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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009

व्यथा की थाह

शिवराम के तीन काव्य संग्रहों में एक है 'माटी मुळकेगी एक दिन'। बकौल 'शैलेन्द्र चौहान' इस संग्रह की कविताएँ प्रेरक और जन कविताएँ हैं। अनवरत पर इन कविताओं को यदा कदा प्रस्तुत करने का विचार है। प्रस्तुत है एक कविता......


व्यथा की थाह
  • शिवराम

किसी तरह 
अवसर तलाशो
उस की आँखों में झाँको


चुपचाप


गहरे और गहरे


वहाँ शायद 
थाह मिले कुछ


उस की व्यथा का 
पूछने से 
कुछ पता नहीं चलेगा।







10 टिप्‍पणियां:

  1. ओह!! बहुत उम्दा!! शिवराम जी रचनायें बहुत सोचने को विवश करती हैं.

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  2. बिलकुल 'सतसैया के दोहरे' की तरह। थोडे में बहुत, और बहुत गम्‍भीर।

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  3. बहुत सुन्दर और गहरे भाव लिये कविता बहुत अच्छी लगी । शिवराम जी को बधाई। आपका धन्यवाद्

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  4. व्यथा से शक्ति पाने की कोशिश .. काबिलेतारीफ ..

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  5. इन आंखों पर पर्दा गिरा दो, बहुत बोलती हैं...

    जय हिंद...

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  6. छोटी किंतु सशक्त कविता।

    संभव हो तो पुस्तक का प्रकाशन स्म्बधित जानकारी दें। शैलेन्द्र चौहान जी की कविताओं की तारीफ़ एक मित्र के मुख से भी सुना है।

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