- तो फिर देर किस बात की है? सुनिए आप के ही नगर बनारस के हीरक शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई पर राग मालकौंस में यह बंदिश...................यह कैसा भी तनाव मिटा सकती है...
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पिछली चिट्ठी "सुनें,राग मालकौंस ! तनाव शैथिल्य से मुक्ति पाने का प्रयास करें" पर डॉक्टर अरविंद जी मिश्रा ने टिप्पणी करते हुए फरमाइश की थी ........
ये तो सुन लिया ! किसी और का गाया हुआ है दिनेश जी ? या फिर केवल वाद्ययंत्र से निकला मालकौंस सुनने को मिल सकता है ?
वाह! सारा तनाव जाता रहा
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जवाब देंहटाएंनिःसँदेह, बहुत शान्ति देता है, यह राग ।
पर यह जब तब सुने जाना राग नहीं है, एक ख़ास प्रहर में सुनने की बाध्यता इसको अलोकप्रिय कर रही है ।
जवाब देंहटाएंIf I am not mistaken !
बेहद सुँदर -- आनँदम्` आनँदम `
जवाब देंहटाएंमालकौँस राग मेँ शौर्य और भक्ति का अनोखा सँगम है जहाँ ईश्वर या उस अनजाने तत्त्व से याचना नहीँ किँतु, द्रढता से अपने सत्त्व क समर्पण किया जाता है आलेख अच्छा लगा
-और इन उस्तादोँ के तो क्या कहने !!
- लावण्या
इसे सुनना निश्चय ही सुखद रहा । वाह उस्ताद !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर! धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअनिर्वचनीय आनंद !! वाह ,वाह ,मंत्रमुग्ध हूँ -बहुत बहुत आभार आपका !
जवाब देंहटाएंप्रभु मैं तो पहले से ही पगलाया हुआ था ! ... कितने पड़ोसियों /मित्रों को तनाव दे चुका हूं बता नहीं सकता ! मेरी असीमित दुआओं के साथ कुछ बददुआयें भी स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंडाक्टर अमर कुमार भी बौराये हुओं में से हैं मुझे पता ना था ! उन्हें प्रणाम कहियेगा !
बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
भाई बहुत ही लाजवाब राग है और उस्ताद जी के तो क्या कहने?
जवाब देंहटाएंरामराम.
रागों के समय विशेष का महत्व पुराने दरबारी दौर और महफिलों में था। आज जब जी हो कुछ भी सुन लीजिए। सुर मन को तभी अच्छे लगेंगे जब सुनने की आस्था हो। वक्त कोई भी हो, कोई फर्क नहीं पड़ता।
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजबाव मजा आ गया सुन कर.धन्यवाद
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