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बुधवार, 6 अगस्त 2008

महेन्द्र 'नेह' का गीत .... मारे गए बबुआ

 

मित्र  महेन्द्र 'नेह' श्रेष्ठ कवि-गीतकार तो हैं ही, पेशे से क्षति-निर्धारक, बोले तो 'सर्वेयर'। बीमा कंपनियों के लिए क्षतियों का निर्धारण करते हैं। बरसों तक मोटर दुर्घटनाओँ की क्षतियाँ आँकीं हैं। जब सड़क पर यातायात अधिक हो जाता है, तो सड़क को चौड़ा किया जाता है। यकायक सड़क पर वाहनों की रफ्तार बढ़ जाती है। इस घटना को उन्हों ने देश में आयातित वाहनों की बाढ़ के साथ गीत में बांधा। गीत प्रस्तुत है.......
मारे गए बबुआ
  • महेन्द्र 'नेह'

सड़क हुई चौड़ी
मारे गए बबुआ।
मारे गए बबुआ हो
मारे गए रमुआ......

लोहे के हाथी और लोहे के घोड़े
बेलगाम हो कर के सड़कों पे दौड़े
मची है होड़ा होडी़
मारे गए बबुआ।
नई-नई घोड़ी विलायत से आई
नए-नए रंगों की महफिल सजाई
बिदक गई घोड़ी
मारे गए बबुआ।

चंदा औ सूरज सी जोड़ी रुपहली
ज़ालिम जमाने के पहियों ने कुचली
बिगड़ गई जोड़ी
मारे गए बबुआ। 
.....................................................................................................................................

12 टिप्‍पणियां:

  1. आनन्द आया पढ़ कर. आभार हमारे साथ बांटने के लिए.

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  2. अच्छी लगी कविताई -मगर और लम्बी होने को माँगता !

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  3. इत्ता छोटा काहें कर दिया जी? अभी तो सारा रस गले में ही अटक गया। जैसे पंचामृत का प्रसाद। हम तो गिलास भरकर लेते हैं...

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  4. वाह क्या बात हे,आनन्द आया पढ़ कर, आप का ओर महेन्द्र 'नेह'जी का धन्यवाद

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  5. सचमुच बहुत मज़ा आया...नेह जी ने बहुत अच्छा गीत लिखा है.

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  6. यह रचना किस राजस्‍थानी लोक गीत की बन्दिश में है - बताइएगा । इसका आकार इसके लोकगीत होने की घोषणा कर रहा है । अच्‍छा गीत है ।

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  7. महेन्द्र 'नेह'जी का गीत पढवाने के लिये
    धन्यवाद !
    -लावण्या

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  8. बहुत अच्छा गीत - मन प्रफुल्ल हुआ. आपका और महेन्द्र नेह जी का आभार!

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  9. 'बिदक गई घोड़ी
    मारे गए बबुआ'

    छोटा गीत है लेकिन अच्छा है !

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कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
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