आज हमें एक विवाह संगीत में जाना पड़ा। पहले विवाहों के समय एक एक हफ्ते तक महिलाओं का संगीत चलता रहता था। अब वह सब एक समारोह में सिमट गय़ा है। इस के साथ ही लोकरंजन की यह विधा नगरों से विदाई लेती नजर आती है, कस्बे उन का अनुकरण कर रहे हैं और गाँव भी पीछे नहीं हैं। वहाँ भी टीवी ने सब कुछ पहुँचा दिया है। अब लगता है महिलाओं से वे लोकगीत सुनना दूभर हो जाएगा जो विवाहों में सहज ही सुनाई दे जाते थे। खैर!
संगीत सभा को निमन्त्रण पत्र में “महिला संगीत” प्रदर्शित किया गया था। मेरे विचार से यह गलत शीर्षक था। इसे सीधे-सीधे “विवाह संगीत” लिखा जा सकता था।
वहाँ एक हॉल में ढ़ाई फुट ऊंचा डीजे मंच लगाया गया था। कोई पन्द्रह फुट लम्बा और दस फुट चौड़ा रहा होगा। रोशनियाँ नाच रही थीं, तेज गूँजती आवाज और वही कान में रुई का ढ़क्कन लगा कर सुनने योग्य तेज फिल्मी संगीत। बहुत सी लड़कियों ने इन रिकॉर्डेड गीतों पर नृत्य किए। सब लड़कियों ने अच्छे भाव दिखाए जिन में कठोर श्रम झलक रहा था। उन में से शायद ही कोई हो, जिसने किसी गुरु से नृत्य की शिक्षा ली हो। फिर भी उन के नृत्यों में बहुत परिपक्वता थी। ऐसा लग रहा था कि उन्होंने एकलव्य की कथा से बहुत कुछ सीखा है। यह महसूस किया कि वाकई लड़कियाँ लड़कों के मुकाबले शीघ्र परिपक्व हो जाती हैं, क्यों कि उन भावों को जो वे प्रदर्शित कर रहीं थीं, ठीक से समझे बिना प्रदर्शित करना कठिन था। सचमुच लड़कियाँ अन्दर से बहुत गहरी होती हैं।
मुझे एक बात अखरी, और मैं ने इस का उल्लेख एक-दो लोगों से किया भी। उन्होंने भी इसे नोट किया। मंच पर पाँच-पाँच वर्गफुट के छह वर्ग थे। तीन आगे, तीन पीछे। नृत्य करते समय तकरीबन सभी लड़कियाँ केवल बीच के दो वर्गों का ही उपयोग कर रही थीं। उनमें भी आगे पीछे के दो-दो फुट स्थान का भी वे उपयोग नहीं कर रही थीं। इस तरह उस पन्द्रह गुणा दस वर्गफुट के मंच में से केवल पांच फुट गुणा छह फुट मंच का ही वे उपयोग कर रही थीं। पूरे मंच के केवल मात्र 20 प्रतिशत हिस्से का। जब कि लड़के जब भी उस मंच पर नृत्य के लिए आए उपलब्ध समूची स्पेस का उपयोग कर रहे थे।
क्यों लड़कियां उन के पास उपलब्ध स्पेस का उपयोग नहीं कर पा रही थीं? मेरे लिए यह प्रश्न एक पहेली की तरह खड़ा था। मन हुआ कि किसी लड़की से पूछा जाए। पर उस समारोह में ऐसा कर पाना संभव नहीं हो सका।
मैं इस प्रश्न का उत्तर तलाशना चाहता हूँ। कुछ उत्तर मेरे पास हैं भी। क्या इसलिए कि न्यूनतम स्पेस में काम करने की उन की आदत ड़ाल दी गई है? या उन्हें इस बात का भय है कि वे मंच के किनारों से दूर रहें कहीं नृत्य में मग्न उन का कोई पैर मंच के नीचे न चला जाए और उन्हें कुछ समय का या जीवन भर का कष्ट दे जाए?
सही उत्तर क्या है? मैं अभी उस की तलाश में हूँ।
शायद आप में से कोई सही उत्तर सुझा पाए?
बड़ा रोचक ऑब्जर्वेशन है। और सही भी लग रहा है।
जवाब देंहटाएंयह मानसिकता इतनी ठिली हुई है कि कोई मना न करे तब भी मन आचरण इसी तरह करता है..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा मुद्दा उठाया आपने.
जवाब देंहटाएंवाकई आपने बड़े ध्यान से इस बात पर गौर किया। ये लड़कियां अगर डीजे के साथ होती है तो कई बार दर्शकों के डर से ही पूरे स्टेज का इस्तेमाल नही करती है। क्यूंकि कई बार लोग स्टेज पर ही चढ़ जाते है।
जवाब देंहटाएंक्या विश्लेषणात्मक नज़र है आपकी, सलाम!!
जवाब देंहटाएंवाह भाई वाह क्या नज़र है!
जवाब देंहटाएंबात आपने सही पकड़ी है पर क्या इसके लिए केवल लड़कियों को दोष देना उचित है? या फ़िर यूं कंहे कि किसी को भी दोष देना उचित है?
मुझे ना तो ये ठिली हुई मानसिकता लगती है और ना ही न्यूनतम स्पेस में काम करने की उन की आदत लगती है.
ये एक विशेषता है ये एक खासियत है ये एक दुर्लभ गुण है जो बनानेवाले ने सिर्फ़ स्त्रियों को दिया है. पुरूष चाहकर भी ऐसा नही कर सकते और स्त्रियाँ चाहकर भी इसके विपरीत नहीं जाती.
और बाकी नतीजा तो शायद कुछ लड़कियों के कमेन्ट आने के बाद ही पता चले.
ममताजी ने भी साफ-साफ कुछ उत्तर तो दिया नही कि क्यों ऐसा है.
इस विषय पर मेरा आपसे अनुरोध है कि एक विचार संग्रह श्रृंखला आरंभ करें और उसमे स्त्रियों के विचारों को ही सहेजा जाय.
जवाब देंहटाएंतब शायद हम भी (पुरूष) बहुत सी भ्रांतियों से मुक्ति पा सकेंगे.
ऐसा कहीं इस बात की वजह से तो नहीं है कि लड़कियाँ हमेशा कम खर्चे में काम चला लेती हैं. उनकी ये सोच पहले से ही उनके मन में है और वे चाहती हैं कि इस गुण का उपयोग हर जगह किया जाना चाहिए.
जवाब देंहटाएंकारण जो भी हो, लेकिन आपका आब्जर्वेसन वाकई गजब का है.
आपने बहुत ही बारीक विश्लेशण किया । पर यह कहना कि लडकियाँ जगह का पूरी तरह से उपयोग नहीं करतीं शायद ठीक ना हो । जहाँ ज़रुरत होती है वहाँ उपयोग भी हो जाता है । रही बात नाचते समय जगह के उपयोग की तो आपने ही कहा की वो सब फिल्म के गानों पर नाच रहीं थीं तो आजकल तो एक या दो गाने ही ऐसे होते हैं जिसमें ज़्यादा जगह की ज़रुरत पडती है । अधिक्तर गाने ऐसे हैं जिनपर एक जगह पर खडे होकर नाचा जा सकता है ।
जवाब देंहटाएंदिनेश जी शयाद लडकिया डरती हो, लड्को की तरह से बिंदास नाचती हुई कही नीचे ही ना गिर जाये, या भीड से डरती होगी,लेकिन लड्को कॊ यह डर नही होता इस लिये वो खुल कर नाचते हे.गिर भी गये तो फ़िर दर्द सह कर उठ पडेगे,भीड भी इन से डरती हे.
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