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गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

अकाल ...... शिवराम की कविता

शिवराम जी की कुछ कविताएँ आप ने पढ़ीं। उन के काव्य संग्रह "माटी मुळकेगी एक दिन" से एक और कविता पढ़िए....

अकाल
  • शिवराम
कभी-कभी नहीं
अक्सर  ही होता है यहाँ ऐसा
कि अकाल मंडराने लगता है
बस्ती दर बस्ती
गाँव दर गाँव


रूठ जाते हैं बादल
सूख जाती हैं नदियाँ
सूख जाते हैं पोखर-तालाब
कुएँ-बावड़ी सब
सूख जाती है पृथ्वी
बहुत-बहुत भीतर तक 

सूख जाती है हवा
आँखों की नमी सूख जाती है


हरे भरे वृक्ष
हो जाते हैं ठूँठ
डालियों से
सूखे पत्तों की तरह
झरने लगते हैं परिंदे
कातर दृष्टि से देखती हैं
यहाँ-वहाँ लुढ़की
पशुओं की लाशें


उतर आते हैं गिद्ध
जाने किस-किस आसमान से
होता है महाभोज
होते हैं प्रसन्न चील कौए-श्रगाल आदि


आदमी हो जाता है
अचानक बेहद सस्ता
सस्ते मजदूर, सस्ती स्त्रियाँ
बाजार पट जाते हैं, दूर-दूर तक
मजबूर मजदूरों
और नौसिखिया वेश्याओं से


भिक्षावृत्ति के
नए-नए ढंग होते हैं ईजाद
गाँव के गाँव
हाथ फैलाए खड़े हो जाते हैं 
शहरों के सामने


रहमदिल सरकार
खोलती है राहत कार्य
होशियार और ताकतवर लोग
उठाते हैं अवसर का लाभ
भोले और कमजोर लोग
भरते हैं समय का खामियाजा


होते हैं यज्ञ और हवन
किसान, आदिवासी और गरीब लोग
बनते हैं हवि
ताकते रहते हैं आसमान
फटी फटी आँखों से


कभी-कभी ही नहीं
अक्सर ही होता है यहाँ ऐसा। 

10 टिप्‍पणियां:

  1. कभी-कभी ही नहीं
    अक्सर ही होता है यहाँ ऐसा।

    -अति मार्मिक!!

    शिवराम जी को नमन!!

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  2. नौसिखिया वेश्याओं से-अद्भुत !

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  3. जैसा समीर जी ने कहा अब तो यह प्रक्रिया निरंतर चलने लगी है की आदमी सस्ते होते जा रहे है बाकी सब कुछ महँगा ..बढ़िया रचना..रचनाकार को दिल से सलाम निकलता है..आभार दिनेश जी

    जवाब देंहटाएं
  4. आदमी हो जाता है
    अचानक बेहद सस्ता
    सस्ते मजदूर, सस्ती स्त्रियाँ
    बाजार पट जाते हैं, दूर-दूर तक
    मजबूर मजदूरों
    और नौसिखिया वेश्याओं से

    अफ़सोस यही सबसे बड़ा !

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  5. चूल्हा है ठंडा पड़ा
    मगर पेट में आग है
    गर्मागर्म रोटियां
    कितना हसीं ख्वाब है...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  6. रहमदिल सरकार
    खोलती है राहत कार्य
    होशियार और ताकतवर लोग
    उठाते हैं अवसर का लाभ
    भोले और कमजोर लोग
    भरते हैं समय का खामियाजा


    होते हैं यज्ञ और हवन
    किसान, आदिवासी और गरीब लोग
    बनते हैं हवि
    ताकते रहते हैं आसमान
    फटी फटी आँखों से


    कभी-कभी ही नहीं
    अक्सर ही होता है यहाँ ऐसा।
    किस किस पँक्ति की तारीफ करूँ। इस कविता मे आज के हालात की बहुत सटीक तस्वीर खींची है।शिव राम जी की कलम और संवेदनाउओं को सलाम धन्यवाद्

    जवाब देंहटाएं
  7. आदमी हो जाता है
    अचानक बेहद सस्ता
    सस्ते मजदूर, सस्ती स्त्रियाँ
    बाजार पट जाते हैं, दूर-दूर तक
    मजबूर मजदूरों
    और नौसिखिया वेश्याओं से
    कविता पढ कर रोंगटे खडे हो गये, काश ऎसा वक्त किसी पर ना आये,बहुत दर्दनाक...
    आप का ओर शिवराम जी का ध्न्यवाद

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  8. "कभी-कभी ही नहीं
    अक्सर ही होता है यहाँ ऐसा। "


    सटीक एवं धारदार !

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  9. पाठक को अवाक् और विह्वल कर देनी हैं शिवरामजी की कविताएं।

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