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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009
व्यथा की थाह
शिवराम के तीन काव्य संग्रहों में एक है 'माटी मुळकेगी एक दिन'। बकौल 'शैलेन्द्र चौहान' इस संग्रह की कविताएँ प्रेरक और जन कविताएँ हैं। अनवरत पर इन कविताओं को यदा कदा प्रस्तुत करने का विचार है। प्रस्तुत है एक कविता......
कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध? कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस? जो भी हो, जरा यहाँ टिपिया दीजिए.....
ओह!! बहुत उम्दा!! शिवराम जी रचनायें बहुत सोचने को विवश करती हैं.
जवाब देंहटाएंसुचिंतित !
जवाब देंहटाएंबिलकुल 'सतसैया के दोहरे' की तरह। थोडे में बहुत, और बहुत गम्भीर।
जवाब देंहटाएंमार्मिक।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और गहरे भाव लिये कविता बहुत अच्छी लगी । शिवराम जी को बधाई। आपका धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी..
जवाब देंहटाएंbehad gahre bhav liye ..........bahut hi sundar.
जवाब देंहटाएंव्यथा से शक्ति पाने की कोशिश .. काबिलेतारीफ ..
जवाब देंहटाएंइन आंखों पर पर्दा गिरा दो, बहुत बोलती हैं...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
छोटी किंतु सशक्त कविता।
जवाब देंहटाएंसंभव हो तो पुस्तक का प्रकाशन स्म्बधित जानकारी दें। शैलेन्द्र चौहान जी की कविताओं की तारीफ़ एक मित्र के मुख से भी सुना है।