हे, पाठक!
सूत जी को पहली बार तापघात हुआ था इसलिए उन्हें कष्ट भी बहुत हुआ। विचार किया तो संज्ञान हुआ कि यह दो दिन वातानुकूलन का सुख-भोगने का परिणाम था। सूत जी ने प्रण कर लिया कि वे कभी इस तरह वातानुकूलन का सुख नहीं लेंगे। ऐसा सुख किस काम का जो बाद में जीवन ही संकट में डाल दे। इस के साथ ही उन्हों ने चुनाव के इस काल में किसी नेता का साक्षात्कार करने की इच्छा भी त्याग दी। अपने पत्र के लिए गतिविधियों के आधार पर ही समाचार भेजने का निर्णय किया। वायरस दल की गतिविधियाँ तो वे देख ही चुके थे। इस के बाद अन्य दलों की गतिविधियों का जायजा लेने का क्रम था। सूत जी ने एक वाहन भाड़े पर लिया और निकल पड़े दिल्ली के राजनैतिक गलियारों की ओर। जहाँ बारहों मास देस भर के नेताओं और जनता की रहती है, उन सब गलियारों में सन्नाटा पसरा मिला। सब स्थानों से नेता अन्तर्ध्यान थे तो जनता कहाँ होती। पता लगा सब अपनी अपनी जनता के शक्ति प्राप्त करने गए हैं। अब राजधानी में रुकना व्यर्थ था।
हे, पाठक!
उसी रात सूत जी उत्तर प्रांत में प्रवेश कर गए। यह देश का सब से बड़ा प्रांत था। सब से अधिक खेत भी यहीं थे। यहाँ नाना प्रकार के दल चुनाव मैदान में थे। कोई हाथी पर सवार था तो कोई साइकिल पर था। वायरस और बैक्टीरिया दल भी यहाँ भिड़े हुए थे। एक जमाना था जब प्रधानमंत्री इसी प्रांत का हुआ करता था। आज यहायहा जिधर देखो हाथी का बोल बाला था। इस प्रांत में जनता की बहुसंख्या दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों की थी जो कभी भी सत्ता का समीकरण बदल सकते थे। बैक्टीरिया दल को यहाँ से बहुमत हासिल होता था। उस ने इन संबंधों में हेरफेर को उचित न समझा। जैसे कोई भी बनिया कभी भी चलती दुकान में ग्राहकों को नयी सुविधाएं नहीं देता। जब तक कि कोई प्रतियोगी मैदान में न आ जाए। वायरस दल मैदान में आया भी तो उस ने बहुमत के धर्म को अपना आधार बनाया। उस का लाभ उठा कर खंड पंचायत पर कब्जा भी किया। पर उस में जिस कमजोरी का लाभ उठा कर सत्ताधीश धर्म परिवर्तन करा कर राज करते रहे वही भेदभाव उस की भी कमजोरी बन गया।
हे, पाठक।
इस प्रांत में अल्पसंख्यक कम नहीं थे उन के एक मुश्त मत किसी को भी राजा या रंक बना सकते थे। उन की भलाई का ढोंग करते हुए बैक्टीरिया दल पहले विजयी होता रहा। लेकिन यह तिलिस्म कभी तो टूटना था। आखिर उस की यह मतजागीरदारी टूट गई, जब साइकिल वालों ने उस में सेंध लगाई। उन्हीं दिनों एक नया दल बहुसंख्या दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों की एकता के नाम पर पनप रहा था। कुछ बचा खुचा था वे छीन ले गए। एक बार तो इस नए दल की नेत्री ने वायरस दल के कंधे पर चढ़ कर सांझे का झांसा दे कर सत्ता की सवारी भी की। जब सवारी ढोने का अवसर आया तो साफ मुकर गई। धीरे धीरे उस ने सब को पीछे छोड़ दिया और अब प्रदेश में हाथी की सवारी कर रही थी।
हे, पाठक!
अर्ध रात्रि को सूत जी महाराज जिस माया नगर में पहुँचे वहाँ एक विशाल मैदान में जोर शोर से मंच बनाने की तैयारियाँ चल रही थीं। बहुत से वाहन आ जा रहे थे। नीली पताकाएँ सजाई जा रही थीं। पता लगा कि प्रान्त की मुख्यमंत्री कल यहाँ अपने दल के प्रत्याशी के समर्थन में सभा को संबोधित करने वाली हैं। सूत जी ने इस माया के कभी दर्शन नहीं किए थे। उन्हों ने इसी नगर में एक ठीक-ठाक सा सितारा विश्रामालय देखा और वहीं रात्रि विश्राम के लिए रुक गए।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
खयाल से पढ़े जा रहा हूँ । कथा जारी रहेगी न ।
जवाब देंहटाएंतो जनतंतर हाथी नसीन हो गया और सूत जी भी हौदे में दाखिल हो लिए ! खरामा खरामा जन्तन्तर कथा डोलायमान है !
जवाब देंहटाएंबिल्कुल हाथी वाली मस्त चाल से चले जारही है यह जन्तन्तर कथा. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंबोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी ...
रामराम.
मस्त फ़िल्म दिखा रहे हो भाई साब्।मज़ा आ गया।
जवाब देंहटाएंमाया ! सूतजी ने माया से व्यक्तिगत मुलाकात नहीं की? उसकी चर्चा तो रोचक रहेगी.
जवाब देंहटाएंमाया महा ठगिनी मैं जानी।
जवाब देंहटाएंयह जन्तन्तर कथा बहुत बढ़िया चल रही है पढ़कर आनंद मिल रहा है . जारी रखे. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंहरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....हे बालक , ( अभिषेक भाई :)
जवाब देंहटाएंये सँसार समूचा 'माया' से व्प्याप्त है !
सूतजी की कथा रोचक जा रही है दीनेश भाई जी
स स्नेह,
- लावण्या
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
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