डरपोक
- दिनेशराय द्विवेदी
लड़का और लड़की दोनों बहुत दिनों से आपस में मिल रहे थे। कभी पार्क में, कभी रेस्टोरेंट में, कभी चिड़ियाघर में, कभी म्यूजियम में कभी लायब्रेरी में तो कभी मंदिर में और कभी कहीं और। आखिर एक दिन लड़की लड़के से बोली
- आई लव यू!- आई लव यू टू! लड़के ने उत्तर दिया।
- अब तक तो तुमने कभी नहीं बताया, क्यों ? लड़की ने पूछा।
- मैं डरता था, कही तुम .................!
- मुझे तो तुम से कहते हुए कभी डर नहीं लगा।
- सच्च ! लड़के को बहुत आश्चर्य हुआ।
- हाँ बिलकुल सच। पूछो क्यों।
- बताओ क्यों?
- मैं ने तुम्हें झूठ बोला, इसलिए। मैं तुम्हें प्यार नहीं करती। मुझे डरपोक लोगों से घृणा है। और सुनो! आज के बाद मुझे कभी मत मिलना, अपनी सूरत भी न दिखाना। गुड बाय!
लड़की उठ कर चल दी। लड़का उसे जाते हुए देखता रहा। उस ने फिर कभी लड़की को अपनी सूरत नहीं दिखाई। कभी लड़की उसे नजर भी आई तो वह कतरा कर निकल गया।
बहुत नाइंसाफ़ी है !
जवाब देंहटाएंयह तो उल्टा हो गया ।
जवाब देंहटाएंलघुकथा अच्छी है ।
झूठ बोलते डर नहीं लगता। सच बोलने के लिए जुबान नहीं खुलती! वह मैं तुम्हें प्यार नहीं करती कह सकती थी - सीधे कारण बताते हुए।
जवाब देंहटाएंघोर कलियुग आ गया है ;)
... जानते हैं बहुत बार कुछ sophisticated कहने के चक्कर में लड़के कहने को मुल्तवी करते रहते हैं और बालाएँ उसे कायरता समझ लेती हैं। अर्कजेश ने सही कहा - बहुत नाइंसाफी है।
लगता है आप ने ये वाला प्रेम नहीं किया कभी ;)
कहानी स्टार ऐटम है एमे कउनो सुबहा नाहीं है।
चलो बला छूटी!
जवाब देंहटाएं"दिल तोड़ने के हज़ार बहाने ।" इस लघुकथा मे तो आपका अन्दाज़ ही अलग है ।
जवाब देंहटाएंअरे समझाये कोई उस लडकी को कि यह वह डर नही जिसके पीछे पोक लग जाये
जवाब देंहटाएंयह किसी प्यारे को खो देने का बडा मासूम सा डर होता है।
चलो बला छुटी वाली बात ही सही है :)
जवाब देंहटाएंबहुत नाइंसाफ़ी है रे सांभा. पर शुक्र मनाओ कि जान बची तो लाखों क्या करोडों पाये.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
अजी लड्की अभी इतनी तेज है तो शादी के बाद ्तो तोबा तोबा...... बच गया छोरा
जवाब देंहटाएंलड़के को तो बाद में डरना पड़ता शादी के बाद, यदि शादी हो जाती?
जवाब देंहटाएंबेकार में उसका दिल तोड़ दिया....
यह तो फास्ट-फूड टाइप रिलेशन की शॉर्ट स्टोरी है जी।
जवाब देंहटाएंहमारे परिवेश में यह खूब दिखने लगा है।
मुझे पुलिस की लाठी से कभी डर नहीं लगा. लेकिन इन तीन को कहने की कल्पना से ही पसीने छुट जाते हैं. कब से दिल में दबाये बैठ हूँ. आपकी कहानी पढ़ कर और डर गया.
जवाब देंहटाएंयेy आपका नया अंदाज़ भी बहुत अच्छा लगा आज का सच है ये लघु कथा। कुछ दिन की अनुपस्थिती के लिये क्षमा चाहती हूँ। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंलड़की पसन्द नहीं आई। बेकार औरत बनेगी!
जवाब देंहटाएंद्विवेदी जी का नया अंदाज़...!!!
जवाब देंहटाएंदिनेश जी प्यार को जताने के लिये शव्दो की जरुरत ही नही होती......प्यार तो मुक होता है.... वो लडकी प्यार को समझ ही नही सकी, मेने आज तक अपनी बीबी को यह शाव्द नही कहे, कल तो मेने मजाक मै लिख दिया था
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
इश्क और मुश्क के किस्से ,
जवाब देंहटाएंअनगिनत होते हैं :)
आप लेखन की हर विधा में
खूब हैं दीनेश भाई जी
सादर, स - स्नेह,
- लावण्या
राज भाटिया जी की बात तो वाकई दमदार है! कथा के अनुसार बहुत से शायर और महान लोग या क्रांतिकारी भी डरपोक साबित हो जाते हैं। जरूरी नहीं कि नहीं कहने वाला डरपोक हो। डर और खो देने का डर एक नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंकथा से लड़की को कुछ नहीं कह पा रहा और न लड़के को ही।