निचली मंजिल के दोनों फ्लेट के दरवाजों के आस पास कोई नाम पट्ट नहीं था। इस से यह पहचानना मुश्किल था कि किस फ्लेट में कौन रहता होगा। ऊपर की मंजिल पर भी यही आलम हुआ तो गलत घंटी भी बज सकती है। ऊपर पहुंचे तो एक फ्लेट पर अवनींन्द्र के नाम की खूबसूरत सी नाम पट्टिका देख कर संतोष हुआ। घंटी बजाने पर अवनीन्द्र की पत्नी ज्योति ने दरवाजा खोला। मुझे और पाबला जी को देख वह आश्चर्य में पड़ गई। मैं ने मौन तोड़ा, पूछा-अवनीन्द्र है? हाँ कहती हुई उस ने रास्ता दिया। अवनीन्द्र ड्राइंग रूम में मिला। देखते ही जो आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता उस के चेहरे पर दिखाई दी उसका वर्णन कर पाना संभव नहीं है। मैं ने बताया ये पाबला जी हैं। उस ने पाबला जी से हाथ मिलाये। मेरे संदर्भ से पाबला जी और अवनींद्र फोन पर बतिया चुके थे।
चित्र में अवनीन्द्र, मैं और वैभव
मैं ने बताया, तुम्हें सूचना न देना और अचानक आ कर सरप्राइज देना पाबला जी की योजना का अंग था जिसे मैं ने स्वीकार कर लिया। पानी आ गया। ज्योति ने कॉफी के लिए पूछा। तो हमने हाँ कह दी। बातें चल पड़ी घर परिवार की। इस बीच कुछ मीठा, कुछ नमकीन आ गया। परिवार की बातों के बीच पाबला जी कुछ अप्रासंगिक होने लगे तो मैं चुप हुआ फिर भिलाई के बारे में पाबला जी और अवनींद्र बातें करते रहे। शहर के बारे में, बीएसपी के बारे में, बीएसएनएल के बारे में और भिलाई के एक शिक्षा केन्द्र बनते जाने के बारे में। पता लगा कि कोटा के सभी प्रमुख कोचिंग संस्थानों की शाखाएँ भिलाई में भी हैं। भिलाई को कोटा से जोड़ने का एक महत्वपूर्ण बिंदु यह भी था। इन संस्थानों में कोटा के लोग काम कर रहे थे। ज्योति कॉफी ले आई। उस ने भोजन के लिए पूछा तो मैं ने कहा आज पाबला जी ने इतना खिला दिया है कि खाने का मन नहीं है। कल शायद दुर्ग या रायपुर जाना हो, तो कल शाम को यहाँ खाना पक्का रहा। उस ने उलाहना दिया कि मुझे वहीं उस के यहाँ रहना चाहिए था। उस की बात वाजिब थी। मैं ने बताया कि मुझे पाबला जी से वेबसाइट का काम कराना है तो वहीं रुकना सार्थक होगा। उस की शिकायत का यह सही उत्तर नहीं था, शिकायत अब भी उस की आँखों में मौजूद थी।हम अवनीन्द्र के यहाँ कोई डेढ़ घंटा रुके। इस बीच अवनींद्र के बारे में मैं ने पाबला जी को बताया कि वह पढ़ने में शुरू से आखिर तक सबसे ऊपर रहा। एक वक्त तो उस की हालत यह थी कि महिनों वह बिस्तर पर नहीं सोता था। टेबल कुर्सी पर पढ़ते पढते तकिया टेबल पर रखा और उसी पर सिर टिका कर सो लेता। सुबह उठता तो हमें लगता कि जैसे वह जल्दी उठ कर नहा धो कर तैयार हो लिया है। उस का राज बुआ ने बताया कि यह नींद से जागते ही मुहँ धोता है और बाल गीले कर, पोंछ तुरंत कंघी कर लेता है। जिस से वह हमेशा तरोताजा रहता है। मैं ने भी आज तक ऐसा विलक्षण विद्यार्थी नहीं देखा। वहाँ से चलने के पहले पाबला जी ने अपने कैमरे से हमारे चित्र लिए।
हम वापस पाबला जी के यहाँ पहुँचे तो पाबला जी की बिटिया सोनिया (रंजीत कौर) से भेंट हुई। सुबह उस से ठीक से भेंट न हो सकी थी वह कब तैयार हो कर अपने कॉलेज चली गई थी हमें पता ही नहीं लगा। वह बहुत छोटी लग रही थी। मैं समझा वह ग्रेजुएशन कर रही होगी। पता लगा वह मोनू से कुछ मिनट बड़ी है और अक्सर यह बात अपने भाई को जब-तब याद दिलाती रहती है। वह एमबीए कर रही है। पाबला जी ने संजीत और संजीव को मेरा कार्यक्रम बता दिया। संजीव ने बताया कि वह सुबह कुछ वकीलों के साथ आएँगे। कुछ ही देर में पाबला जी ने घोषणा की कि भोजन के लिए बाहर चलना है। हम चारों मैं, पाबला जी, मोनू और वैभव वैन में लद लिए। जिस रेस्टोरेंट में हम गए वह बहुत ही विशिष्ठ था। मंद रोशनी और धीमे मधुर संगीत में भोजन हो रहा था और सभी टेबलों पर परिवार ही हमें दिखाई दिए। मैं ने पूछा तो बताया गया कि इस रेस्टोरेंट में बिना महिलाओं के प्रवेश वर्जित है। मैं समझ गया कि यह सार्वजनिक स्थल पर शांति बनाए रखने का सुगम तरीका है। हमारे एक लीडर का वक्तव्य याद आ गया कि किसी भी संस्था की कार्यकारिणी की बैठक में फालतू बातों को रोकना हो तो एक दो महिलाएँ सदस्याएं होना चाहिए।
हमारे साथ कोई महिला न थी फिर भी हम वहाँ थे। पाबला जी ने बताया कि प्रवेश करने के पहले द्वार पर मैनेजर ने टोका था और उसे यह कहा गया है कि बिटिया पीछे आ रही है। लेकिन बाद में फोन पर रेस्टोरेंट के संचालक से बात करने पर ही भोजन का आदेश लिया गया। भोजन स्वादिष्ट था। हम घर लौटे तो ग्यारह बजे होंगे। इतना थक गए थे कि वेबसाइट का काम कर पाना संभव नहीं था। उसे अगली रात के लिए छोड़ दिया गया। वैभव मोनू के कमरे में चला गया। मैं भी कुछ देर नेट पर बिताने के बाद बिस्तर के हवाले हुआ।
यात्रा डायरी बढ़िया चल रही है। काश हमें भी यात्रा का मौका मिले।
जवाब देंहटाएं@ ज्ञानदत्त । GD Pandey
जवाब देंहटाएंआप रेल अधिकारी हो कर ऐसा कहेंगे तो हमारा क्या होगा? हम तो सोचते हैं कि आप की तरह रेल अधिकारी होते तो खूब यात्राएँ करते। कभी कोटा जरूर पधारें, हमारा गरीबखाना महक उठेगा।
अच्छी यात्रा चल रही है आपकी .अच्छा लग रहा है पढ़ कर
जवाब देंहटाएंभई आपके भाई साहब की शिकायत वाजिब ही थी।
जवाब देंहटाएंविस्तृत वृत्तान्त अच्छा लग रहा है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंये ज्ञान जी कैसी बहकी बहकी सी बात कह गए सुबह सुबह !!! आप सही कह रहे हैं। रेलवे के हाकिम होकर मुसाफिरी से यूं महरूम !!!
जवाब देंहटाएंकाश, हम रेलवे में कारकून ही होते :)
यात्रा वृत्तांत अच्छा चल रहा है। दिलचस्पी से पढा जा रहा है।
दिनेश जी , आप के साथ साथ हम भी घुम रहे है, बहुत मजा आ रहा है,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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जवाब देंहटाएंज्ञानदत्त जी फुरसत की बात कर रहे हैं -वे शायद जल बिच मीन पियासी की मनस्थिति में हैं -बाकी आप की यात्रा तो चौडे से चलती लग रही है -!
जवाब देंहटाएंज्ञानजी की यात्राएं तो 'नौकरी' होती हैं और और नौकरी में 'यात्रा का आनन्द' नहीं मिलता। सो, ज्ञानजी 'यात्रा' के लिए तरस रहे हैं। ज्ञानजी की दशा, धूनी के पास बैठे बाबाजी की तरह है। लोग समझते हैं कि बाबाजी धूनी का आनन्द ले रहे हैं और बाबाजी का जवाब होता है-'जी जानता है, बेटा।'
जवाब देंहटाएंयात्रा वृत्तान्त निस्सन्देह रोचक। किन्तु मैं अवनीन्द्र-भार्या की शिकायत के समर्थन में हूं।
बढ़िया अवनीन्द्रजी की विलक्षणता तो सच में कमाल की है.
जवाब देंहटाएंबडा अच्छा लगा इसे पढकर ..
जवाब देंहटाएंमैँ भी यात्रा पर थी उसकी बातेँ भी लिखूँगी
- लावण्या
हम्मम्मम तो 'माऊ' का एक नाम और भी है आज मालूम हुआ.और ......पहले इस ब्लॉग के बारे में क्यों नही बताया? दुश्मनी निकालने का ये क्या तरीका हुआ भई? बताया वो भी तब जब बच्चे की शादी में चंद दिन बाकि है जिससे मैं ध्यान से पढ़ ना सकूं?
जवाब देंहटाएंवाह ! वीरजी आपके चरण कहाँ हैं?
ब्लॉग दिनेश भैया का, कमेन्ट पाबला वीरजी को?
क्या करूं ऐसिच हूँ मैं तो.
यूँ... आइये तो....मिलिए तो.....जानिये तो..
जो दिनेश भैया को अपने फेवर में करके बदले ना लिए तो देख लेना.
ही ही
अवनिन्द्र जी के बारे में पढ़ कर बहुत अच्छा लगा.