मैं ने अपनी थकान का उल्लेख किया था। लेकिन चर्चा हुआ खाने का। खाने के मामले में जीभ और पेट दोनों में तालमेल का होना जरूरी है वर्ना इन दोनों की घरेलू लड़ाई गज़ब ढाती है। इस युद्ध में थकान और अनिद्रा सम्मिलित हो जाए तो फिर मैदान का क्या कहना? उस में राजस्थान की प्रसिद्ध हल्दीघाटी की तस्वीर दिखाई देने लगती है। फिर लड़ाई अंतिम निर्णय तक जारी रहना जरूरी है। या तो ये जीते या वो, राणा जीते या भीलों के साथ जंगल चले जाएँ और गुरिल्ला युद्ध जारी रखें। हमारा हाल कुछ हल्दीघाटी ही हो रहा है। यह गुरू नानक की दुहाई जो एक युद्ध विराम मिल गया है घावों की दुरूस्ती के लिए। देखते हैं कल के इस युद्ध-विराम का कितना लाभ हमारी ये हल्दी-घाटी उठा पाती है।
मैं सोचता था, दाल-मेथी की रसेदार सब्जी जैसी सादा और स्वादिष्ट सब्जी तो सभी को पता होगी। मगर यहाँ तो उस की भी रेसिपी पूछने वालों की कमी नहीं। दीदी लावण्या ( लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`), रंजना जी [रंजू भाटिया] और pritima vats ने तो अनभिज्ञता प्रकट की और रेसिपी की मांग कर डाली और ताऊ रामपुरिया व विष्णु बैरागी जी ने उस की तारीफ की। ज्ञान जी Gyan Dutt Pandey बोले -हम होते तो खिचड़ी खाते! पर ऐसे में मैं इस मौसम की मैथी-दाल ही पसंद करता। खिचड़ी जरा थोड़ी सर्दी कड़क होने पर अच्छी लगती।
अब हमें कोई चारा नहीं सूझ रहा था कि करें तो क्या करें? कि देवर्षि नारद ने मार्ग सुझाया कि मैं हर मामले में नारायण! नारायण! करते भगवान् विष्णु की शरण लेता हूँ, तुम भी किसी को तलाशो। सो हम पहुँचे देवी (शोभा) की शरण। उन से अपनी विपत्ति का हल पूछा? वे किसी तरह बताने को तैयार नहीं। आखिर तीन किस्तों में सुबह-दोपहर-शाम में हम ने उन से दाल-मैथी का राज जाना। आप को बताएँ इस शर्त पर कि अगर बनाएँ तो खाएँ और परिवार को खिलाएँ जरूर और फिर बताएँ कि कैसी लगी?
तो बस आप ले लीजिए 150 ग्राम मूंग की छिलके वाली दाल और सब्जी वाले से खरीदिए एक पाव यानी 250 ग्राम जितनी हो सके उतनी ताजा मैथी की हरी पत्तियाँ तथा एक टुकड़ा अदरक। मैथी में यदि डंठल अधिक हों तो कठोर-कठोर डंठल तोड़ कर निकाल दें और मैथी को चलनी में डाल कर नल चला दें पानी से धुल जाएगी। उस में हाथ न चलाएँ नहीं तो उस का स्वाद कम हो सकता है। अब मैथी को चाकू से काट कर बारीक कर लें। मसालों में नमक, लाल मिर्च, जीरा और हींग आप की रसोई में जरूर होंगे। इन में से कुछ न हो तो पहले से व्यवस्था कर लें। प्रेशर-कुकर में दाल के साथ स्वाद के अनुरूप नमक डाल कर अपनी रुचि और कुकर की जरूरत के माफिक न्यूनतम पानी डाल कर पकाएँ। एक सीटी आने पर कुकर को उतार लें, भाप निकाल कर उस का ढक्कन खोल दें। उस में मैथी की पत्तियाँ और एक अदरक के टुकड़े का कद्दकस पर कसा हुआ बुरादा डालें और एक बार उबल जाने दें। बस थोड़ी देर में सब्जी तैयार होने वाली है। इस से आगे दो रास्ते हैं।
यदि आप तेल-घी का तड़का पसंद नहीं करते तो आँच पर से उतार कर उस में स्वाद के अनुसार मिर्च डाल दें और एक चने की दाल के टुकड़ा बराबर सबसे अच्छी वाली हींग को एक चाय चम्मच भर पानी में घोल कर सब्जी में डाल कर चम्मच चला दें। बस सब्जी तैयार है। सर्दी में गरम-गरम परोसें और सादा चपाती या पराठों के साथ खाएँ।
दूसरा अगर तड़का लगाना हो तो खाली भगोनी में एक चम्मच देसी-घी डालें और गरम होने पर जरूरत माफिक जीरा डालें उस के सिकने पर पहले से पीस कर चूर्ण की गई एक चने की दाल के टुकड़ा बराबर सबसे अच्छी वाली हींग डाल दें और दो सैंकड में उस भगोनी में कुकर से दाल-मेथी डाल दें। चम्मच से चला कर उतार लें और वैसे ही सर्दी में गरम-गरम परोसें और सादा चपाती या पराठों के साथ खाएँ।
यह तो हुई दाल-मैथी की रेसिपी। है न बहुत सादा। शोभा ने इसे भी तीन किस्तों में बताया तो मुझे भी लगा कि ये भी कोई रेसिपी है। पर स्वादिष्ट इतनी कि बस पेट की खैर नहीं। फिर हमारे बचपन की तरह ऊँची कोर की थाली के एक ओर किसी चीज की ओट लगा कर नीचे रह गए हिस्से की और रसीली दाल-मैथी परोसी जाए और उसी थाली में रोटी या पराठा रख कर खाया जाए तो मजा कुछ और ही है। साथ में एक नए देसी गुड़ का टुकड़ा हो और मिर्च स्वाद में कम रह जाने में ऊपर से सूखी पूरी लाल मिर्च को हाथ से चूरा कर सब्जी में डाल कर खाएँ तो लगे कि वैकुण्ठ की डिश जीम रहे हैं।
और PD को कह रहा हूँ कि यह भी उन्हें यम्मी पोस्ट ही लगेगी। आप को कैसी लगी? जरूर बताएँ। आगे बताएँगे रहा हुआ मुख्यमंत्री के चुनाव क्षेत्र में हुई शादी का हाल।
बहुत बहुत शुक्रिया सौ. शोभा भाभी जी का और आपका! सच हमने इस तरह से छिलकेवाली दाल और मेथी एक साथ आज तक नहीँ पकाई ! अब जरुर बनाऊँगी ! और कैसी लगी वह बताऊँगी -
जवाब देंहटाएंआपने अच्छी तरह समझा दिया है उसके लिये भी धन्यवाद !:)
--लावण्या
अरे वाह.. यहाँ तो पूरा का पूरा मेनू आ गया.. बढ़िया है.. मगर मैं तो नही बनाने वाला हूँ.. कभी आपके यहाँ आना हुआ तो चाची के हाथों का ही खाऊँगा.. :)
जवाब देंहटाएंवैसे आज तो सभी यम्मी-यम्मी करते जायेंगे.. और बाद में उनके घर में भी सभी यम्मी-यम्मी करेंगे.. :D
फिर हमारे बचपन की तरह ऊँची कोर की थाली के एक ओर किसी चीज की ओट लगा कर नीचे रह गए हिस्से की और रसीली दाल-मैथी परोसी जाए और उसी थाली में रोटी या पराठा रख कर खाया जाए तो मजा कुछ और ही है। साथ में एक नए देसी गुड़ का टुकड़ा हो और मिर्च स्वाद में कम रह जाने में ऊपर से सूखी पूरी लाल मिर्च को हाथ से चूरा कर सब्जी में डाल कर खाएँ तो लगे कि वैकुण्ठ की डिश जीम रहे हैं।
जवाब देंहटाएंभाई साहब क्यूँ बचपन याद दिला रहे हैं ? आज भाभीजी की मेहरवानी से रेसिपी का राज पता चल गया ! अभी मैथी की भाजी आनी ही शुरू हुई है सो अभी तो सर्दी में मौज रहेगी ! वैसे एक बात मैं सभी से और कहना चाहूँगा की ये बहुत ही सुपाच्य भी है ! स्वाद का अंदाज तो आपने बता ही दिया है ! अगर किसी को इसे और रिच करना हो तो शुद्ध देशी घी की दो चम्मच एक कटोरी गर्म २ सब्जी में डाल कर खाईये ! फ़िर देखिये देवताओं में भी जूते ना चल जाए तो हमें कहियेगा ! हम कभी २ ताई की नजर बचा कर ये कारनामा कर लेते हैं ! वैसे हमारा घी वी सब बंद है ! :)
दिनेश जी यह भी बता दिजिये की सर्दियो मै यह मेथी की सब्जी बहुत ही उचित रहती है सेहत के लिये, ओर सर्दी से भी वचाब हो जाता है, ताऊ गुड के साथ साथ हरी ताजा मिर्च हो तो इस सब्जी का कोई जबाब नही, फ़ाईव स्टार होटल भी फ़ेल इस सब्जी कि आगे.
जवाब देंहटाएंदिनेश जी आप का धन्यवाद अभी बीबी को कह दिया कल दोपहर यही बनेगी...
वाह !!!
जवाब देंहटाएंज़रा देर से पहुंचा हूं इधर तो देखता हूं कि हमारी पसंदीदा मेथी की दालभाजी की बात चल रही है। आपने तो ताजी मेथी की विधि बता दी। अपने राम तो अक्सर सूखी मेथी से भी दालभाजी साल भर बनाते हैं। इसमें लहसुन की तो बात ही क्या ? मालवाअंचल में आफू की भाजी भी मिलती है जो अफ़ीम के सूखे पत्ते ही होते हैं। राजगढ़ में थे तो खूब खाते थे। अभी भी मिल जाए तो शौक़ से खाते हैं।
जय हो...
मैं सामान्यतया उपवास नहीं करता, व्रत ही करता हूं । कल रात को भावना उपजी कि कार्तिक पूर्णिमा पर उपवास करूं । इसके पीछे कोई धार्मिक कारण नहीं रहा । बस, एक बात मन में आ गई ।
जवाब देंहटाएंसवेरे-सवेरे आपकी यह पोस्ट पढ ली है । देख्नता हूं, इसके प्रभाव से कब तक बच पाता हूं । बच पाउंगा भी या नहीं, यह भी दूखूंगा ।
बहरहाल आपने, छोटी सी, अंधेरी रसोई (जिसे हम ओरी कहते थे) में, चूल्हा फूंक रही मेरी मां के सामने मुझे बैठा दिया है ।
मज़ा आ गया, द्विवेदी जी. इसे कहते हैं एक पंथ दो काज. कुछ लोगों को एक पक्वान्न की विधि मिल गयी और बहुत से लोगों को बहुत पीछे छूटी यादें! लेख और टिप्पणियाँ दोनों ही पढ़कर बहुत अच्छा लगा!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शोभा जी का और आपका ..मेथी बहुत पसंद है ..इस तरह से कभी नही बनायी ..बना कर जरुर देखंगे .
जवाब देंहटाएंवाह। ट्राई किया जायेगा जी।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा।
जवाब देंहटाएं"युद्ध" शब्द से खिंचा चला आया इस पोस्ट पर,मगर यहाँ तो अलग ही जायका था.प्र्फ़्फ़ुलित मन और उदर से जा रहा हूँ
जवाब देंहटाएंओह ! बिल्कुल सच कह रहा हूँ. मुंह में पानी आ गया.
जवाब देंहटाएंबस शनिवार और रविवार को वो भी एक समय ख़ुद से बना कर खाते हैं जिसका कोई तोड़ आज तक घर को छोड़कर बाहर के खाने में नहीं मिला. ये तो अब जरूर ही ट्राई किया जायेगा.
दाल मेथी पर तो हाथ आजमाया जा सकता है. आपका(बोनस में) और शोभा भाभी का बहुत आभार रेसिपी के लिए.
जवाब देंहटाएंभाई साहब
जवाब देंहटाएंये तो पत्ती वाली मेथी है। भाभीजी से कहिये कि साबुत मेथी और चने की दाल बनाय़ें और फिर देखिये वह कितनी स्वादिष्ट बनती है, दो रोटियाँ ज्यादा ना खा लें तो कहियेगा।
और हाँ आप वाली रेसेपी में अगर पालक का उपयोग किया जाये तो भी बहुत स्वादिष्ट सब्जी बन सकती है, साथ में मक्के की गर्मा गर्म रोटी... आह हा
॥दस्तक॥
गीतों की महफिल
तकनीकी दस्तक
@ सागर नाहर
जवाब देंहटाएंसागर भाई, आप दाना मैथी की सब्जी की बात कर रहे हैं। उसे गर्मी के मौसम में खाने मैं बड़ा आनंद आता है। वह सूखी और पनीली दोनों तरह की बनती है। पनीली सब्जी में गुड़ का मीठा उसे स्वतंत्र रुप से एक डिश जैसा बना देता है।