पेज

शनिवार, 19 दिसंबर 2009

अंधों का गीत ..... शिवराम


पिछली पोस्ट चार कदम सूरज की ओर
पर शिवराम जी की इसी शीर्षक की कविता पर विष्णु बैरागी जी ने टिप्पणी की थी कि इस कविता का नुक्कड़ नाटकों के रूप में उपयोग किया जा सकता है। शिवराम हिन्दी के शीर्षस्थ नुक्कड़ नाटककार हैं। 'जनता पागल हो गई है' तो उन का सार्वकालिक बहुचर्चित नाटक है। जिसे नाटक की किसी भी फॉर्म में खेला जा सकता है और खेला गया है। मुझे गर्व है कि इस नाटक की अनेक प्रस्तुतियाँ मैं ने देखी हैं और कुछ प्रस्तुतियों में मुझे अभिनय का अवसर भी प्राप्त हुआ। उन के नाटकों में लोक भाषा और मुहावरों का प्रयोग तो आम बात है, लोकरंजन के तत्व भी बहुत हैं। लेकिन वे उन में गीतों का समावेश भी खूब करते हैं और इस तरह कि वे मर्म पर जा कर चोट करते हैं। 
ऐसा ही एक गीत है "अंधों का गीत" जो सीधे जनता पर चोट करता है। आज प्रस्तुत है यही गीत आप के लिए। तो पढ़िए .......

अंधों का गीत
  • शिवराम
अंधों के इस भव्य देश में
सब का स्वागत भाई!

दिन में भी रात यहाँ पर
बात-बात में घात यहाँ पर
लूटो-मारो, छीनो-झपटो
राह न कोई राही
अंधा राजा, अंधी पिरजा
अंधी नौकरशाही।।


एक के दो कर, दो के सौ कर
या कोई भी घोटाला कर
तिकड़म, धोखा, हेराफेरी 
खुली छूट है भाई
अंध बाजार, अंध भोक्ता
अंधी पूँजीशाही।।


अंधों के इस भव्य देश में
सब का स्वागत है भाई।

14 टिप्‍पणियां:

  1. गज़ब है जी...
    यहां भी शिवराम...

    अंधों के इस भव्य देशं में
    सब का स्वागत भाई!

    जवाब देंहटाएं
  2. गजब की रचना..

    अंधों के इस भव्य देशं में
    सब का स्वागत भाई!


    विकट प्रहार है!!

    आनन्द आ जाता है शिवराम जी को पढ़कर.

    जवाब देंहटाएं
  3. सही कहा कविवर ने ..
    यह अँधेरा अब गहराता ही जा रहा है ..
    भारतेंदु जी के प्रहसन '' अंधेर नगरी चौपट राजा ''
    की याद आ गयी ..
    ................. आभार ,,,

    जवाब देंहटाएं
  4. तिकड़म, धोखा, हेराफेरी
    खुली छूट है भाई
    कह गयीं सारी बतियाँ

    जवाब देंहटाएं
  5. अमरेन्द्र जी ने संकेत किया सही ही ।
    नाटक, प्रहसन आदि में यदि कविताओं का प्रयोग होता है तो निश्चय ही प्रस्तुति सीधे अन्दर तक पहुँच बनाती है । नुक्कड़ नाटकों के लिये शायद संप्रेषण के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्कनीक है बीच-बीच में गीतों का प्रयोग !

    आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  6. अँधयुग की सुचालकता पर सुन्दर प्रहार !!!!!

    जवाब देंहटाएं
  7. कविता तो अच्‍छी ही है किन्‍तु 'चार कदम सूरज की ओर' से पहले पढी होती तो तनिक अधिक अच्‍छी लगती।

    जवाब देंहटाएं
  8. एक के दो कर, दो के सौ कर
    या कोई भी घोटाला कर
    तिकड़म, धोखा, हेराफेरी
    खुली छूट है भाई
    अंध बाजार, अंध भोक्ता
    अंधी पूँजीशाही।
    सटीक अभिव्यज्तु है शैवराम जी को बधाई और आपका धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत बढ़िया पोस्ट! बहुत बढ़िया प्रस्तुति है।

    अंधों के इस भव्य देशं में
    सब का स्वागत भाई!

    सटीक चोट की है।शिवराम जी ने।

    जवाब देंहटाएं
  10. दिन में भी रात यहाँ पर
    बात-बात में घात यहाँ पर
    लूटो-मारो, छीनो-झपटो
    राह न कोई राही
    अंधा राजा, अंधी पिरजा
    अंधी नौकरशाही।।
    बहुत सही रचना लिखी, ओर आज का यह सच भी है, शिव राम जी ओर आप का धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सशक्त विधा है यह नुक्कड़ नाटक। यह जरूर है कि बेहतर समझ के लिये नुक्कड़गामी भी होना होगा।
    वह यत्न कर रहे हैं।

    जवाब देंहटाएं

कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस?
जो भी हो, जरा यहाँ टिपिया दीजिए.....