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रविवार, 11 मई 2008

माँ

मातृ दिवस पर प्रस्तुत है कवि महेन्द्र 'नेह' की कविता "माँ"

माँ

*महेन्द्र नेह*

जब भी मैं सोचता हूँ कि

कैसे घूमती होगी पृथ्वी

अहर्निश अपनी धुरी पर, और

सूर्य के भी चारों ओर

परिक्रमा करती हुई

मेरी चेतना में तुम होती हो माँ।

सबह सुबह जब उषा

अंधेरे को बुहारी लगाती हुई

जगाती है सोते हुए प्राणियों को

दोपहर की तपन को चुनौती देती हुई

कोई बच्ची दौड़ रही होती है

सड़क पर नंगे पाँव

या फिर शाम के धुंधलके में

कोई नारी आकृति

अपने सिर पर लकड़ियों का गट्ठर लिए

उतर रही होती है जंगल की पहाड़ी से

मुझे तुम याद आती हो माँ।

यकीन ही नहीं होता कि

अभावों से जूझते हुए एक छोटे से कमरे में

किस तरह पले बढ़े

अपना वर्तमान और भविष्य संवारने

आते रहे ना जाने कितने छोर

तुम्हारी निश्छल किन्तु दृढ़ आस्थाओं की

छाँह में पनपे न जाने कितने बिरवे

और बने छतनार वृक्ष।

याचना के लिए कभी नहीं फैले

तुम्हारे हाथ और

नहीं झुका माथा कभी

कथित सामर्थ्यवानों के आगे।

फिर भी तुम्हारी रसोई

बनी रही द्रोपदी की हाँडी।

तुम थीं

प्रकृति का कोई वरदान

या फिर स्वयं थीं प्रकृति

अपनी ही धुरी पर घूमती

सूर्य का परिभ्रमण करती

तुम थीं, मेरी माँ।

***************************

अच्छी खबर यह है कि महेन्द्र 'नेह' का पैर प्लास्टर से बाहर आए महीना हो चुका है, और वे अब अपने दुपहिया से शहर में आने जाने लगे हैं। हाँ चलने में अभी तकलीफ है। लेकिन फीजियो से व्यायाम करवा रहे हैं। यह कसर भी शीघ्र ही दूर होगी।

15 टिप्‍पणियां:

  1. आप ने नेह जी की इतनी उम्दा दिल के कोर से निकली हुई रचना हम तक पहुंचाई.....धन्यवाद।

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  2. नेह जी,

    दिल से निकली हुई रचना है जो आँख नम करते हुए दिल में ही रह गयी...

    ***राजीव रंजन प्रसाद
    www.rajeevnhpc.blogspot.com

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  3. सबह सुबह जब उषा
    अंधेरे को बुहारी लगाती हुई
    जगाती है सोते हुए प्राणियों को

    सुंदरतम रचना। काव्य और यथार्थ का सुंदर तालमेल।

    माँ को प्रणाम और आप को भी।

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  4. माँ तुम्हे प्रणाम,सलाम
    बहुत बढ़िया रचना बांटने के लिए आभार

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  5. दिनेश जी,इस सुन्दर ओर भाव पुर्ण रचना के लिये आप का ओर महेन्द्र नेह जी का धन्यवाद करते हे, ओर महेन्द्र नेह जी जल्दी स्वस्थये हो जाये यही कमानये करते हे भगवान से.

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  6. बेहद भावभरी अँजलि ,
    हर माँ को देती
    महेन्द्र जी की ये कृति,
    बहुत उम्दा लगी
    इसे पढवाने का शुक्रिया !

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  7. नेह जी की बहुत उम्दा रचना पेश की है, आभार.

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  8. भाव-प्रवण रचना हम तक पहुंचाने के लिये धन्यवाद.ममा की याद और बलवती हो गई.

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  9. याचना के लिए कभी नहीं फैले
    तुम्हारे हाथ और
    नहीं झुका माथा कभी
    कथित सामर्थ्यवानों के आगे।
    फिर भी तुम्हारी रसोई
    बनी रही द्रोपदी की हाँडी।

    तुम थीं
    प्रकृति का कोई वरदान
    या फिर स्वयं थीं प्रकृति
    अपनी ही धुरी पर घूमती
    सूर्य का परिभ्रमण करती
    तुम थीं, मेरी माँ।

    बहुत सुंदर,सचमुच परकृति का वरदान नही,स्वयं ही प्रकर्ति ,
    माँ की ममता को सलाम ,

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  10. दिनेश जी नेह जी की भाव पूर्ण रचना बांटने के लिए शुक्रिया।

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  11. अरे, आप तो बहुमुखी प्रतिभा वाले हैं। कवि भी श्रेष्ठ हैं।

    मां विषय ही ऐसा है कि कवि बना दे!

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  12. इस अच्छी रचना के लिए धन्यवाद.

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  13. ** ज्ञान जी, 'माँ' मेरी नहीं महेन्द्र नेह की रचना है। वे सिद्धहस्त कवि और गीतकार हैं।

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  14. निःसंदेह एक बेहतरीन कविता है,
    मन को आह्लाद से भर देने वाली

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