आखिर 130 दिन की हड़ताल पर विराम लगा। आज हुई अभिभाषक परिषद की आमसभा में प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित हुआ कि वर्तमान परिस्थितियों में संघर्ष को विराम दिया जाए। इस समय लगभग सभी राज्यों में हाईकोर्टों की बैंचें स्थापित किए जाने के लिए संघर्ष जारी है। अनेक राज्यों के अनेक संभागों के वकील अदालतों का बहिष्कार कर चुके हैं। कोटा के वकील भी पिछली 29 सितंबर से हड़ताल पर थे। इस बीच वकीलों ने अदालत में जा कर काम नहीं किया, जिस का नतीजा यह रहा कि अत्यंत आवश्यक आदेशों के अतिरिक्त कोई आदेश पारित नहीं किया जा सका। इन 130 दिनों में किसी मामले में कोई साक्ष्य रिकॉर्ड नहीं की गई। अदालतों का काम लगभग शतप्रतिशत बंद रहा।
इस पूरे दौर में ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैं कोटा मे रहा होऊँ और अदालत नहीं गया होऊँ। हाँ यह अवश्य रहा कि आम दिनों में जैसे सुबह साढ़े दस-ग्यारह बजे अदालत पहुँचने की आदत थी वह खराब हो गई। दो माह तक तो स्थिति यह थी कि अदालत परिसर के द्वार साढ़े दस बजे वकील बंद कर उस पर ताला डाल देते थे। दो बजे तक कोई भी अदालत परिसर के भीतर प्रवेश नहीं कर पाता था। वकील जो पहुँच जाते थे वे भी परिसर में प्रवेश नहीं कर पाते थे। उन्हें सड़क पर या आस पास के परिसरों में बैठ कर इंतजार करना पड़ता था। अधिकांश वकील मुंशी आदि एक बजे के पहले अदालत जाने से कतराने लगे थे। मुझे खुद अदालत जाने की को कोई जल्दी नहीं रहती थी। आज भी मैं एक बजे अदालत पहुँच पाया था जब परिषद की आमसभा आरंभ होने वाली थी। इन दिनों अदालत से घर लौटने की जल्दी भी नहीं रहती थी। शाम को अपने कार्यालय में कोई काम नहीं होता था। अक्सर पाँच बजे तक हम अदालत में ही जमे रहते थे।
आज जब परिषद ने हड़ताल स्थगित करने का निर्णय लिया तो तुरंत ही वकीलों को कल से काम पर नियमित होने की चिंता सताने लगी। मैं भी साढ़े तीन बजे ही अदालत से चल दिया। चार बजे घऱ पर था। आते ही कल के मुकदमों की फाइलें संभालीं। इस सप्ताह के मुकदमों पर निगाह डाली कि किसी मुकदमे की तैयारी में अधिक समय लगना है तो उस की तैयारी अभी से आरंभ कर दी जाए। अब मैं कल से पुनः काम पर लौटने के लिए तैयार हूँ। हालाँकि जानता हूँ कि अभी काम अपनी गति पर लौटने में एक-दो सप्ताह लेगा। बहुत से लोग जिन की सुनवाई के लिए जरूरत है उन्हें सूचना होने में समय लगेगा।
अभिभाषक परिषद ने तय किया है कि जब तक कोटा में हाईकोर्ट की बैंच स्थापित नहीं हो जाती है तब तक वे सप्ताह के अंतिम दिन अर्थात शनिवार को काम नहीं करेंगे। इस तरह अब काम का सप्ताह केवल पाँच दिनों का रहेगा। पहले केवल अंतिम शनिवार को काम का बहिष्कार रहा करता था। इस हड़ताल के दौरान मिले समय में मैं ने एक काम यह किया कि तीसरा खंबा पर 'भारत का विधिक इतिहास' लिखना आरंभ किया जिस की तीस कड़ियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इस तरह एक अकादमिक काम अंतर्जाल पर लाने का प्रयास आरंभ हो सका।
अब कल से काम पर जा रहे हैं। देखता हूँ अपनी ब्लागीरी के लिए कितना समय निकाल पाता हूँ।
काम के दिन शुभ हों !
जवाब देंहटाएंचलिए शुक्र है सर , हडताल समाप्त न सही स्थगित तो हो ही गई , अब लगिए काम पर , ब्लोग्गिरी के लिए समय निकल ही आएगा , हम जबरन फ़ोनिया फ़ोनिया के निकलवा लेंगे
जवाब देंहटाएंशुभ समाचार!!
जवाब देंहटाएंशुभ समाचार
जवाब देंहटाएंआने वाले दिन मंगलमय हों, शुभकामनाएँ
बी एस पाबला
शुभ खबर. और ढेर सारी शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंहडतालों से तो सबका नुक्सान ही होता है फिर भी इस दौरान अंतर्जाल को जो आपनें 'भारत का विधिक इतिहास'दे दिया वह सामान्य दिनों में संभव कम था.
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं .
ये देश भी अजब है ! हड़ताल का जो तरीका "पहला" होना चाहिए था उसे 'बाद" में अपनाया जा रहा है ? शायद आपको बुरा लगे किन्तु ये हड़ताल टूटने जैसा है ! रही बात क्रमिक हड़ताल की ! वो तो इज्जत बचाने जैसा कदम है !
जवाब देंहटाएंकभी सोचिये की कोई संगठन अपनी शक्ति और स्ट्रेटजी को परखे बिना हड़ताल शुरू ही क्यों करे जब की उस हड़ताल से जनसाधारण का नुकसांन होना भी तय हो !
मुझे लगता है की आपकी यूनियन को आत्मालोचन की आवश्यकता है !
काम पर किधर चले? अब तो छुट्टियां होने वाली है :)
जवाब देंहटाएंकाम भी जरुरी है जी, हमारी तरफ़ से शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंचलिए अंततः एक विराम तो लगा. ख़त्म ही हो जाता तो और अच्छा होता.
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