समय का पहिया कैसे घूमता है इस का नमूना हमने पिछले दिनों देखा गया जब उत्तर प्रदेश में ड्रेस कोड का हंगामा बरपा होता रहा। कानपुर जिले में चार महिला कॉलेजों ने अपनी छात्राओं को कैंपस में जींस पहनकर आने पर पाबंदी लगा दी। कॉलेजों ने यह काम छात्राओं के साथ छेड़खानी रोकने का भला काम करने की कोशिश में किया। बात यहीं तक न रुकी छात्राओं के जींस , टॉप , स्कर्ट के साथ साथ कानों में बड़े बड़े इयर रिंग्स , गले में हार , फैन्सी अंगूठी और ऊंची एड़ी के सैंडिल पहनने पर भी रोक लगा दी गई। जब कि छात्राओं का कहना था कि कॉलेज प्रशासन का फैसला बेतुका है। वे छेड़खानी रोकना ही चाहते हैं तो पुलिस की मदद क्यों नहीं लेते? कॉलेज छात्रों के बीच जींस पहनना आम बात है। मिनी स्कर्ट और शॉर्ट टॉप जैसे कपड़ों पर रोक की बात समझ में आती है , पर जींस?
इस के बाद पहिया आगे चला तो अध्यापिकाएँ भी इस की चपेट में आ गईं। कानपुर के महिला कॉलिजों की अध्यापिकाओं को सख्त निर्देश दिए गए कि वे स्लीवलेस ब्लाउज और भड़कीले सूट पहन कर कॉलिज न आयें। मोबाइल लेकर कॉलिज आने की अनुमति है लेकिन उसे स्विच ऑफ रखना होगा।
आप तो जानते ही हैं, लेकिन इन कॉलेजों का प्रशासन यह नहीं जानता था कि इस देश में प्रेस और मीडिया भी है और स्त्री-स्वातंत्र्य का आंदोलन भी; और यह भी कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री भी एक स्त्री हैं। मंसूबे धरे के धरे रह गए। मायावती ने तुरंत कहा -कोई ड्रेस कोड नहीं चलेगा। फिर सरकारी फरमान निकला कि यूपी के किसी भी कॉलेज में ड्रेस कोड लगाने का समाचार मिला तो मामले की जांच की जाएगी और आरोप सही पाए जाने पर संबंधित कॉलेज के खिलाफ राज्य सरकार यूनिवर्सिटी एक्ट के तहत कार्रवाई करेगी। इसके तहत मान्यता छिनने का खतरा पैदा हुआ ही, यूजीसी से मिलने वाली ग्रांट और दूसरी सरकारी सहायता भी खतरे में दिखाई दी। नतीजा यह हुआ कि ड्रेस कोड लागू होने के पहले ही गुजर गया।
यह तो हुआ ड्रेस कोड का हाल। महिलाएँ जीन्स और टॉप के बारे में क्या सोचती हैं। उस का असली किस्सा। एक प्रोजेक्ट में नई अफसर अक्सर जीन्स और टॉप पहनती है। उस से उम्र में कहीं बहुत बड़ी महिलाएँ वर्कर हैं जो उसे रिपोर्ट करती हैं। अचानक अफसर एक दिन सलवार सूट में दिखाई दी तो कुछ अच्छी वर्करों ने उसे सलाह दी कि -मैडम! आप इस सूट में उतनी अच्छी नहीं लगतीं। आप इसे मत पहना कीजिए। आप को जीन्स और टॉप ही पहनना चाहिए। उस में आप स्मार्ट लगती हैं। अगर आप ने कुछ दिन सूट पहन लिया तो सारी वर्कर्स आप को ढीली-ढाली समझने लगेंगी और फिर काम का क्या होगा वह तो आप जानती ही हैं।
आज कल के कालेज है या फ़ेशान परेड के मेदान, ओर बच्चे पढने जाते है या किसी फ़िल्म की शुटिंग मै...
जवाब देंहटाएंआप ने बहुत अच्छा लिखा.
धन्यवाद
मायावती के फरमान से ही सही, कम से कम यह चोंचलेबाजी तो रुकी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ।
दिनेश जी ,अंग्रेज ऐसे ही राज्य नहीं कर गएँ यहाँ सैकडों बरस !
जवाब देंहटाएंक्या कह सकते है |
जवाब देंहटाएंअब आगे के क्या होगा
जवाब देंहटाएंये जानने का इँतज़ार है ..
-- लावण्या
दिनेश जी..मैं तो पहले से ही कह रहा हूँ की क्या ये उन महिला पुलिस...महिला सैनिकों..किरण बेदी.,कल्पना चावला,,और भी..इनसे कहा जा सकता था...सब दकियानूसी और बेतुका ..अच्छा हुआ की मायावती के होने से इतना तो फायदा हुआ...
जवाब देंहटाएंइन्तजार करते हैं...
जवाब देंहटाएंआप लिख ही नहीं रहें हैं, सशक्त लिख रहे हैं. आपकी हर पोस्ट नए जज्बे के साथ पाठकों का स्वागत कर रही है...यही क्रम बनायें रखें...बधाई !!
जवाब देंहटाएं___________________________________
"शब्द-शिखर" पर देखें- "सावन के बहाने कजरी के बोल"...और आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाएं !!
कमाल है .आज हमने भी जींस पहनी है सुबह से किसी ने नहीं छेडा.... .
जवाब देंहटाएंइन अफसर साहिबा वाली बात से ध्यान आया. हमने अपने बाल बड़े किये ८ महीने तक... टूटने लगे तो अभी पिछले महीने कटवा लिया. जब था तब तक तो ठीक-ठाक ही था. पर अब रोज लोग टोकते हैं ... कटवा क्यों लिया अच्छे तो लगते थे ! तुमपर तो लम्बे बाल ही अच्छे लगते हैं.
जवाब देंहटाएंखैर अनुरागजी की बात लाख टके की बात है !
बदन अपना, नंगई अपनी .... तो फिर किसी और को आपत्ति क्यों?
जवाब देंहटाएंचोचले होते हैं होते रहेंगे, मजे लेने वाले लेते रहेंगे।
धन्य हैं पावंदियाँ लगाने वाले लोग....
जवाब देंहटाएंबेचारे छेड़ने वालों का तो कोई कसूर ही नहीं है न ....काहे नहीं इनकी सरे आम ठुकाई की जाती, कोर्ट कचेहरी बाद में होता रहेगा...बस शहर को एक सिरफिरे SP की ज़रुरत भर होती है..मिनटों में दुरुस्त हो जाते हैं ये शोहदे.
सही कहा आपने. उम्दा पोस्ट.
जवाब देंहटाएंयह पहला मामला है जब प्रतिबंध पीडित पर लगाया गया…लोगों को ये प्रतिबंध तो छेडखानी करने वालों पर प्रतिबंध लगाना चाहिये।
जवाब देंहटाएंमायावती का यह कदम स्वागत योग्य है और कामरेड सुभाषिनी की पहलकदमी भी।
बहुत अच्छा लेख! परेशानी जीन्स से नही है परेशानी जिन्स पहनने के तरीके से है।
जवाब देंहटाएंमैने इस पर एक लेख लिखा है जिस पर मुझे गालियां मिल चुकी है अब उन लोगो जवाब भी देना है अभी
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अभी देखिये आगे -आगे होता है क्या ?
जवाब देंहटाएंजिसके मन जो आता है कर लेता है बाद में सब निबट ही जाता है !
जवाब देंहटाएंसर जी,
जवाब देंहटाएंदेखे आगे आगे होता क्या है ?
इन्तजार... सर जी...... इन्तजार......
आभार/मगलकामना
महावीर बी सेमलानी "भारती"
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
हिमांशु जी से सहमत हूँ.
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