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मंगलवार, 14 अक्टूबर 2008

सुंदर कितना लगता है, पूनम का ये चांद,? शहर से बाहर आओ तो .......

स्मृति और विस्मृति पल पल आती है, और चली जाती हैं। कल तक स्मरण था। आज काम में विस्मृत हो गया। पूरा एक दिन बीच में से गायब हो गया। दिन में अदालत में किसी से कहा कल शरद पूनम है तो कहने लगा नहीं आज है। मैं मानने को तैयार नहीं। डायरी देखी तो सब ठीक हो गया। शरद पूनम आज ही है। शाम का भोजन स्मरण हो आया। कितने बरस से मंगलवार को एक समय शाम का भोजन चल रहा है स्मरण नहीं। शाम को घर पहुँचा तो शोभा को याद दिलाया आज शरद पूनम है। कहने लगी -आप ने सुबह बताया ही नहीं, मेरा तो व्रत ही रह जाता। वह तो पडौसन ने बता दिया तो मैं ने अखबार देख लिया।

- तो मैं दूध ले कर आऊँ?
- हाँ ले आओ, वरना शाम को भोग कैसे लगेगा? रात को छत पर क्या रखेंगे?
मुझे स्मरण हो आया अपना बालपन और किशोरपन। शाम होने के पहले ही मंदिर की छत पर पूर्व मुखी सिंहासन को  सफेद कपड़ों से सजाया जाता। संध्या आरती के बाद फिर से ठाकुर जी का श्रंगार होता। श्वेत वस्त्रों से। करीब साढ़े सात बजे, जब चंद्रमा बांस  भर आसमान चढ़ चुका होता। ठाकुर जी को खुले आसमान तले सिंहासन पर सजाया जाता। कोई रोशनी नहीं, चांदनी और चांदनी, केवल चांदनी। माँ मन्दिर की रसोई में खीर पकाती। साथ में सब्जी और देसी घी की पूरियाँ। फिर ठाकुर जी को भोग लगता। आरती होती। जीने से चढ़ कर दर्शनार्थी छत पर आ कर भीड़ लगाते। कई लोग अपने साथ खीर के कटोरे लाते उन्हें भी ठाकुर जी के भोग में शामिल किया जाता।

किशोर हो जाने के बाद से मेरी ड्यूटी लगती खीर का प्रसाद बांटने में। एक विशेष प्रकार की चम्मच थी चांदी की उस से एक चम्मच सभी को प्रसाद दिया जाता। हाथ में प्रसाद ले कर चल देते। लेकिन बच्चे उन्हें सम्हालना मुश्किल होता। वे एक बार ले कर दुबारा फिर अपना हाथ आगे कर देते। सब की सूरत याद रखनी पड़ती। दुबारा दिखते ही डांटना पड़ता। फिर भी अनेक थे जो दो बार नहीं तीन बार भी लेने में सफल हो जाते।

कहते हैं शरद पूनम की रात अमृत बरसता है। किसने परखा? पर यह विश्वास आज भी उतना ही है। जब चांद की धरती पर मनुष्य अपने कदमों की छाप कई बार छोड़ कर आ चुका है। सब जानते हैं चांदनी कुछ नहीं, सूरज का परावर्तित प्रकाश है। सब जानते हैं चांदनी में कोई अमृत नहीं। फिर भी शरद की रात आने के पहले खीर बनाना और रात चांदनी में रख उस के अमृतमय हो जाने का इंतजार करना बरकरार है।

शहरों में अब शोर है, चकाचौंध है रोशनी की। चकाचौंध में हिंसा है। और रात में किसी भी कृत्रिम स्रोत के  प्रकाश के बिना कुछ पल, कुछ घड़ी या एक-दो प्रहर शरद-पूनम की चांदनी में बिताने की इच्छा एक प्यास है। वह चांदनी पल भर को ही मिल जाए, तो मानो अमृत मिल गया। अमर हो गए। अब मृत्यु भी आ जाए कोई परवाह नहीं। भले ही दूसरे दिन यह अहसास चला जाए। पर एक रात को यह रहे, वह भी अमृत से क्या कम है।

साढ़े सात बजे दूध वाले के पास जा कर आया। दूध नहीं था। कहने लगा आज गांव से दूध कम आया और शरद पूनम की मांग के कारण जल्दी समाप्त हो गया। फिर शरद पूनम कैसे होगी?  कैसे बनेगी खीर? और क्या आज की रात अमृत बरसा, तो कैसे रोका जाएगा उसे? उसे तो केवल एक धवल दुग्ध की धवल अक्षतों के साथ बनी खीर ही रोक सकती है। दूध वाले से आश्वासन मिला, दूध रात साढ़े नौ तक आ रहा है। मैं ले कर आ रहा हूँ। मेरे जान में जान आई। घर लौटा तो शोभा ने कहा स्नान कर के भोजन कर लो। जब दूध आएगा, खीर बन जाएगी। रात को छत पर चांदनी में रख अमृत सहेजेंगे। प्रसाद आज नहीं सुबह लेंगे। पूनम को नहीं कार्तिक के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को।

मैं ने वही किया जो गृहमंत्रालय का फरमान था। अब बैठा हूँ, दूग्धदाता की प्रतीक्षा में। दस बज चुके हैं। वह आने ही वाला होगा। टेलीफोन कर पूछूँ? या खुद ही चला जाऊँ लेने? मैं उधर गया और वह इधर आया तो? टेलीफोन ही ठीक रहेगा।

मैं बाहर आ कर देखता हूँ। चांद भला लग रहा है। जैसे आज के दिन ही उस का ब्याह हुआ हो। लेकिन ये दशहरा मेले की रोशनियाँ, शहर की स्ट्रीट लाइटस् और पार्क के खंबों की रोशनियाँ कहीं चांद को मुहँ चिढ़ा रही हैं जैसे कह रही हों अब जहाँ हम हैं तुम्हें कौन पूछता है? मेरा दिल कहता है थोड़ी देर के लिए बिजली चली जाए। मैं चांद को देख लूँ। चांद मुझे देखे अपनी रोशनी में। मैं सोचता हूँ, मेरी कामना पूरी हो,  बिजली चली जाए उस से पहले मैं इस आलेख को पोस्ट कर दूँ। मेरी अवचेतना में किसी ग्रामीण का स्वर सुनाई देता है ......

सुंदर कितना लगता है? पूनम का ये चांद,
जरा शहर से बाहर आओगे तो जानोगे,
खंबों टंगी बिजलियाँ बुझाओ तो जानोगे........


पुनश्चः - दूध वाला नहीं आया।  आए कमल जी मेरे कनिष्ठ अधिवक्ता। मैं ने कहा - दूध लाएँ? वह अपनी बाइक ले कर तैयार दूध वाला गायब दुकान बंद कर गया। उसे कोसा। अगली दुकान भी बंद। कमल जी ने बाइक अगले बाजार में मोड़ी। वहाँ दूध की दुकान खुली थी। मालिक खुद बैठा था। उस के खिलाफ कुछ दिन पहले तक मुकदमा लड़ा था। मैं ने कहा - दूध दो बढ़िया वाला।
उस ने नौकर को बोला - प्योर वाला देना।

दूध ले कर आए। अब खीर पक रही है।
फिर जाएंगे उसे ले कर छत पर। अमृत घोलेंगे उस में। घड़ी, दो घड़ी।
अब बिजली चली ही जाना चाहिए, घड़ी भर के लिए......

22 टिप्‍पणियां:

  1. सही कह रहे हैं, चाँद और तारे तो गाँवों व निर्जन इलाकों में ही सुन्दर दिखते हैं। शहर तो जैसे अन्य बहुत कुछ निगल जाता है वैसे ही इन्हें भी निगल जाता है।
    घुघूती बासूती

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  2. बहुत ही अच्छा लगा...चाँद भी याद हो आया....और बिजली गुल हो तब का आसमान भी...

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  3. अभी-अभी गाँव से आया हूँ आप जानते ही होंगे... पूनम तक तो नहीं रुक पाया पर छत पार गुजारी रात का संस्मरण ठेलने की सोच रहा था... उस भूले हुए चाँद का संस्मरण जो आधा होकर भी बता गया की बहुत कुछ छुटता जा रहा है चकाचौंध में !

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  4. आज हमारे यहा का मोसम बिलकुल साफ़ है, इस कारण चांद बहुत सुन्दर नजर आता है, भारत मै तो याद नही कभी निकलते हुये चांद को देखो कितना बडा लगता है, आप का लेख बहुत ही मन भावन लगा.
    धन्यवाद

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  5. बिज़ली चले जाने की दुआ भी कबूल नहीं की होगी, ऊपर वाले ने।
    मनचाहा कभी होता है:-)

    हम तो डर रहे थे, खीर बाहर रखने में। कहीं हवा के suspended particle ही न बरस पड़ें, अमृत के बदले!

    पुरानी यादें ताज़ा हो आयी, आपकी पोस्ट से।

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  6. बहुत सुँदर रहा शरद के चँद्रमा का आदर सत्कार !
    यहाँ भी उगा था ....
    एकदम बडा
    और रात भर खिडकी से झाँकता रहा ..

    - लावण्या

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  7. आलेख अच्छा लगा। सबसे अच्छा दूध वाले मालिक का व्यवहार!

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  8. क्या क्या न याद दिला दिया भाई आपने!!

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  9. sundar post..kheer hamney bhi banayi kal...per raat 12 bajey hi uThha laye bahar se...varna saraa prasaad billorani le jaatin..beta utsuk thaa..maa ..yahan kyu khaaney ki cheez rakh rahi ho??..puuarney reet rivaaz humtak to hain..aagey jaaney kya ho...

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  10. बहुत अच्छा आलेख आपका ! हम भी खीर बनाकर छत पर रक्खे थे मगर कपडे से ढांक कर ! क्योंकि शहर का वातावरण आप जानते ही हैं ! तो पता नही अमृत आया या नही ? पर मुझे लगता है की अमृत आया या नही , एक अलग बात है , पर जो चाँद की सुन्दरता देखी , वो किसी और ही लोक में ले गई ! शायद चाँद को निहारने का साल में ये एक ही मौका मिलता है ! ये भी ना हो तो हम तो ये भी भूल जाएगे की चाँद और उसमे सुन्दरता नाम की कोई चीज होती है !:)

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  11. "सब जानते हैं चांदनी में कोई अमृत नहीं।"
    ...मगर मुझे पता है कि उसमें अमृत है! मैंने जी भर कर छका भी है!

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  12. इस वक्त चाँद सच में बहुत खुबसूरत नजर आता है .अच्छा लगा इसको पढ़ना ..

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  13. दिनेश जी आज तो आपकी इस पोस्ट ने पता नहीं क्या क्या याद दिला दिया। अभी पढ़ कर हटा हूं राज भाटिया जी की दादी मां। उसमें भी कई याद ताजा हुईं। और आज आपको पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। इतना अच्छा आज से पहले तो कभी भी नहीं लगा था। सच ये ही है मेरा भारत। पर शहरों में तो चांदनी भी मअस्सर नहीं दिनेश जी।

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  14. शरद पूर्णिमा के चाँद से अमृत बरसता है, यह हमेशा से हमारा विश्वास रहा है, पर इस बार काम की गहमा-गहमी में याद नहीं रहा, चूक गए. सुबह जब पार्क में गया तो किसी ने बताया कि मन्दिर में खीर बनी है. तब याद आया. हमारे यहाँ तो न दूध की कमी थी और न ही चोलों की, पर भूल गए. कहते हैं मन का एक कौना हर समय खीर के लिए खाली रहता है, और अगर उस खीर में पूनम के चाँद का अमृत मिला हो तो क्या कहने!

    विजली जाने की बात भी भली कही. पूनम का चाँद निकला हो तो मन करता है कि सारे शहर की विजली चली जाय पर न जाने क्यों उस दिन विजली नहीं जाती. चांदनी में नहाने का मन करता है. जब बच्चे थे तो संघ की शाखा में रात भर खो-खो खेलते थे चांदनी में. वह भी क्या दिन थे. विज्ञान ने इंसान को दिया भी बहुत कुछ पर बहुत कुछ छीन भी लिया.

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  15. आश्विन मास के वाजावरण में धूल कण शून्‍यप्राय: होते हैं । सूर्य और चन्‍द्र किरणें बिना किसी व्‍यवधान के सीधी धरती तक पहुंचती हैं । इसीलिए आश्विन मास की धूप, ग्रीष्‍म ऋतु की धूप की अपेक्षा अधिक तीखी, अधिक चुभन लिए होती है और चांदनी एकदम साफ (सुपर फिल्‍टर्ड) होती है - इतनी साफ कि सूई में धागा पिरो लीजिए । शरद पूर्णिम की राम को सुई में धागा पिरोना, मालवा अंचल में, परम्‍परा की तरह बन चुका है । इस सुपर फिल्‍टरेशन के कारण ही 'शुध्‍द चांदनी' मिलती है और इसी कारण शरद पूर्णिमा की रात को 'अम्रत वर्षा' की बात कही जाती है ।

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  16. क्या बात है ......आज ये वकील साहब भी कुछ बदले बदले से लगे ....पर अच्छे लगे.....चाँद मुआ सबको बिगाड़ देता है !

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  17. पूनम की रात चांदनी में छत पर बैठना ही अम्रत्पान करने से कम नहीं....बहुत अच्छा लगा आज आपको पढना! अदालत से सीधे चाँद पर पहुँच गए...

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  18. जी हाँ बहुत ही मादक रही है यह पूनम की कौमुदी ! दो दिनों से निहार रहा हूँ जब जब बिजली जा रही है -मन कहता है बार बार बिजली जाए !

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  19. आपने वह लिख दिया जो मैंने भी आकाश में स्ट्रीट लाईट आदि के होने से सितारों को न देखने से महसूस किया,आभार .

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  20. आपने वह लिख दिया जो मैंने भी सड़क पर स्ट्रीट लाईट आदि के होने से आकाश में सितारों को न देखने से महसूस किया,आभार .

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  21. शरद पूर्णिमा चली गयी, और आपकी पोस्ट से पता चल रहा है!
    बहुत अच्छा। पता तो चला।

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  22. द्विवेदीजी /वाकई लाईट की चकाचौंध ने चांदनी का आनंद ही फीका कर दिया / हम लोग इस पूर्णिमा को चांदनी में सुई में धागा डालते हैं / मुझे सुई दे दी गई ,धागा दे दिया गया ,कहा धागा डालो ,मैंने सुई हाथ में लेखा कहा पहले ये बताओ इसकी नोक किधर है

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कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस?
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