'पीयूष प्रत्यक्ष,' यही नाम है, उस का। एक सप्ताह पहले मेरे निवास पर आया। वह एक स्थानीय केबल चैनल 'एसटीएन' में पत्रकार है। मुझ से बोला कल सुबह साढ़े छह बजे आप को स्टूडियो आना है। पता लगा वह चैनल के लिए परिचर्चा कार्यक्रम में मेरा साक्षात्कार रिकार्ड करना चाहता है। मैं ने हाँ तो कर दी लेकिन किसी और दिन के लिए। अपनी दैनंदिनी देख कर तय किया कि किस दिन जा सकता हूँ। तो शुक्रवार तय हुआ।
बुधवार तक मैं यह भूल गया कि मैंने कौन सा दिन बताया था। बुधवार देर रात ध्यान आया तो पूछने के लिए टेलीफोन करना चाहा तो पीयूष का फोन नम्बर ही नहीं था। गुरूवार भी असमंजस में बीता रात हम फिर निर्देशिकाएँ टटोल रहे थे कि उस का खुद फोन आ गया। मैं ने राहत की साँस ली। वह शुक्रवार ही था। मैं ने उस से पूछा कि किस पर बात करोगे भाई यह तो बता दो। कहने लगा ब्लागिंग पर बात करेंगे। मैंने उसे कुछ ब्लागिंग के बारे में बताया।
शुक्रवार सुबह सदा की भांति 5.30 सुबह उठे। जल्दी-जल्दी तैयार हुए और चल दिए, इंद्रप्रस्थ। ये इंद्रप्रस्थ कोटा का एक वृहत औद्योगिक क्षेत्र है। इसी के एक कोने पर बनी हुई है राजस्थान टेलीमेटिक्स लि. की इमारत। बड़ी सी तीन मंजिला। बिलकुल खाली खाली सी दिखी सुबह-सुबह उसी के दूसरे तल पर प्रधान संपादक का कार्यालय। संपादक जी सुबह सुबह मिल गए, वे जयपुर से लौटे ही थे और कुछ देर बाद प्रसारित होने वाली खबरों पर नजर डाल रहे थे। उन से कुछ बातचीत हुई और उन्हों ने मुझे कॉफी पिलायी। वहीं पीयूष जी आ गए और हमें स्टूडियो ले गए। हम ने पहली बार किसी टीवी चैनल का स्डूडियो देखा था। कुछ खास नहीं। एक बड़ा सा कमरा, जिस के एक और कुछ मॉनीटर और कम्प्यूटर थे, कैमरा था और एक ऑपरेटर। दूसरी और एक दीवार उसी की साइज के नीले रंग के परदे से ढंकी हुई। दो कुर्सियाँ, एक बड़ी सी टेबल। हमें कुर्सी पर बिठा दिया गया। दूसरी पर पीयूष जी।
कैमरा ऑपरेटर ने इशारा किया और साक्षात्कार प्रारंभ हुआ।
सब से पहले राजनैतिक सवाल। वही परमाणु करार, महंगाई, आरक्षण के मुद्दे और वही सियासती पार्टियाँ काँग्रेस, बीजेपी और लेफ्ट। फिर एक अंतराल बोले तो, छोटा सा ब्रेक। फिर सवाल शुरू हुए तो आ गई न्याय व्यवस्था। कोटा में अदालत परिसर की कठिनाइय़ाँ। कोई और विषय नहीं। फिर साक्षात्कार समाप्त। ब्लागिंग बीच में टपकी ही नहीं।
हमने पीयूष जी से पूछा -भाई ये क्या हुआ ब्लागिंग का तो उल्लेख ही नहीं हुआ।
पीयूष जी बोले - वह फिर कभी, मैं ने आप को कह तो दिया। पर मैं ब्लागिंग के बारे में खुद कुछ नहीं जानता तो क्या सवाल करता? अब एक दिन आऊंगा। आप से समझूंगा कि ब्लागिंग क्या बला है। फिर ब्लागिंग वाला इंटरव्यू करूंगा।
लगा ब्लागिंग अब भी जनता से दूर की चीज है। लोगों ने अभी केवल उस का नाम ही जाना है वह भी अमिताभ बच्चन, आमिर और सलमान खान वगैरह की तरह।
मैं इन्तजार में हूँ कब पीयूष जी आते हैं मेरे पास ब्लागिंग के बारे में जानने के लिए।
वकील साहब ऐसा है अभी भी भारतीय जनमानस रोटी से जुड़ी है उससे भहर निकलती है तो राजनीति का बड़ा जाल उसे फांस लेता है....उसके बाद क्रिकेट, फ़िल्म, अपराध और न जाने क्या क्या.... ब्लॉग्गिंग आएगा और जब ये आएगा तो लोग इसी में पिले रहेंगे जैसे हम ब्लॉगर पिले हुए हैं..... :)
जवाब देंहटाएंजल्द ही वह दिन आएगा जब आप ब्लागिंग पर अपने इंटरव्यू में बताएँगे ..धीरे धीरे इसका नशा सब पर होगा ..:)
जवाब देंहटाएंअजी उन्हे छोड़िए. हम है ना ब्लॉगिंग के बारे में सवाल पूछने के लिए..
जवाब देंहटाएंवो सुबह कभी तो आएगी...जब ब्लोगिगं धूम मचाएगी।
जवाब देंहटाएंमेरे साथ की सभी सहेलियां जो कि मेरे बराबर ही शिक्षित हैं,वो भी अभी ब्लोगिन्ग के कोन्सेप्ट से परिचित नहीं हैं.वो सोचती हैं कि ऐसा क्या लिखना पढना जिससे पैसे की आमद ना हो,महिलायें क्या पुरुष तक मेरे ब्लोगिन्ग के शौक को समय की बर्बादी मात्र समझते हैं.
जवाब देंहटाएंई-स्वामी ने शायद कहीं लिखा है..,
जवाब देंहटाएं" ब्लोगिन्ग को हस्तमैथून के बराबर रखते हैं और चेट फ़ोरम हरम क पर्याय है."
यह हालत तो अभी भी बनी हुई है, अब हस्तमैथून पर साक्षात्कार भला कौन बुरबक दिखायेगा ?
हमें भी जानकारी भेंजे। प्रकाशनार्थ। - शम्भु चौधरी
जवाब देंहटाएंवकील साहेब बिल्कुल ठीक बात है ,कई लोग पूछते है की ये ब्लोगिंग क्या बला है .....कई लोग तो हिन्दी टाइप देख कर चौंक जाते है
जवाब देंहटाएंसही में - हिन्दी को इण्टरनेट पर देखने का शॉक अब जा कर कम हुआ है लोगों में। मैने कई लोग देखे हैं जो ब्लॉगिन्ग को ई-मेल का परिवर्धित रूप मानते हैं!
जवाब देंहटाएंye samasya to hai.aap aam aadmi ki baat kar rahe hai,wo to door hai hi,padhe likhe khaaskar humare yanha to patrakaar saathi bhi is balaa se waqif nahi hai.khair aaj nahi to kal sab aayenge is or .aap to bas lage rahiye,aur haan aap se yaad mera school ka mitra bhi aapke shaher me docter hai dr Rajeev Narang
जवाब देंहटाएंअजी आप तो फिर भी कंप्यूटर से सीधे नहीं जुड़े हुये हैं.. मेरे सारे मित्र साफ्टवेयर प्रोफेशनल हैं फिर भी ब्लौग को सबसे बेकार चीज समझते हैं.. :)
जवाब देंहटाएंलोग अभी तक कंप्यूटर और इंटरनेट तक नहीं जानते तो ब्लॉग्गिंग कहाँ से जानेंगे ! हम लोग वास्तविकता जिसे समझते हैं वो नहीं है... कई मामलों में !
जवाब देंहटाएंहाल ही में मेरे कार्यालय में मेरी सेवा के एक अति वरिष्ठ अधिकारी इलाहाबाद में अपनी तैनाती के बाद हम लोगों से मिलने आए थे। इसके पहले वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद, नोएडा, मेरठ, बरेली जैसी जगहों पर रह चुके हैं। मेरे बॉस ने मेरा परिचय कराया कि ये त्रिपाठी है, अच्छा लिखता है। उन्हें जिज्ञासा हुई तो पूछ बैठे- कहाँ लिखते हो? मैने कहा- अपने ब्लॉग ‘सत्यार्थमित्र’ पर। वे चिहुँक पड़े। दुबारा नाम पूछा, मेरे ब्लॉग का...। जब मैने स्पष्ट बताया तो हैरत में पड़कर बोले- तो क्या हिन्दी में भी ब्लॉगिंग हो जाती है? उनके दोनो बच्चे मैनेजमेण्ट के विद्यार्थी हैं।
जवाब देंहटाएंसही है मगर उतनी ही तेजी से प्रकार और प्रसार भी हो रहा है. जल्द ही एक बडी संख्या इसे जानने लगेगी. शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएंसुबह होगी जल्द ही।
जवाब देंहटाएंब्लोगिंग वैसे है तो बेकार की चीज, टाईम है करने को खास कुछ नही तो ब्लोगिंग शुरू और ये तब पनपती है जब पढ़ने वाले अपने कुछ चंद दोस्त हों जो पढ़ें और वाह वाह करें। ब्लोगिंग कंटेंट बेस्ड नही बल्कि पर्सनल च्वाइस बेस्ड है। ब्लोगिंग में क्वांटिटी भले ही बढ़ जाय पर क्वालिटी का हमेशा अभाव रहेगा।
जवाब देंहटाएंसही है ब्लागिंग किस चिडिया का नाम है बहुतों को पता नही .
जवाब देंहटाएंआपसे मेरा सविनय अनुरोध है कि आप ब्लोगिँग पर और सिँदुर पर और अन्य विषयोँ पर
जवाब देंहटाएंदूसरोँ की चिँता किये बिना लिखिये -"वीकीपीडीया की तरह या दीक्षनरी की तरह ये जानकारियाँ
आज नहीँ आनेवाले समय तक नेट पर कायम रहेँगीँ और काम आयेँगीँ - जब आम का नन्हा बिरवा
उगा ही था तब किसे पता था कि यही घना पेड बनेगा जिस के रसीले आम बरसोँ तक खाये जायेँगे -
ये मेरा मत है ..कोई विषय ऐसा भी होता है जो भविष्य मेँ आकार लेता है, और वर्तमान उसे हैरत से
देखता है ..at least, this is my belief.
- लावण्या
सच तो यही है... 1999 से हम इंटरनेट पर अपने परिवार से मेल और चैट से सम्पर्क बनाए हुए हैं लेकिन हिन्दी ब्लॉगिंग के बारे मे हमें अगस्त 2007 में पता चला.
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट है जी। मज़ा आया। टिप्पणियों में इतने विचार आए कि ब्लागिंग के बारे में अपना विचार देने की ज़रूरत नहीं समझता । वैसे भी ब्लागिंग के बारे में मेरे कुछ मौलिक विचार नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंदो कारणों से ब्लागिंग करता हूं-
1. इसकी वजह से शब्दों पर रोज़ एक आलेख का अनुशासन बन गया है।
2.अनामदासजी के शब्दों में यह आर्कुट , कॉफी हाऊस से कहीं परिष्कृत और सार्थक कम्युनिटी है।
जो है , सो है।
लावण्या जी से मैं बिल्कुल सहमत हूँ कि ये जानकारियाँ
जवाब देंहटाएंआज नहीं, आनेवाले समय तक नेट पर कायम रहेंगीं और काम आयेंगीं।
इला जी से तो कई ब्लॉगर्स भी सहमत होंगे कि ऐसा क्या लिखना पढना जिससे पैसे की आमद ना हो।
वैसे भविष्य तो उज्जवल है।
मानो या ना मानो!