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मंगलवार, 9 सितंबर 2008

अनवरत के अंश आईबीएन-7 पर


अनवरत पर सात सितंबर की शाम साढ़े छह बजे जब आलेख गणेशोत्सव और समृद्धि की कामना आलेख प्रकाशित हो रहा था, तो मैं जयपुर में था। सुबह सात बजे कोटा से निकल कर जयपुर में अपना काम कर रात दस बजे वापस कोटा पहुँचा। लगातार यात्रा की थकान और आते ही अदालत का काम। व्यस्तता के कारण आठ सितंबर को कोई आलेख न ‘अनवरत’ पर और न ही ‘तीसरा खंबा’ पर आ सका। आज रात साढ़े आठ बजे भोजन करते समय टीवी पर समाचार सुनने का यत्न किया तो आईबीएन-7 चैनल पर समाचारों में मुम्बई में गौरी विसर्जन का समाचार पढ़ते हुए सुखद आश्चर्य हुआ।

आईबीएन-7 चैनल ने अपने समाचार में इस परंपरा के इतिहास का उल्लेख करते हुए जिन बातों का उल्लेख किया उन में अनवरत के पिछले आलेख का पूर्वार्ध अपने शब्दों सहित किसी महिला के स्वरों में पढ़ा जा रहा था। कुछ वाक्यों को हटा कर वही शब्द पढ़े गए जो इस आलेख में थे।

मेरे लिए आश्चर्य यह था कि मुझे यह पता न था कि यह परंपरा आज भी उसी मूल रूप में या कुछ परिवर्तित रूप में महाराष्ट्र के गांवों में ही नहीं अपितु मुम्बई जैसे नगर में भी जीवित होगी। इस तरह हमारा इतिहास इन लोक परंपराओं में जीवित है। हम चाहें तो इन परंपराओं को जान कर उन का विवरण प्रकाश में ला कर इतिहास और दर्शन के शोधार्थियों की मदद कर सकते हैं। साथ के साथ पूरे देश में प्रचलित इन परंपराओं में एक जैसे तत्वों को तलाश कर देश की लोक-संस्कृति की एकता को समृद्ध और मजबूत बना सकते हैं।  

15 टिप्‍पणियां:

  1. आपका आलेख वाकई प्रशंसनीय था। हमारी बधाई स्वीकारें...।

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  2. जी हाँ जितनी बातेँ आपने बतलाईँ
    लगभग वही सारी
    (एक सिर्फ कृषिके साथ जुडी हुईवाली
    बातोँ के)
    मेरे पडौसी माणिक दादा के घर परिवार के लोग मिलकर इसी तरह मनाया करते थे
    गौरी, गणेशजी सभी पूरे १४ दिनोँ तक --
    विधि विधान पूरा होता था !
    आज भी वे सारे किस्से
    फिर पडौस और घर की यादेँ लेकर आते हैँ
    - लावण्या

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  3. दिनेश राय जी, कोटा के अतुल चतुर्वेदी 14 सितम्बर को हिन्दी ब्लॉग पर कोई व्याख्यान रखना चाह रहे हैं. उनका ईमेल मैंने आपको अग्रेषित किया था. यदि आपको नहीं मिला हो तो कृपया उनसे संपर्क करें उनका ईमेल है achatchaubey एट gmail.com

    रवि

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  4. बधाई हो... वो लेख है ही प्रभावशाली.

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  5. यह सचमुच एक बड़ा काम होगा ! पर कैसे ?कोई योजना बनाएं !

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  6. मराठी में, एकल प्रस्‍तुति वाली 'कथा-कथन' की सुदीर्घ परम्‍परा है । लोक कथा शैली में अपनी बात लोगों तक पहुंचाने का यह बहुत ही प्रभावी माध्‍यम है ।
    लोक परम्‍पराओं की जानकारी देने के लिए ऐसी प्रस्‍तुतियों के बारे में सोचा जा सकता है । नारायण भाई देसाई की 'बापू-कथा' इसकी सफल बानगी है ।
    लेकिन यह तनिक कठिन काम है । इसके लिए भरपूर तैयारी करनी पडेगी । तब तक इन बातों को ब्‍लाग पर रखते रहिए ।
    बोला हुआ अक्षर हवा में गुम जाएगा । मुद्रित अक्षर नष्‍‍ट हो जाएगा लेकिन ब्‍लाग पर रखा अक्षर अमर रहेगा ।

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  7. बहुत ही अच्छी जानकारी.
    धन्यवाद

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  8. भारत के महान भूतकाल को, तब की तकनीकी महानता को, साहित्यकला आदि के विकास को, वास्तुशिल्प आदि को, लुप्त होने से बचाने के लिये हर भारतीय को तन मन धन से जुट जाना चाहिये!!

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  9. आपके ज्ञान और अनुभव का
    अधिकतम लाभ सबको मिले
    यही कामना है....आभार.
    ==================

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