बन ही जायेंगे… :) :)

    (नोट - इस टिप्पणी से किसी कानूनी प्रक्रिया की अवमानना होती हो तो अग्रिम क्षमायाचना। क्योंकि आजकल "अवमानना", कुंआरी लड़की के शील से भी ज्यादा नाजुक हो चली है)

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  15. "लिव-इन-रिलेशनशिप" हमें एक अस्थाई सम्बन्ध सा प्रतीत होता है.

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  16. लिव-इन-रिलेशनशिप को गान्धर्व विवाह कहना उचित नहीं.
    ऐसे रिश्ते बगैर नाम दिए भी चल रहे हैं. लेकिन विवाह तो परिवार(घर-निर्माण) का प्रवेश द्वार है. बाद में कानून के तहत सम्बन्ध विच्छेद हो ही सकता है.

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  17. हमारा प्राचीन संस्कृत साहित्य संबंधों के वैविध्य का खजाना है। ऐसा वैविध्य अन्यत्र नहीं मिलता। यहां रिश्ता नहीं भाव पर जोर है। इसे किसी भी आधुनिक अवधारणा में रुपान्तरित करना ज्यादती है।

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  18. मुझे लगता है कि दो अलग-अलग बातों का घालमेल किया जा रहा है।
    न्‍यायालय ने, दो वयस्‍कों को, परस्‍पर सहमति से सा‍थ रहने को अपराध नहीं माना है। न्‍यायालय ने यह आग्रह भी नहीं किया है कि समाज ऐसे 'सहआवास' को मान्‍यता और स्‍वीक़ती दे। जहॉं तक मैं समझ पा रहा हूँ, न्‍यायालय ने इस स्थिति का विवेचन केवल 'आपराधिक दण्‍ड संहिता' के सन्‍दर्भ में किया है।
    जहॉं तक समाज का सम्‍बन्‍ध है, समाज ऐसे सहआवास को कभी भी मान्‍यता और स्‍वीकारोक्ति नहीं देगा।
    लगता है, हम लोग चिन्‍दी को थान बना रहे हैं।

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  19. बैरागी जी,
    नमस्कार!
    ऐसा नहीं है कि चिन्दी को थान बनाया जा रहा हो। निश्चित ही समाज ऐसे संबंध को मान्यता नहीं देगा। यह एक अराजकता है। लेकिन यह समय का यथार्थ भी है कि ऐसे संबंधों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। ऐसे संबंध बच्चों को भी जन्म देते हैं। निश्चित ही उन बच्चों के अधिकारों और उन के प्रति दायित्वों का निर्धारण होना चाहिए। यह तभी हो सकता है कि हम इस तरह के संबंधों को कहीं न कहीँ कानून के दायरे में लाएँ और ऐसे संबंधों में रहने वाले लोगों के दायित्व निर्धारित करें। आँख मूंद कर या आलोचना करने से तो काम नहीं चलेगा। हमें इस पर बहस चलानी होगी कि इस तरह के संबंधों में रहने वालों के दायित्व क्या हों और उन के लिए समुचित कानून बनाया जाए।

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  20. इस चर्चा मे बहुत देरी से आया हू लेकिन कुछ बातो पर अपन मत रखना जरूरी समझता हू.

    १. निश्चित रूप से शकुन्तला दुष्यन्त के बीच जो कुछ हुआ वो गंधर्व विवाह का अनुपम उदाहरण है - अभिभावक की अनुमति नही ली गयी थी और आकर्षण जनित प्रेम सहवास तक गया.

    २. समाज शास्त्रियो ने गंधर्व विवाह का नामकरण उपहास स्वरूप गंधर्व से जोडकर किया लेकिन पहले प्रेम और फिर विवाह की सोच मे कुछ भी गलत नही है.

    ३. उपरोक्त उदाहरण लिव इन से बिल्कुल उल्टा लगता है. दुष्यन्त ने प्रेम किया और साथ नही रहे जबकि लिव इन मे साथ रहते है और प्रेम की तलाश करते है. लिव इन मे रहने वालो के लिये कोई जरूरी नही है कि वो सहवास करे ही. मोरारजी भाई ने ३० साल की उमर के बाद सहवास बन्द कर दिया और महत्मा गान्धी ने ४० की उमर के बाद. लेकिन वो अपनी पत्नि के साथ रहते रहे.

    ४. लिव इन की आलोचना का कारण सिर्फ़ एक वजह बनती है कि ये आम प्रचलन मै नही है और लिव इन को अपनाने वाले अपने सम्बन्ध के प्रति कम गम्भीर नज़र आते है.

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कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस?
जो भी हो, जरा यहाँ टिपिया दीजिए.....