पेज

सोमवार, 11 जनवरी 2010

कौन बनाए खाना ?

शिवराम की यह कविता आज की समाज व्यवस्था से पैदा हुई एक अनिवार्य स्थिति को प्रदर्शित करती है, पढ़िए और राय दीजिए ......

कौन बनाए खाना ?

  • शिवराम
कौन बनाए खाना भइया

कौन बनाए खाना


जो समधी ने भेजे लड्डू 
उन से काम चलाओ
चाय की पत्ती चीनी खोजो 
चूल्हे चाय चढ़ाओ
ले डकार इतराओ गाओ कोई मीठा गाना
कौन बनाए खाना भइया.....


बेटे गए परदेस 
बहुएँ साथ गईं उन के
हाथ झटक कर के
अपने ही हिस्से में आया घऱ का ताना-बाना
कौन बनाए खाना भइया .....

बेटी गई ससुराल
हमारी आँखें नित फड़कें
पोते-पोती सब बाहर हैं
ऐसे में बतलाओ कैसे होवे रोज नहाना
कौन बनाए खाना भइया
कौन बनाए खाना।
***************



कैसी लगी...?

13 टिप्‍पणियां:

  1. कितने ही दरवाजों का सच उकेर दिया है इस रचना में..

    जवाब देंहटाएं
  2. द्विवेदी सर,

    जहां तक मेरी जानकारी है आप चाय को हाथ भी नहीं लगाते...फिर चाय किसके लिए बनती है...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  3. शिवरामजी को मेरे तरफ से धन्यवाद कहिये ,बहुत लाजवाब रचना ,जो की अभी भी कहीं-न-कहीं हमारे समाज की तस्वीर ko प्रस्तुत कर रही है.

    मज़ा आ गया, भई वाह.

    जवाब देंहटाएं
  4. सर यहां जैसी पड रही है ठंड ,
    उसमें हम भी गा रहे यही गाना,
    भईया कौन बनाए खाना

    अजय कुमार झा

    जवाब देंहटाएं
  5. रोज नहाना, बाप रे बाप बड़ा मुश्किल है । अच्छी रचना के बधाई स्वीकार करें....

    जवाब देंहटाएं
  6. सरल, मधुर कविता है।

    जिसको भी भूख लगेगी
    वही बनाएगा खाना
    जिसको लगेगी गन्दगी दुश्मन
    वही चाहेगा नहाना!
    घुघूती बासूती

    जवाब देंहटाएं
  7. हंसी खेल में आपने आधुनिक समाज के अपरिहार्य हो चुके दर्द को गहराई से कुरेदा है.

    जवाब देंहटाएं
  8. कविता मै बुजुर्गो का दर्द झलकता है,बहुत सुंदर
    शिवराम जी ओर आप का धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  9. यह तो आज के प्रत्‍येक मध्‍यमवर्गीय परिवार का कडवा और पीडादायी सच उजागर किया शिवरामजी ने।

    जवाब देंहटाएं

कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस?
जो भी हो, जरा यहाँ टिपिया दीजिए.....