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शनिवार, 15 नवंबर 2008

शादी के पहले की रात

रोका या टीका, सगाई, लग्न लिखना, भेजना, लग्न झिलाना, विनायक स्थापना, खान से मिट्टी लाना, तेल बिठाना, बासन, मण्डप, निकासी, अगवानी, बरात, द्वाराचार, तोरण, वरमाला, पाणिग्रहण, सप्तपदी, पलकाचार, विदाई, गृह-प्रवेश, मुहँ-दिखाई, जगराता आदि विवाह के मुख्य अंग हैं। इन सभी का अभी तक हाड़ौती में व्यवहार है। इन में बासन के लिए ताऊ रामपुरिया जी और रौशन जी ने सही बताया। वर के यहाँ बारात जाने के और वधू के यहाँ पाणिग्रहण के एक दिन पहले महिलाएं बैण्ड बाजे के साथ सज-धज कर कुम्हार के यहाँ जाती हैं और वहाँ से मिट्टी के मटका, उस पर एक घड़ा और उस पर ढक्कन सिर पर रख कर लाती हैं। इस तरह के कम से कम पाँच सैट जरूर लाए जाते हैं। जब महिलाएं बासन ले कर घर पहुंचती हैं तो द्वार पर वर या वधू के परिवार के जामाता उन के सिर पर से बासन उतार कर गणपति के कमरे में ला कर रखते हैं और इस के लिए बाकायदे जमाताओं को नेग (कुछ रुपए) दिए जाते हैं।

महिलाएँ बासन लेने चल दीं उस का ज्ञान मुझे सुड़ोकू भरते हुए दूर जाती बैंड की आवाजों से हुई। कोई पौन घंटे बाद वे बासन ले कर लौटी। सुडोकू हल करने में कुछ ही स्थान रिक्त रह गए थे कि साले साहब ने फिर से हाँक लगा दी। हम अखबार वहीं लपेट कर चल दिए। हमें बाकायदा तिलक निकाल कर 101 रुपए और नारियल दिया गया। हम ने अकेले सारे बासन उतारे, और कोई जामाता तब तक विवाह में पहुँचा ही नहीं था। महिलाएँ होटल के अंदर प्रवेश कर गईं थीं, हम बाहर निकल गए। हमें आजादी मिल गई थी। बेतरतीबी से जेब में रखे गए 101 रुपए पर्स के हवाले कर रहे थे कि साले साहब सामने पड़ गए, नोट हाथ में ले कर मजा लिया -मेहन्ताना कम तो नहीं मिला? मैं ने जवाब दिया -वही हिसाब लगा रहा हूँ। छह बासन उतारे हैं एक का बीस रुपया भी नहीं पड़ा कम तो लग रहा है। वे बोले -ये तो एडवांस है। अभी पूरी शादी बाकी है, कसर पूरी कर देंगे। वे हमें पकड़ कर फिर से लंगर में कॉफी पिलाने ले गए।

हम ने अपने एक पुराने क्लर्क को फोन किया था तो कॉफी पीते पीते वह मिलने आ गया। आज कल वह यहीं झालावाड़ में स्वतंत्र रूप से काम कर रहा है। कहने लगा -उस का काम अच्छा चल रहा है। कुछ पैसा बचा लिया है, मकान के लिए प्लाट देख रहा है। मेरे साथ सीखी अनेक तरकीबें खूब काम आती हैं। अनेक लोगों के पारिवारिक विवाद उस ने उन्हीं तरकीबों से सुलझा दिए हैं। तीन-चार जोड़ियों को आपस में मिला चुका है, घर बस गए हैं पति-पत्नी सुख से रह रहे हैं। यहाँ के वकील पूछते हैं, ये तरकीबें कहाँ से सीखीं? तो मेरा नाम बताता है। कहने लगा -भाई साहब, लोगों के घर बस जाते हैं तो बहुत दुआ देते हैं। वह गया तब महिलाएँ प्रथम तल पर ढोल और बैंड के साथ नृत्य कर रही थीं। बासन लाने के बाद महिलाओं का नृत्य करना परंपरा है। हम भी उस का आनंद ले रहे थे। महिलाओं, खास तौर पर लड़कियों और दो चार साल में ब्याही बहुओं ने इस के लिए खास तैयारी की थी। नाच तब तक चलता रहा जब तक नीचे से भोजन का बुलावा नहीं आ गया। तब तक आठ बज चुके थे। सब ने भोजन किया। वापस लौटे तो मैं ने शहर मिलने जाने को कहा तो हमारी बींदणी बोली हम भी चलते हैं। मैं, पत्नी और दोनों सालियाँ एक संबंधी के घर मिलने चले गए। वहाँ पता चला उन की पत्नी को हाथ में फ्रेक्चर है। लड़की पढ़ रही थी। वे चाय-काफी के लिए मनुहार करते रहे। उन की तकलीफ देख कर हम ने मना किया फिर भी कुछ फल खाने पड़े। रात को बारह बजे वहाँ से लौटे तो होटल में सब मेहमान बातों में लगे थे। हमारे कमरे में महिलाओं के सोने के बाद स्थान नहीं बचा था। मैं हॉल में गया तो वहाँ सभी पुरुष सोये हुए थे, फिर भी स्थान रिक्त था। मैं वहीं एक रजाई ले कर सोने की कोशिश करने लगा। स्थान, बिस्तर और रजाई तीनों ही अपरिचित थे, फिर बीच बीच में कोई आ जाता रोशनी करता किसी से बात करता। पर धीरे-धीरे नींद आ गई। जारी

17 टिप्‍पणियां:

  1. राजस्थानी जनजीवन और संस्कृित का अच्छा िचत्र प्रस्तुत िकया है आपने ।

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  2. Bahut achchee tarah Lagn vidhi ko samjhaya aapne ..
    Yehan , ye saree vidhi hote kam hee
    dekhee hai ...
    Aur, BASAN -yehan ki shadiyon mei nahee dekha ...ab samajh mei aa raha hai ...

    ( angrezi mei tippani ke liye kshama
    chahtee hoon !
    I'm away from my PC )- Lavanya

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  3. यह तो अच्छी परिणय कथा छेड़ /चेप रखी है आपने -पारम्परिक कर्म कांडों ,अनुष्ठानों के आप धुरंधर भाष्यकार हैं -यह एक ही विलक्ष्नता आपकी विशिष्ट पहचान बनाए रखने को काफी है !पहले वाली पोस्ट भी देखता हूँ !

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  4. वी आई पी घराती/बराती का मजा ही कुछ और है!

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  5. सबसे पहले तो आप को यह सब लिखने का धन्यवाद ! कृपया इस पूरी शादी के विवरण को बड़ी तफसील से यहाँ लिखते रहिये ! यह आने वाले समय में एक दस्तावेज रहेगा , हमारी परम्पराओं का !

    मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ की हाडौती क्षेत्र में आज भी ये सारी विधियां शादी में की जाती है ! हमारे यहाँ तो नाम मात्र को रह गई हैं ! अभी नई पीढी को इनके बारे में कुछ नही मालुम ! आजकल सिर्फ़ महिला संगीत का का जोर है ! और इस महिला संगीत के नाम पर आजकल तो पूरी एक शादी का इतना खर्च आता है ! यानी बड़ी पार्टी हो गई ! मूळ रूप से जब बरात ब्याहने चली जाती थी तब गाँव में दुल्हे के घर एक महिलाओं का संगीत और सांग कार्यक्रम होता था ! उस प्रोग्राम में पुरुषों को आने की सख्त मनाही होती थी ! और जो कुछ पुरूष वहाँ गाँव में होते थे यानी बरात में नही गए होते , वो सब जोगाड़ लगा कर लुक छिपकर इसका आनंद लेने की कोशिश किया करते थे ! और स्वाभाविक है ये उन महिलाओं की बड़ी स्वछन्द डांस पार्टी होती थी ! वैसे तो कम ही पुरूष इसे देख पाये होंगे ! कारण सब पुरूष बरात में जा चुके होते थे और गलती या बीमारी के कारण कोई बच भी गया और इसको देखते पकडा गया तो उसका कुटावडा इतना जबरदस्त होता था की उसको आनंद आ जाता था ! हमारे यहाँ एक ताऊ रक्खेराम इसी तरह पकडा गया था उसकी एक टांग जिया जब तक टूटी हुई थी !

    इस महिला डांस पार्टी का नाम हुआ करता था ! " टुन्टीया" पता नही अब आपके यहाँ हाडौती में ये परम्परा बची या नही ? अगर बची हो तो इस रस्म को भी आपके आलेख में शामिल करे ! क्योंकि महिला संगीत के नाम पर ये रस्म अब किताबो में भी नही बची है !

    बड़ा जीवंत चित्रण है आपका ! और मजा आ रहा है ! धन्यवाद !
    इसी २२ नवम्बर को साले की लड़की की शादी में झुंझनु (राज) जाना है ! कार से जाने का प्रोग्राम केंसिल हो गया ! कार के नाम पर ताई बिदक गई ! बोली - तुम्हारी अक्ल ख़राब हो गई है ! इस उम्र में कार से जाओगे ! सो चुपचाप हवाई यात्रा से शादी निपटाकर आयेंगे ! बदले में नेगचार के मिलना वही १०१ रुपये हैं ! :) आपसे फ़िर कभी मिलने का मौका मिलेगा !
    )

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  6. अच्छी जानकारी मिली इस से .अलग अलग रिवाज है हर जगह .यह रोचक लगता है ..

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  7. ताऊ, टूँट्या अभी राजस्थान में जिन्दा है। लेकिन वह तभी संभव है जब बारात दूसरे गांव जाए। अधिकतकर विवाह में लड़की वालों को ही बुला लिया जाता है तो वहाँ यह गायब हो गया है। पर जब बारात दूसरे गाँव जाती है तो यह मजेदार और आंनंद दायक मौका स्त्रियाँ कभी नहीं चूकती। और इस मौके पर बूढ़ियाँ और बच्चियाँ सब बराबर हो जाती हैं।

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  8. जाने पहचाने रीति-रिवाजों, परम्‍पराओं के बारे एक बार फिर से विस्‍तृत रूप से जानना आनन्‍ददायी ही रहा ।

    पर आपने एक अजूबा कर दिया है । अब तक पुरुषों को ही साली-सुख मिलता रहा है । आपने स्त्रियों को भी सालियां उपलब्‍ध करा दी हैं । पोस्‍ट का यह वाक्‍य पढें - 'हम दोनों अपनी दोनों सालियों के साथ एक सम्‍बन्‍धी के घर मिलने चले गए ।'
    दुनिया की सारी स्त्रियां (और अविवाहताएं तो निश्‍चय ही) आप पर लटालूम हो जाएंगी ।
    आपसे तो अब कामदेव भी ईर्ष्‍या करेंगे ।
    :) :) :) :) :)

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  9. jeevant chitran hai....lagta hai aap aakhir me kuch saathak ghatna bhi laayege.

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  10. बैरागी जी उसे ठीक कर दिया है। सालियाँ तो हमारी ही होंगी जी, उन की या तो बहनें हैं या फिर ननदें।

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  11. वाह...मजेदार और रोचक जानकारी

    और आपका लिखना तो माशाल्लाह

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  12. बहुत ही सुन्दर लगा सारा विवरण ऎसा लगा जेसे हम सब भी भी वही मोजुद हो, मुझे बहुत अच्छा लगता है यह सब पुराने रीति रिवाज, आज भी हमारे घरो मै यह सब होता है, मेरी शादी मै सात दिन तक रोनक रही थी,काश की यह सब चलता रहै, इस से कई लाभ है, एक तो हम्( ओर हमारे बच्चे) सब अपने रिशते दारो से मिल लेते है, जिस से प्यार बढता है, ओर पता चलता है कि कोन केसा है, लेकिन आज कल तो...
    धन्यवाद एक अति सुन्दर पोस्ट के लिये

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  13. शादी के रश्मो रिवाज जो खत्म होते जा रहे हैं उनसे परिचय प्राप्त हुआ ;कुछ शब्द प्यारे लगे "बासन ""अगवानी ,जगराता ,तोरण मटका नेग ,सुडोकू ,

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  14. द्विवेदी जी बहुत मजा आ रहा है पढ़ने में, राजस्थान के रस्मों रिवाज के बारे में जानकर भी अच्छा लग रहा है, हमें अपने ही देश की संस्कृति से परिचित कराने के लिए धन्यवाद्। आप के अगले लेख का इंतजार रहेगा

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  15. विवाह पूर्व रस्मों का आँखों देखा हाल बताने का शुक्रिया, काफी जानकारी मिली.

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कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस?
जो भी हो, जरा यहाँ टिपिया दीजिए.....