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सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

तुम्हारी जय !

'गीत'

तुम्हारी जय!
  • महेन्द्र 'नेह'
अग्नि धर्मा
ओ धरा गतिमय
तुम्हारी जय !

सृजनरत पल पल
निरत अविराम नर्तन
सृष्टिमय कण-कण
अमित अनुराग वर्षण

विरल सृष्टा
उर्वरा मृणमय
तुम्हारी जय !

कठिन व्रत प्रण-प्रण
नवल नव तर अनुष्ठन
चुम्बकित तृण तृण
प्रकाशित तन विवर्तन

क्रान्ति दृष्टा
चेतना मय लय
तुम्हारी जय !
                   - महेन्द्र नेह

8 टिप्‍पणियां:

  1. नेहजी की इस कविता के लिए अनेकानेक विशेष धन्‍यवाद। सुन्‍दर भावों के आनन्‍द के साथ ही साथ, कई 'गुम' शब्‍द मिल गए।

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  2. शुक्रिया इस कविता को पढ़वाने के लिए

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  3. जरा हट के एक बहुत बेहतरीन रचना.

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  4. आप का बहुत धन्यवाद इसे हम तक पहुचाने के लिये

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  5. बहुत सुंदर कविता पढवाया....महा शिव रात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं..

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  6. वाह, जय शंकर प्रसाद जी की याद हो आई।

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