हे, पाठक!
पन्द्रहवीं महापंचायत के लिए महारथी मैदान में डट गए। लोगों ने तलाशना शुरू किया, है कोई नया चेहरा हो मैदान में? सब जगह पुराने ही चेहरे नजर आए, कोई नया नहीं। पार्टियाँ वैसी की वैसी हैं, जैसी वे पहले थीं। बस सब के चेहरे पर कुछ झुर्रियाँ बढ़ गई हैं। जिस चेहरे पर जितनी ज्यादा झुर्रियाँ चढ़ी हैं, उस पर उतना ही पाउडर और फेस क्रीम भी चुपड़ दिया गया है। इस बीच कोई नयी पार्टी नहीं जनमी। कहीं से खबर, इशारा भी नहीं, कि कोई गर्भ में पल रही हो। या तो रानी माँ बाँझ हो गई है, या राजा निरबंसिया हो चुका है। ऐसे में आ गया, चुनाव। लोग जान गए, कि किसी को वोट डाल दो परिणाम वही होगा जो होना है। नया कुछ भी पैदा नहीं होने वाला। मैया जितने बच्चे ले कर जच्चा खाने गई है, उन्हें ही ले कर वापस लौटेगी। कुछ फरक पड़ भी गया तो इतना कि घर में बच्चों के सोने बैठने की जगह बदल जाएगी। जब भी रात को सोने जाएंगे पहले की तरह लड़ेंगे। बेडरूम से फिर से वैसी ही आवाजें आएंगी। सुबह खाने पर वैसे ही लड़ेंगे। चिल्लाएंगे, वो वाला ज्यादा खा गया। मैं भूखा रह गया।
हे, पाठक!
सब को पता है, कि इस बार भी न बैक्टीरिया पार्टी और न ही वायरस पार्टी दोनों ही महापंचायत में कमजोर रहेंगी, कोई भी ऐसा न होगा जो अपने दम पर पंचायत कर ले। खुद बैक्टीरिया और वायरस पार्टियों को यकीन है कि ऐसा ही होगा। फिर भी वे मैदान में आ डटी हैं। वायरस पार्टी ने घोषणा कर दी है, उन का नेता ही महापंचायत का हीरो होगा। पार्टी के परवक्ता जी से सूत जी महाराज टकरा गए तो उन से पूछा कि कास्ट पूरी न मिली तो कैसे होगा? तो बोले वह बाद की बात है, बाद की बात बाद में देखी जाएगी। हम में हिम्मत है, हम सब कर सकते हैं। हम महापंचायत का हीरो घोषित कर सकते हैं, हम ने कर दिया। किसी और में दम हो तो कर के देखे। सूत जी बोले- बहुत डायरेक्टरों ने हीरो घोषित कर दिये और हीरोइन ढूंढते रह गए। फिलम का मुहुर्त शॉट डिब्बे में बन्द हो कर रह गया। सूत जी को जवाब भी तगड़ा मिला- उन डायरेक्टरों को फाइनेन्सर न मिला था। रोकड़ा ही नहीं था तो हिरोइन कहाँ से लाते? फिलम तो डिब्बे में बंद होनी ही थी। हमारे पास फाइनेंसर बहुत हैं देखते नहीं जाल पर कितने दिन से हीरो का चेहरा चमक रहा है। यह सब फाइनेंस का ही कमाल है। फाइनेंस से सब कुछ हो सकता है।
हे, पाठक!
जब फाइनेंस की बात चली तो सूत जी ने स्मरण कराया। इत्ता ही फाइनेंस पर बिस्वास था तो छह महिने पहले जब न्यू क्लियर डील का मसला आया, तभी लाइन क्लीयर क्यूँ नहीं कर दी। परवक्ता जी बोले-तब की बात और थी। हम चाहते तो यही थे। पर तब फाइनेंसर पीछे हट गए। बोले अभी फाइनेंस रिस्की है। छह महीने बाद करेंगे। अभी करेंगे तो छह माह बाद फिर करना पड़ेगा। फिर अभी तुम आ बैठे तो जनता विपदग्राही हो लेगी। लेने के देने पड़ जाएँगे। फिर न्यू क्लीयर डील तो हम भी चाहते हैं। तुम करो चाहे वे करें, हम फाइनेंसरों को क्या फरक पड़ेगा? तुम बैठ गए तो शरम के मारे कर नहीं पाओगे, यह लटकती रहेगी। उधर परदेस में हमारे धंधों की पटरी बैठ जाएगी।
आज का समय यहीं समाप्त, कथा जारी रहेगी......
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .
इतना काफी है कि वायरस और बेक्टेरिया नहीं आ रहे...मस्त है जी
जवाब देंहटाएंभारतीय लोकतंत्र की अब यही दुर्गति है - आगे वायरस तो पीछे बैक्टीरिया। व्यंग्यबाण बिलकुल सही जगह जाकर लगा है। इतने अच्छे लेखन के लिये बधाई!
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर कथा है पण्डित जी। अगली महापंचायत की छवि अभी से दिख रही है। क्षेपक के रूप में त्रिशंकु महाराज की कथा भी सुनायी जाय। जिससे आगे समझने में सुभीता रहे। :)
जवाब देंहटाएंअब सूत जी का काम बढ़ जायेगा किसे कैसे बांधें यह बड़ी कवायद होने वाली है !
जवाब देंहटाएंअब कथा मजेदार होती जा रही है और उत्सुक्ता बढती जा रही है.
जवाब देंहटाएंबोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी
रामराम.
फाइनेंस से सब होत है, नेता से कछु नाही !
जवाब देंहटाएंकुछ समय बाद देखियेगा, इस बार तो वायरस बैक्टीरिया एक साथ रहेंगे -मज़बूरी जो रहेगी!
जवाब देंहटाएंझकास है वकील साहब .....
जवाब देंहटाएंक्या कथा है गुरुवर-लगातार उत्सुकता जगाये है ..
जवाब देंहटाएंबोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .
बस अब भविष्य पुराण की भविष्यवाणी का समय आ गया है। प्री-पोल सर्वे बन्द हैं तो आप ही कुछ बतादें! :)
जवाब देंहटाएं"न्यू क्लीयर डील तो हम भी चाहते हैं।"
जवाब देंहटाएंअत्यन्त सुन्दर कथा के लिये धन्यवाद ।