चार कदम सूरज की ओर
- शिवराम
आपाधापी भीतरघात
भ्रष्टाचार और बेकारी
चारों ओर है मारामारी
चार कदम सूरज की ओर
ऐसे उदार रघुराई
कुतिया चौके में घुस आई
इतने खोले चौपट द्वार
हुए पराए निज घर-बार
चार कदम सूरज की ओर
कर्ज के पैसे जेब में चार
कैसे इतराते सरकार
उछले जाति धर्म के नारे
नेता बन गए गुण्डे सारे
चार कदम सूरज की ओर
भावी पीढ़ी को उपहार
सेक्स, नशा और व्यभिचार
आजादी को रख कर गिरवी
भाषण देते तन कर प्रभुजी
जैसे चोर मचाए शोर
चार कदम सूरज की ओर।
बहुत जीवंत विवरण -सचमुच यही स्थिति है चारो ओर !
जवाब देंहटाएंभई शिवराम जी तो दिलो दिमाग पर सवार से हो गये हैं हमारे.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गीत। नुक्कड नाटकों में इसका अच्छा उपयोग हो सकेगा।
जवाब देंहटाएंविष्णु बैरागी से सहमत !
जवाब देंहटाएंaisi hi sthiti hai aaj kal,bahut achhi lagi rachana.
जवाब देंहटाएंसूरज ज़रा, आ पास आ,
जवाब देंहटाएंआज सपनों की रोटी बनाएंगे हम.
ए आसमां मेहरबां तू बड़ा,
आज तुझको भी दावत खिलाएंगे हम...
जय हिंद...
वाह
जवाब देंहटाएंशानदार गीत
बधाई
ऊपर विष्णु जी की टिप्पणी से पूर्णतया सहमत
जवाब देंहटाएं@ विष्णु जी,अली जी और गौतम राजऋषि जी...
जवाब देंहटाएंशिवराम जी हिन्दी के मौजूदा शीर्षस्थ नाटककारों में से एक हैं। नुक्कड़ नाटकों को उन का विशेष योगदान है। उन्हें कुछ समीक्षक हिन्दी के प्रथम नाटककार के रूप में भी पहचानते हैं। यह गीत वस्तुतः नुक्कड़ नाटक के लिए ही लिखा गया था। इस संग्रह में उन की ऐसी बहुत रचनाएँ हैं।
बहुत सुंदर और सटीक चित्रण. आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुन्दर गीत है। शिवराम जी को बधाई आपका धन्यवाद
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