मुन्नी की कविता कहती मुन्नी सी इस पोस्ट का कथ्य मुन्ना सा नही है. बहुत गहराई से सोचने का आग्रह करती है कविता. पहले बेटियों वाली ग़ज़ल और अब पुरुषोत्तम जी की यह कविता पढवाने के लिए द्विवेदी जी को धन्यवाद.
दिवेदी जी मैं तो अपना निक नेम पढ कर भागी आयी अभी भी अधिक लोग मुझे मुन्नि के नाम से जानते हैं किसि की मुन्नी दीदी किसी की मुन्नी आँटी यहां तक कि किसी की मुन्नी नानी भी हूँ हा हा हा। कविता बहुत सुन्दर है बधाई
" वह जल्दी घर से जाते थे और देर से आते थे । एक दिन घर जल्दी आ गये तो बच्चे ही डर गये ॥" बहुत ही सुन्दर कविता । मार्ड्न होते समाज की विसंगतियाँ दिखाती हुई ...
कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध? कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस? जो भी हो, जरा यहाँ टिपिया दीजिए.....
क्या बात है!!
जवाब देंहटाएंआभार इस रचना को प्रस्तुत करने का!
मुन्नी की कविता कहती मुन्नी सी इस पोस्ट का कथ्य मुन्ना सा नही है. बहुत गहराई से सोचने का आग्रह करती है कविता. पहले बेटियों वाली ग़ज़ल और अब पुरुषोत्तम जी की यह कविता पढवाने के लिए द्विवेदी जी को धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंएक गहन सोच को बाध्य करती मुन्नी कविता के लिये धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंरामराम.
जैसे सोचो, वैसे ही अर्थ निकल रहे हैं. चार लाइनों में समाई पूरी जिंदगी. क्या बात है. शानदार.
जवाब देंहटाएंदिवेदी जी मैं तो अपना निक नेम पढ कर भागी आयी अभी भी अधिक लोग मुझे मुन्नि के नाम से जानते हैं किसि की मुन्नी दीदी किसी की मुन्नी आँटी यहां तक कि किसी की मुन्नी नानी भी हूँ हा हा हा। कविता बहुत सुन्दर है बधाई
जवाब देंहटाएंगागर में सागर...
जवाब देंहटाएंदिनेश जी बहुत सुंदर कविता,लेकिन कई भिन्न भिन्न अर्थ लिये है यह कविता,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
" वह जल्दी घर से जाते थे और देर से आते थे ।
जवाब देंहटाएंएक दिन घर जल्दी आ गये तो बच्चे ही डर गये ॥"
बहुत ही सुन्दर कविता । मार्ड्न होते समाज की विसंगतियाँ दिखाती हुई ...