पराठा गली में प्रवेश के पहले हम चांदनी चौक की मुख्य सड़क से गुजरे तो वह ट्रेफिक विहीन थी, और अधिकांश दुकानें बंद थीं। वह सोमवार का दिन था, दुकानें खुली हुई होनी चाहिए थीं। गौर किया तो पता लगा कि जितनी भी ज्वेलरी और सोने-चांदी के व्यवसाय से संबद्ध दुकानें थीं वे सब बंद थीं। बहुत सारे लोग सड़क पर एकत्र थे, जो दुकानदार लग रहे थे। उन में से एक के हाथ में माइक और गले में लटका हुआ पोर्टेबल लाउडस्पीकर था। वे नारे लगा रहे थे। उन के आसपास कुछ पुलिस वाले भी थे। लगता था किसी बात को ले कर दुकानदारों ने दुकानें बंद की थीं और वे इकट्ठा हो कर किसी पुलिस अधिकारी या प्रशासनिक अधिकारी से मिलने जा रहे थे। तभी भीड़ में से कुछ लोगों ने एक दुकान को बंद कराने की कोशिश में हल्ला किया तो दुकानदार ने तुरंत शटर गिरा दिया, शायद वह इस के लिए तैयार था। पुलिस वाले बीच में दखल देने के लिए दौड़े तो भीड़ में से ही कोई आगे आया और हल्ला करने वालों को चुप कराया कि वे शांति पूर्वक प्रदर्शन करें और अपनी बात अफसरों को कहने के लिए चलें। पता लगा वे किसी के हत्यारे को गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे। हत्या का शिकार जरूर कोई व्यवसायी रहा होगा।
हम पराठा गली से बाहर आए तब तक प्रदर्शन निपट चुका था। दुकानें खुलने लगी थीं, मुख्य सड़क पर ट्रेफिक चलने लगा था। चांदनी चौक की सड़क पर फिर से रेलमपेल हो चली थी। हम लाल किला दूर से देख पाए। वहीँ से अजय झा को फोन लगाया तो वे गांव से वापसी की यात्रा के लिए ट्रेन में सफर कर रहे थे। हम मेट्रो से सीधे सैंट्रल सेक्रेट्रियट पहुँचे। अब इंडिया गेट हमारा गंतव्य था । हम ने चाहा कि वहाँ से इंडिया गेट तक पहुँचने तक कोई साधन मिल जाए। लेकिन कोई रिक्षा या आटो रिक्षा दिखाई नहीं दिया, जो भी थे सब भरे हुए। पूछने पर पता लगा पैदल ही जाना होगा। हम पैदल चल दिए। कोई पचास कदम बाद हम राजपथ पर थे। एक और राष्ट्रपति भवन और दूसरी ओर इंडिया गेट दिखाई दे रहा था। हम इंडिया गेट की ओर बढ़ चले। पैदल चलते चलते थकान तो हो गई थी, पर कदम नहीं रुके। शोभा कह रही थी -हम कम से कम दो किलोमीटर तो चल ही लिए होंगे।
कदम रुके तो सीधे इंडिया गेट जा कर। हम नजदीक जाते उस से पहले ही फोटोग्राफरों ने हमें घेर लिया और चित्रों के लिए अनुरोध करने लगे। हमने उन्हें अनदेखा किया और खुद चित्र लेने लगे। इंडिया गेट को ठीक से निहार कर पीछे बनी छतरी तक गए जिस के आसपास बने पार्क में खूबसूरत फूल खिले थे। एक लड़का जो शायद माली रहा होगा। तभी छतरी पर चढ़ा और वहाँ कुछ देखने लगा। मुझे बुरा लगा कि वह वहाँ था और बीच-बीच में बीड़ी के कश ले रहा था। यूँ तो ऐसे सार्वजनिक स्थल पर धुम्रपान वर्जित ही होना चाहिए। कानून कुछ भी क्यों न कहता हो। लेकिन ऐसे राष्ट्रीय स्मारक पर उस की देखभाल के लिए ही सही चढ़े होने पर तो धुम्रपान करने जैसी यह हरकत बहुत ही नागवार लग रही थी। मुझे लगा वह पूरे देश का अपमान कर रहा था। मैं वापस पिछली ओर जहाँ ज्योति जल रही थी आ कर खड़ा हो गया। वहाँ एक अभिभावक बच्चे को समझा रहा था। ज्योति के सामने निश्चल खड़ा सैनिक कोई प्रतिमा नहीं अपितु जीता जागता जवान है। वह लगातार निश्चल खड़ा था। हम वहाँ घंटे भर रहे लेकिन इस बीच हम ने उसे हिलते हुए न देखा।
हम पैरों को आराम देने के लिए पास ही पार्क में बैठ गए, वहाँ से वातावरण को निहारते रहे। हम ने वहीँ कॉफी पी और पूर्वा व शोभा के कुछ चित्र लिए जो मोबाइल से लिए जाने के बावजूद बहुत अच्छे निकले। सूरज इंडिया गेट के पीछे डूब रहा था। हम चल दिए। एम्स जाने वाली बस के लिए पूछताछ की जो पास ही यूपीएससी स्टॉप पर मिल गई। एम्स से फरीदाबाद के लिए सीधी बस मिल गई। हम रात को नौ बजे के पहले पूर्वा के आवास पर थे।
बहुत सुन्दर चित्रमय यात्रा संस्मरण |भाभीजी को नमस्कार बिटिया को आशीर्वाद |
जवाब देंहटाएंनववर्ष कि बधाई |
बहुत सुंदर लगा आप का यह विवरण, हम भी वेसे तो पेदल बहुत कम चलते है, लेकिन जब कही घुमने जाये तो ऊत्सुकता के साथ साथ हमे लालच भी होता है कि हम कम समय मै सब देख ले, ओर इसी चक्कर मै सारे दिन मै हम १०, २० किलो मीटर घुम आते है, फ़िर घर आते ही सब से पहले आराम करते है, चित्र भी बहुत सुंदर लगे, आप दोनो को नमस्ते बिटिया को प्यार
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा घुमक्कड़ी वृत्तांत। दिल्ली तो सबके पुरखों की सरजमीं है, सो वहां कभी कभार पहुंचने पर कितना भी पैदल चलना पड़े तो उसे गवारा करना ही पड़ता है। आखिर दिल्ली जिन्होने भी फतह की, पैदल चल कर ही की। हमें भी दिल्ली में पैदल भटकियां लगाने में मजा आता है।
जवाब देंहटाएंइस संदर्भ में आज के हुक्मरानों की चर्चा छेड़ कर आपकी पोस्ट के आनंद से भरे मूड को खराब नहीं करना चाहूंगा।
वल्लभगढ़ के भी कुछ हाल हाल लिखियेगा।
रिक्षा या आटो रिक्षा
जवाब देंहटाएंरिक्शा या ऑटो रिक्शा ....
]आप तो सपरिवार इस कड़ाके की ठण्ड में खूब घूम लिए दिल्ली ,अपुन के लिए तो दिल्ली दूर है इस कड़ाके की ठंडक में ......
सरल सह्ज लेखन में रोचक संस्मरण
जवाब देंहटाएंचित्र वाकई अच्छे आए हैं
बी एस पाबला
वाह सर हम होते तो एक आध फ़ोटो में तो घुस ही आते और सबसे मिल भी लेते , खैर दिल्ली कोटा कौन दूर है । बिटिया ने एक फ़ोटो में वो जो हवा मिठाई गुलाबी वाली पकड रखी है वो जरूर आपके हिस्से की होगी । वो कब उडाई आपने ये रह गया , बाकी तो मजेदार रहा , और रोचक भी । हमेशा की तरह , हां बीडी पीने वाले का सुन कर दुख हुआ और अफ़सोस भी मगर सर यदि आप वहां कचरा फ़ेंकने वाले लोगों को देखते खा पी कर सब वहीं फ़ेंक देने वालों को तो आपको दुख नहीं होता बल्कि गुस्सा आता । अफ़सोस कि नागरिक कानून लोगों को इसके लिए बाध्य नहीं कर पाया है । मजेदार यात्रा वर्णन...
जवाब देंहटाएंदीनेश भाई जी
जवाब देंहटाएंइस से पहले की प्रविष्टी भी बढ़िया लगी थी और ये भी ...
सौ. भाभी जी को नमस्ते और चि. पूर्वा को स्नेह व प्यार
और एक बार पुन:
आपके समस्त परिवार को , नव - वर्ष की मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं भी प्रेषित कर रही हूँ
बहुत स्नेह सहीत ,
- लावण्या
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जवाब देंहटाएं.
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आदरणीय द्विवेदी जी,
अपनी इन पोस्टों के माध्यम से बड़ी रोचक 'दिल्ली की सैर' करा दी आपने।
आभार व नव वर्ष की शुभकामनायें।
आपको व आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंपिछले ३२ वर्षों में न जाने कितनी बार दिल्ली गई हूँ किन्तु चाँदनी चौक नहीं देखा। बढ़िया विवरण है।
घुघूती बासूती
बहुत सहज और रोचक यात्रा वृतांत लगा. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह जी आप तो दिल्ली दर्शन भी कर गए !
जवाब देंहटाएंसुंदर तस्वीरों के साथ दिलचस्प संस्मरण द्विवदी जी...
जवाब देंहटाएंनव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
manbhaawan chitra &aalekh
जवाब देंहटाएंनए साल में हिन्दी ब्लागिंग का परचम बुलंद हो
स्वस्थ २०१० हो
मंगलमय २०१० हो
पर मैं अपना एक एतराज दर्ज कराना चाहती हूँ
सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर के लिए जो वोटिंग हो रही है ,मैं आपसे पूछना चाहती हूँ की भारतीय लोकतंत्र की तरह ब्लाग्तंत्र की यह पहली प्रक्रिया ही इतनी भ्रष्ट क्यों है ,महिलाओं को ५०%तो छोडिये १०%भी आरक्षण नहीं
अच्छा वृत्तांत !
जवाब देंहटाएंचांदनी चौक और इंडिया गेट की सैर कराने के लिए धन्यवाद॥
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चित्रमय यात्रा संस्मरण.
जवाब देंहटाएंबढ़िया लगा आपका यात्रा वृतांत. नववर्ष की मंगलकामनायें !
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